मनुष्य ही नहीं, अप्सराओं में भी होती थीं आदतें

जब भी पौराणिक चरित्र का उल्लेख हमारे सामने आता है, जो जेहन में देवी, देवताओं, गंधर्व, अप्सराओं की छबि उभरती है। यह छबि मन को मोह लेने वाली होती है। देवी-देवताओं की छबि की ओर देखते ही हमारे मन में अध्यात्म का संचार होता है।

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मनुष्य ही नहीं, अप्सराओं में भी होती थीं आदतें

तो दूसरी ओर अप्सराओं का जिक्र होने पर एक सुंदर और प्रेम की छबि जेहन में बनती है। हर पौराणिक चरित्र की विशेष बात होती थी। उनकी विशेष आदतें होती थीं। जिनके कारण वह उस समय प्रचलित होते थे। वह जहां भी जाते उनकी आदतों के बारे में जिक्र जरूर होता था।
 जैसे देवर्षि नारद वह जहां भी जाते नारायण-नारायण की उद्घोष कर अपनी बात आरंभ करते थे। ऋषि दुर्वासा जो बहुत जल्दी क्रोधित हो जाया करते थे और क्रोध में श्राप देते थे।
 
उनके श्राप से कई लोगों का सर्वनाश हुआ, लेकिन जब ऋषि को अपने क्रोध का अंदेशा होता तो श्राप को दूर करने के उपाय जरूर बताया करते थे। ऋषि दुर्वासा के श्राप के बारे में हमारे धर्म ग्रंथों में कई पौराणिक कहानियों का उल्लेख मिलता है।
 ठीक इसी तरह अप्सराएं पृथ्वी लोक में रहने वाले पुरुषों, राजा-महाराजाओं विशेष रूप से ऋर्षियों पर आसक्त हो जाया करती थीं। इतना ही नहीं वह उनके साथ रमण करतीं और संतति उत्पन्न कर पृथ्वी लोक पर ही छोड़कर स्वयं स्वर्गलोक चलीं जातीं थी।
 इस पूरे घटनाक्रम को उनकी आदत एक हद तक कहा जा सकता है। हालांकि उनका किसी पुरुष के साथ रमण प्रेम के कारण होता था।
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