मुसलमान होता तो मुझे भी मिलता लाख रुपये का अवार्ड

एजेन्सी/उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी की ओर से वर्ष 2015 के लिए घोषित पुरस्कारों की पारदर्शिता पर सवाल उठने लगे हैं। उर्दू के कई नए-पुराने लेखकों के अतिरिक्त किताब ‘नई फिक्रयाती जिहात’ के लेखक अजय मालवीय ने पुरस्कारों के चयन को लेकर कई गंभीर आरोप लगाते हुए अकादमी के पुरस्कार को ठुकरा दिया है।
अनेक पुरस्कारों से सम्मानित एंग्लो बंगाली इंटर कालेज में उर्दू के शिक्षक अजय ने साफ तौर पर अकादमी पर भेदभाव का आरोप लगाया है। कहा, यह कैसी पारदर्शिता है कि संपादित किताब पर दस हजार रुपये का अवार्ड जबकि मेरी मूल किताब को पांच हजार रुपये के अवार्ड के लिए चुना गया। बात अवार्ड की नहीं, पारदर्शिता होनी चाहिए। इसके बहाने असहिष्णुता का माहौल पैदा किया जा रहा है। इन परिस्थितियों में कोई लेखक कैसे काम करेगा।
कहा, उर्दू के नाम पूरी उम्र कुर्बान करने के बाद यह सिला मिला। अगर हम भी मुसलमान होते तो हमें भी एक लाख रुपये का अवार्ड मिलता। प्रेमचंद पर तो प्रोफेसर जाफर रजा ने हिन्दी और उर्दू दोनों में काम किया है लेकिन पुरस्कार ऐसे लोगों को दिए जा रहे जिन्होंने ऐसा कोई काम नहीं है। कमेटी में शामिल लोग इनाम पाने के हकदार कैसे हो गए।ईमानदारी की बात तो यह कि 166 की सूची में से 66 लोगों को एक मिनट में खारिज किया जा सकता है। इससे पहले भी अकादमी ने ऐसा ही भेदभाव किया है। उर्दू में हिन्दू धर्म की बात कहने वाली मेरी पांच सौ रुपये की किताब के लिए वर्ष 2000 में सिर्फ दो हजार रुपये का अवार्ड दिया गया। वहीं बिहार उर्दू एकेडेमी ने वर्ष 2009 में इमदाद असर अवार्ड और वर्ष 2011 में रिजवान अहमद अवार्ड से नवाजा।
उर्दू अदब के रचनाकार अजय मालवीय का दावा है कि उनकी ओर से श्रीमद्भगवत गीता का उर्दू अनुवाद सबसे अलग है। इस पर डाक्यूमेंटरी भी बनी है जो यूट्यूब पर है। अब तक अजय की सात किताबें आ चुकी हैं।
साहित्य अकादमी अवार्ड कमेटी के सदस्य अजय के उत्तर आधुनिकता सहित विभिन्न विषयों पर आधारित लेख पाकिस्तानी वेब मैगजीन हमारी वेब और टोरंटो की वेब मैगजीन शेरो सुखन के अतिरिक्त देश-दुनिया की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं।