यह मटका 800 वर्षों से नहीं भरा

एजेन्सी/  shitala-1426566343पाली। राजस्थान के पाली जिले में स्थित शीतला माता मंदिर अपनी प्राचीनता के अलावा एक खास परंपरा के लिए भी जाना जाता है। यहां कई वर्षों से एक विशेष परंपरा का पालन किया जाता है जो लोगों के लिए श्रद्धा व आश्चर्य का केंद्र है। यह परंपरा साल में दो बार निभाई जाती है।

इस मंदिर में शीतला देवी के सामने एक मटका है, जो जमीन में स्थित है। यहां साल में दो बार श्रद्धालुओं द्वारा जल चढ़ाया जाता है। मान्यता के अनुसार, यह परंपरा करीब 800 वर्षों से चली आ रही है परंतु आज तक देवी का मटका पूरा नहीं भरा।

भक्तों का मानना है कि यह मटका कभी नहीं भर सकता क्योंकि इस पर देवी माता की कृपा है। साल में दो अवसरों पर इस मटके का पत्थर हटाया जाता है और इसके बाद उसमें श्रद्धालुओं द्वारा पानी डाला जाता है। ये दिन हैं – शीतला सप्तमी और ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा। 

गांव की महिलाएं कलश में जल लाती हैं और इस मटके में चढ़ाती हैं। इसके पश्चात पुजारी माता को भोग अर्पित करता है तथा मटके का मुंह बंद कर दिया जाता है। 

मंदिर से जुड़ी धार्मिक मान्यता के मुताबिक, प्राचीन काल में यहां बाबरा नामक राक्षस का आतंक था। जब गांव में किसी कन्या का विवाह होता तो वह उसके दूल्हे की हत्या कर देता। तब लोगों ने मां से प्रार्थना की और उससे प्रसन्न होकर देवी ने राक्षस का वध कर दिया।

मृत्यु से पूर्व बाबरा की इच्छा थी कि उसे गर्मियों में दो बार जल जरूर पिलाया जाए। चूंकि सनातन संस्कृति में मृतकों को जल देने की परंपरा रही है, इसलिए देवी ने उसका यह अनुरोध स्वीकार कर लिया और जल भरने की यह परंपरा शुरू हो गई। 

तब से लेकर आज तक यह परंपरा जारी है। लोगों का मानना है कि माता के प्रताप से यह जल बाबरा की प्यास को शांत करता है, इसलिए यह मटका कभी नहीं भरता।

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