ये है माता महालक्ष्मी व्रत की पूरी पूजन विधि…
2018 में माता महालक्ष्मी व्रत 17 सितंबर सोमवार राधा अष्टमी के दिन से शुरू होगा। व्रत वाले दिन सुबह स्नान के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है। फिर मां लक्ष्मी से प्रार्थना की जाती है की 16 दिन तक व्रत को बिना किसी विघ्न के पूरा करें। व्रत करने वाला अपनी कलाई पर लाल रंग का रेशमी धागा बांधे जिसमें 16 गांठे लगी होनी चाहिए। (सुहागन महिलाएं बायीं कलाई पर अविवाहित दाईं कलाई पर और पुरुष दाईं कलाई पर) 16 दिन तक लगातार सुबह और शाम को शुद्ध गाय के दूध से बनी बर्फी का भोग मां लक्ष्मी को लगाएं। पहले दिन की पूजा खत्म होने के बाद अपनी कलाई में बंदा धारा उतारकर मां लक्ष्मी के चरणों में रख दें।
पूजा सामग्री- महालक्ष्मी जी की ऐसी तस्वीर जिसके दोनों तरफ हाथी अपनी सूंड उठाएं हो। आम के पत्ते, सूखा नारियल, सफेद रेशमी वस्त्र, लाल रेशमी धागा, गंगा जल, हल्दी, साबुत चावल, सुपारी, पान, दूर्वा, कलावा, लाल चुनरी आदि।
शास्त्रों में कलश पूजन के समय तांबे का कलश सबसे शुभ माना जाता है। यदि ये मिलना संभव न हो तो पीतल या मिट्टी का कलश भी रखा जा सकता है। कलश पर वरुण देव को विराजित किया जाता है। कलश में गंगा जल, सुपारी, आम के पत्ते, दूर्वा, नारियल और तांबे का पैसा डालना सबसे शुभ रहेगा।
पूजा विधि- जिस स्थान पर पूजा करनी है, उसे गंगा जल छिड़क कर साफ करें। फिर एक पाटा रख कर उस पर हल्दी और कुमकुम से शुभ मांगलिक चिह्न बनाएं। अब सफेद रेशमी रंग का कपड़ा बिछा कर उस पर प्रथम पूज्य गणेश जी को विराजित करके दाईं ओर कलश स्थापित करें। कलश में मिट्टी डालकर जौ डालें, इस मंत्र का जाप करें-
कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाषिृतः।
मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृताः।
कुक्षौतु सागरा सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा,
ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामगानां अथर्वणाः।
अङेश्च सहितासर्वे कलशन्तु समाश्रिताः।
वरुण देव को नमस्कार करने के बाद इस मंत्र का जाप कर कलश पूजन करें।
ऊँ अपां पतये वरुणाय नमः।
फिर कलश पर गंध, फूल और चावल चढ़ाएं। अब एक पाटा लेकर उस पर सफेद रेशमी कपड़ा बिछाकर लक्ष्मी जी की ऐसी तस्वीर स्थापित करें जिसके दोनों ओर ऊपर की ओर सूड़ किए हुए हाथी हों। महालक्ष्मी की ऐसी फोटो न मिल पा रही हो तो दो मिट्टी के हाथी भी दोनों तरफ रख सकते हैं।
व्रत से पहले रखें ध्यान- जो लोग 16 दिवसीय माता महालक्ष्मी व्रत का पालन करते हैं, उन्हें 16 दिन तक अन्न नहीं खाना चाहिए। केवल फलाहार, दूध और दूध से बने पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
व्रत संकल्प से पहले करें इस मंत्र का जाप- करिष्येहं महालक्ष्मि व्रतमें त्वत्परायणा। तदविध्नेन में यातु समप्तिं स्वत्प्रसादतः।।
पूजन विधि: 16 उपायों से षोडशुपचार पूजा करें। गौघ्रत का दीप व सुगंधित धूप करें, रोली, चंदन, ताल, पत्र, दूर्वा, इत्र, सुपारी, नारियल व कमल पुष्प चढ़ाएं। नैवेद्य में गेहूं के आटे से बना मीठा रोट चढ़ाएं व 16 श्रृंगार चढ़ाएं। हल्दी से रंगे 16-16 सूत के 16 सगड़े बनाकर हर सगड़े पर 16 गांठे देकर गजलक्ष्मी पर चढ़ाएं। इस व्रत में 16 बोल की कथा 16 बार कहें व कमलगट्टे की माला से इस विशिष्ट मंत्र का 16 माला जाप करें।
संकल्प मंत्र: करिष्यsहं महालक्ष्मि व्रत में त्वत्परायणा। तदविध्नेन में यातु समप्तिं स्वत्प्रसादत:॥
सोलह बोल की कथा: अमोती दमो तीरानी, पोला पर ऊचो सो परपाटन गांव जहां के राजा मगर सेन दमयंती रानी, कहे कहानी। सुनो हो महालक्ष्मी देवी रानी, हम से कहते तुम से सुनते सोलह बोल की कहानी॥