रावण के द्वारा इस मंत्र को पढ़ते ही भोलेनाथ ने दिया था वरदान, पढ़ने वाले का जरुर होगा कल्याण

दशानन राव़ण महादेव का प्रिय भक्त था। उसने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिवतांडव स्तोत्र की रचना की थी। वह स्तोत्र मंत्र जिसके उच्चारण से भगवान शिव साक्षात् प्रकट हुए और दशानन राव़ण (Ravana) को मनचाहा वरदान दिया।

 

शास्त्रों में ऐसा वर्णन मिलता है कि शिवतांडव स्तोत्र के विधिवत उच्चारण से भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं। शास्त्रों में शिव तांडव स्तोत्र महिमा का वर्णन मिलता है।

शिव ताण्डव स्तोत्र (शिवताण्डवस्तोत्रम्) परम शिवभक्त लंकापति दशानन राव़ण द्वारा गाया भगवान शिव का स्तोत्र है। मान्यता है कि एक बार दशानन राव़ण ने अपना बल दिखाने के लिए कैलाश पर्वत ही उठा लिया था। और जब वह पूरे पर्वत को ही लंका ले जाने लगा तो उसका अहंकार तोड़ने के लिए भोलेनाथ ने अपने पैर के अंगूठे मात्र से कैलाश को दबाकर उसे स्थिर कर दिया।

लड़का हो या लड़की दोनों को ही इस समय भूल से भी नही बनाना चाहिए संबंध

इससे दशानन राव़ण का हाथ पर्वत के नीचे दब गया और वह दर्द से चिल्ला उठा- ‘शंकर शंकर’- जिसका मतलब था क्षमा करिए, क्षमा करिए और वह महादेव की स्तुति करने लगा। इस स्तुति को ही शिव तांडव स्तोत्र कहते हैं। बताया जाता है कि इस स्तोत्र से खुश होकर ही शिव ने लंकापति को ‘दशानन राव़ण’ नाम दिया था।

महादेव को खुश करने और उनकी कृपा पाने के लिए यह स्त्रोत अचूक है

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेवलम्ब्यलम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्‌। डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिवो शिवम्‌ ॥॥

जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि। धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥॥

धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुरस्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे। कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥॥

जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे। मदांधसिंधुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूतभर्तरि ॥॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः। भुजंगराजमालयानिबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिङ्गभा निपीतपंचसायकंनमन्निलिंपनायकम्‌। सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥॥

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