मायावती के इस निर्णय से BSP को लग सकता है झटका!

विधानसभा चुनावों में मायावती का निर्णय का प्रभाव
राज्य विधानसभा में अनुसूचित जाति और जनजाति (SC/ST) के लिए आरक्षित 86 सीटों को शामिल करने बाद गैर-ब्राह्मण ऊपरी जातियों (ऊंची जाति में आने वाले गैर-ब्राह्मण उम्मीदवार) और ओबीसी के लिए 115 से भी कम सीटें बची है। ऐसे में ओबीसी उम्मीदवारों के लिए स्पेस घट रहा है, क्योंकि बचे हुए स्पेस में गैर ब्राह्मण जातियां भी शामिल होंगी।
2012 में बसपा ने 40 गैर ब्राह्मणों को टिकट दिया था और अगर इस नजरिये से देखा जाए तो ओबीसी के उम्मीदवारों के लिए महज 70 सीटें बचती हैं। जबकि 2012 के चुनाव में पार्टी ने 113 ओबीसी कैंडिडेट को टिकट दिया था। बसपा के एक सूत्र ने बताया कि 2017 विधानसभा चुनाव के लिए बीएसपी के लिए चुनावी रणनीति में दलित-ब्राह्मण-मुस्लिम धुरी होंगे। ब्राह्मणों ने देखा है कि मायावती ने 2007 के बाद सबसे बेहतर प्रशासन दिया है। जबकि दंगों के बाद एसपी के प्रति मुस्लिमों का मोह भंग हुआ है”
हालांकि, जिस ओबीसी को बसपा का वोट बैंक माना जाता है उसके लिए स्पेस घटने से बसपा के गैर-यादव ओबीसी वर्ग में असंतोष बढ़ाने का काम किया है। स्वामी प्रसाद मौर्य के जाने के बाद पार्टी में केवल राम अचल भर ही प्रमुख ओबीसी चेहरे बचे हैं। सूत्रों का कहना है कि स्वामी प्रसाद मौर्य की बगावत बहनजी को अपनी चुनावी रणनीति में तब्दीली करने को मजबूर कर सकती है।