यहां लड़कियों पर बुरी नजर रखता था राजा, इसलिए छाती पर बनवाती हैं ‘टैटू’

रायपुर। टैटू (गोदना) बनवाना आज भले ही फैशन बन चुका हो, लेकिन छत्तीसगढ़ के इन आदिवासियों के लिए ये जरूरी प्रथा है। सदियों से चली आ रही इस प्रथा के पीछे जो कहानी यहां बताई जाती है वो चौंकाने वाली है। दरअसल, यहां के लोगों ने अपनी बेटियों को राजा से बचाने के लिए उनकी छाती और पीठ सहित शरीर के बाकी हिस्से पर गोदना गुदवाना शुरू कर दिया।
यहां लड़कियों पर बुरी नजर रखता था राजा, इसलिए छाती पर बनवाती हैं 'टैटू'
– बैगा आदिवासियों की लड़कियों को 12 से 20 साल में गोदना गुदवाना जरूरी है। शरीर के कुछ खास हिस्सों में गोदना गोदा जाता है। इस प्रोसेस में होने वाले दर्द को बर्दाश्त करने के लिए बुजुर्ग महिलाएं लड़की को साहस देती हैं।

– अलग-अलग उम्र में शरीर के अलग-अलग हिस्सों में गोदना गोदवाया जाता है। शुरुआत माथे से होती है। उसके बाद पैर, जांघ और हाथ के अलावा चेहरे की बारी आती है। सबसे आखिर में पीठ पर इसे गोदवाया जाता है। गोदना गोदने वाली महिला को बदनीन कहते हैं। जिस घर में लड़की का गोदना बन रहा होता है वहां पुरुषों का प्रवेश वर्जित होता है। ऐसी मान्यता है कि यदि गलती से भी किसी पुरुष ने ये प्रक्रिया देख ली तो वो पूरे जीवन सांभर का शिकार नहीं कर सकता।

 
राजा के चलते शुरू हुई थी ये प्रथा
 
– गोदना शुरू होने के पीछे बैगा जनजातियों के बीच एक मान्यता यह है कि एक राजा बेहद कामुक प्रवृत्ति का था।
– वह हर रोज एक नई लड़की को अपना शिकार बनाता था। एक बार वह जिस लड़की का उपभोग कर लेता था, उसके शरीर पर गोदना गोदवा देता था।
– इससे परेशान होकर लोगों ने अपनी कुंवारी लड़कियों को गोदना गोदवाना शुरू कर दिया ताकि राजा से उनको बचाया जा सकता है। फिर ये उपाय बाद में परंपरा में बदल गया ।
– इसके पीछे एक मान्यता ये भी है कि शरीर पर उभारा गया गोदना मरने के बाद भी उसकी वास्तविक पहचान होता है।
– मरने के बाद शरीर नष्ट हो जाता है, लेकिन ये गोदना आत्मा में अंकित हो जाता है और यही स्वर्ग में इनकी पहचान बनता है।
– ऐसी मान्यता है कि यदि महिलाएं यह गोदना न गोदवाएं तो स्वर्ग में भगवान के सामने सब्बल (खबरनाक हथियार) से गोदवाना पड़ता है।
Back to top button