यूपी: क‍ैद‍ियों को 5 रु. में 1 टाइम का खाना, 28 साल से चला आ रहा ये बजट

अमेठी.आमतौर पर बाजार में चाय का रेट 5 से 10 रुपए है, लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि यूपी के थानों के लॉकअप में बंद कैदियों को एक वक्त के खाने की भी कीमत इतनी ही देनी होती है यानी 10 रुपए में दो टाइम का खाना। बढ़ी हुई महंगाई में इस रेट से बंदियों को खाना देने में इंस्पेक्टरों को भी मुश्किलें होती हैं, लेकिन शासन के बनाए प्रावधान के चलते उन्हें इतने ही पैसों में खाना देना होता है। इसमें पिछले 27 साल से कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। इस मामले में पुल‍िस का कहना है क‍ि जब शासन की ओर से बजट ही इतने का है तो अब सैलरी से तो इसे पूरा नहीं किया जाएगा। 1989 का बजट चल रहा है अब तक…
यूपी: क‍ैद‍ियों को 5 रु. में 1 टाइम का खाना, 28 साल से चला आ रहा ये बजट
 
– साल 1989 में हुए शासनादेश के मुताबिक, हवालात में बंद मुल्जिम को दो वक्त के खाने का बजट 10 रुपए स्वीकृत हुआ था। उस दौर में तो ये बजट मुनासिब था, लेकिन अभी इतने पैसे में कैदियों को खाना खिलाने में पुलिसवालों को भी मुश्किलें हो रही हैं।
– फिलहाल थानों में बंद होने वाले ज्यादातर आरोपियों को उनके परिजन खुद भोजन लाकर कराते हैं। जिन कैदियों की ऐसी व्यवस्था नहीं हो पाती, उनके लिए पुलिस इंतजाम करती है।

ये भी पढ़े: UP कैबिनेट में 7 प्रस्तावों पर मुहर, 40% महिलाओं को जॉब देने वाले उद्योगों को म‍ि‍लेगा फायदा

पिछले 27 साल से बजट में नहीं हुई बढ़ोतरी
– अमेठी जिले के सभी थानों में भी 10 रुपए में मुल्जिमों को भोजन देने का प्रावधान है। जिले की पुलिस चौकियों, थानों और कोतवाली में पूछताछ के लिए लाए गए मुल्जिमों को 24 घंटे में कोर्ट में पेश करने की व्यवस्था है।
– इस अवधि के दौरान मुल्जिमों को दो बार भोजन उपलब्ध कराने की व्यवस्था थाना पुलिस कराती है। वर्ष 1989 में भोजन के लिए बजट स्वीकृत किया गया था। तब से लेकर आज तक बजट में कोई संशोधन नहीं किया गया।
 
10 रुपए में भोजन कराना असंभव
– पुलिसवाले भी ऐसा मानते हैं कि किसी मुल्जिम को 10 रुपए में दो वक्त का खाना खिलाना संभव नहीं है। इसीलिए वे जिस भी मुल्जिम को पकड़कर लाते हैं, उसके भोजन की व्यवस्था वे अपने मेस में बने खाने के जरिए करते हैं। अगर व्यवस्था नहीं हो पाती है तो ये जिम्मेदारी नेताओं या दूसरे लोगों पर थोप दी जाती है।
 
क्या कहना है पुलिस का?
– मामले में एसपी अमेठी पूनम कहती हैं, ”इसमें हम या हमारा मातहत क्या करे? शासन की ओर से जब बजट ही इतने का है तो अब सैलरी से तो इसे पूरा नहीं किया जाएगा।”
Back to top button