13 जून मेहदी हसन की पुण्यतिथि : आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ !

‘गुलों में रंग भरे वादे-नौबहार चले’ 
राजस्थान के झुंझुनूं जिले के लूणा गांव में एक संगीतकार परिवार में जन्मे मेहदी हसन ने संगीत की आरंभिक शिक्षा ध्रुपद गायिकी के दो जाने-पहचाने चेहरों –  पिता उस्ताद अजीम खान और चाचा उस्ताद ईस्माइल खान से ली. देश के बंटवारे के बाद उनका परिवार पाकिस्तान चला गया. पाकिस्तान में मेहंदी हसन ने साइकिल मरम्मत से लेकर मोटर मेकैनिक तक का काम किया, लेकिन उनकी रूह की तलाश कुछ और थी. आजीविका के तमाम संघर्षों के बीच भी संगीत का उनका जुनून कभी कम नहीं हुआ. उन्होंने ठुमरी गायक के रूप में रेडियो पाकिस्तान से 1957 में अपनी गायकी की शुरूआत की, लेकिन उन्हें शोहरत मिली अपनी ग़ज़लों की वज़ह से ही. ग़ज़ल के गंभीर श्रोताओं ने उन्हें हाथों हाथ लिया और देखते-देखते वे पाकिस्तान के श्रेष्ठ ग़ज़ल गायक के रूप में स्थापित हो गये उनकी लोकप्रियता जल्दी ही उन्हें फिल्मों की ओर ले गयी. पाकिस्तानी फिल्मों में गाए सैकड़ों बेहतरीन गीतों ने उन्हें अवाम के दिलों पर हुकूमत बख्शीं. पिछली सदी के सातवें दशक तक उनका क़द इतना बड़ा हो चला था कि उन्हें देश की सीमाओं में बांधना मुश्किल हो गया. वे भारत और पाक में समान रूप सलोकप्रिय थे. 
लगभद पांच दशक तक गायिकी में सक्रिय रहने के बाद गले में कैंसर की वज़ह से मेहदी हसन ने 1999 से गाना छोड़ दिया था. उसके सालों बाद चाहने वालों की बेहिसाब ज़िद के बाद ‘सरहदें’ नाम से उनका अंतिम अलबम 2010 में आया. लंबे अरसे के बाद आए उनके इस रिकॉर्ड ने लोकप्रियता का शिखर छुआ था. उनकी एक दिली ख्वाहिश लता मंगेशकर के साथ ग़ज़लों का एक अलबम तैयार करने की थी. रिकॉर्डिंग की तमाम तैयारिया मुकम्मल थी, लेकिन गंभीर बीमारी की वज़ह से उनका यह सपना अधूरा रह गया. उनके आखिरी अलबम ‘सरहदें’ में फरहत शहजाद की एक ग़ज़ल ‘तेरा मिलना बहुत अच्छा लगे है’ की रिकार्डिंग उन्होंने 2009 में पाकिस्तान में की और उस ट्रेक को सुनकर 2010 में लता जी ने अपने हिस्से की रिकार्डिंग मुंबई में की. इस तरह दोनों का एक युगल गीत तैयार हुआ. 
Back to top button