महाराष्ट्र: कोर्ट ने शख्स को आठ साल की बच्ची के यौन उत्पीड़न का दोषी माना

कपूरबावड़ी पुलिस स्टेशन में चार अगस्त 2018 को मुकदमा दर्ज किया गया था। इसमें कहा गया था कि 52 वर्षीय आरोपी ने सार्वजनिक शौचालय में नाबालिग का यौन उत्पीड़न और दुष्कर्म किया। कोर्ट ने कहा कि साक्ष्यों को देखकर पता चलता है कि आरोपी ने पीड़िता से दुष्कर्म नहीं किया है। कोर्ट ने आरोपी को यौन उत्पीड़न का दोषी माना। जबकि सबूतों के अभाव में उसे दुष्कर्म के आरोप से बरी कर दिया।

महाराष्ट्र के ठाणे की एक अदालत ने 2018 में आठ साल की बच्ची के यौन उत्पीड़न मामले में फैसला सुनाया। कोर्ट ने मामले में गिरफ्तार आरोपी को यौन उत्पीड़न का दोषी माना। जबकि सबूतों के अभाव में उसे दुष्कर्म के आरोप से बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि साक्ष्यों को देखकर पता चलता है कि आरोपी ने पीड़िता से दुष्कर्म नहीं किया है।

पॉक्सो से जुड़े मामलों की सुनवाई कर रही विशेष अदालत के न्यायाधीश डीएस देशमुख ने आरोपी रमेश सिंह विजय बहादुर सिंह को यौन उत्पीड़न का दोषी ठहराया और उसे कारावास की अवधि (सात वर्ष और दो महीने की सजा सुनाई। जो कि आरोपी पहले ही काट चुका है। अदालत ने आरोपी पर एक हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। वहीं कोर्ट ने आरोपी को दुष्कर्म के आरोपों से बरी कर दिया।

विशेष सरकारी वकील रेखा हिवराले ने बताया कि कपूरबावड़ी पुलिस स्टेशन में चार अगस्त 2018 को मुकदमा दर्ज किया गया था। इसमें कहा गया था कि 29 अप्रैल, 2018 से 6 मई, 2018 के बीच 52 वर्षीय आरोपी ने सार्वजनिक शौचालय में नाबालिग का यौन उत्पीड़न किया। पीड़िता के पिता ने शिकायत तब दर्ज कराई जब उसके भाई ने आरोपी को अपराध करते देखा। पीड़िता ने भी यौन उत्पीड़न का खुलासा किया।

आरोपी के अधिवक्ता संजय गायकवाड़ ने सुनवाई के दौरान तर्क दिया कि पीड़िता की एकमात्र गवाही असंगत और अपर्याप्त थी। पुलिस और मजिस्ट्रेट को दिए गए उसके बयानों में विसंगतियां बताईं। जबकि पीड़िता के चाचा के घटना को देखने की बात भी गलत थी। बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि मेडिकल जांच रिपोर्ट में यौन उत्पीड़न का समर्थन नहीं किया गया है। पीड़िता की गवाही की पुष्टि किसी भी स्वतंत्र साक्ष्य से नहीं हुई है।

इस पर अदालत ने कहा कि दुष्कर्म के आरोप को साबित करने के लिए भौतिक साक्ष्यों का अभाव था। चिकित्सा अधिकारी को पीड़ित लड़की के गुप्तांग पर कोई चोट के निशान नहीं मिले। जबकि अभियुक्त की मेडिकल जांच में घर्षण के कारण चोटें पाई गईं। रिपोर्ट में यह कहा गया कि आरोपी केवल यौन उत्पीड़न करने में सक्षम है, न कि उसने ऐसा किया था।

न्यायाधीश ने कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाह को दिए गए अपने इतिहास में पीड़िता ने स्पष्ट रूप से यौन उत्पीड़न का जिक्र नहीं किया। उसने केवल इतना कहा कि अभियुक्त ने सार्वजनिक शौचालय में उसके गुप्तांग को छुआ।

अदालत ने कहा कि इसलिए दुष्कर्म के आरोप लागू नहीं होते। जबकि रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि पीड़िता के साथ आरोपी ने यौन उत्पीड़न किया है। आरोपी की उम्र, उसके परिवार की निर्भरता और उसकी गिरफ्तारी के बाद से जेल में बिताए गए सात साल से अधिक समय को ध्यान में रखते हुए अदालत ने सिंह को पहले से ही बिताई गई अवधि की सजा सुनाई। अदालत ने पीड़िता को मुआवजा देने के लिए मामले को जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए), ठाणे को सौंपने की सिफारिश की है।

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