भोलेनाथ के ससुराल से लेकर पाताल तक, सीहोर में दिखा शिवभक्ति का अद्वितीय स्वरूप

मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में श्रावण मास के दौरान शिवभक्ति का उत्साह चरम पर है। यहां स्थित चार प्रमुख शिव मंदिर – सहस्त्रलिंगेश्वर, आष्टा का शंकर मंदिर, मनकामेश्वर मंदिर और पातालेश्वर महादेव – अपनी ऐतिहासिक, धार्मिक और रहस्यमयी विशेषताओं के कारण श्रद्धालुओं का ध्यान खींच रहे हैं।

श्रावण मास में भगवान भोलेनाथ की आराधना के लिए देशभर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। मध्यप्रदेश के सीहोर जिले में यह उत्साह अपने चरम पर है, जहां के कई प्राचीन और रहस्यमयी शिव मंदिरों में भक्तों की लंबी कतारें देखी जा रही हैं। मान्यता है कि श्रावण मास में की गई पूजा वर्षभर के पुण्य के बराबर होती है। सीहोर जिले के चार प्रमुख शिव मंदिर – सहस्त्रलिंगेश्वर, आष्टा शंकर मंदिर, मनकामेश्वर मंदिर और पातालेश्वर मंदिर – भक्तों की आस्था के केंद्र बने हुए हैं।

सहस्त्रलिंगेश्वर मंदिर : एक शिवलिंग में समाहित हैं हजार शिवलिंग
सीहोर जिले के बड़ियाखेड़ी में स्थित सहस्त्रलिंगेश्वर मंदिर अनूठे शिवलिंग के कारण देशभर में प्रसिद्ध है। यहां एक विशाल शिवलिंग में एक हजार छोटे-छोटे शिवलिंग समाहित हैं। मंदिर के पुजारी सुरेश शर्मा के अनुसार, यह शिवलिंग सीवन नदी से स्वयंभू रूप में प्राप्त हुआ था, जिसके बाद उसी स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया गया।

इस पाषाण निर्मित शिवलिंग की स्थापना 300 से 400 वर्ष पूर्व मानी जाती है और इसे तांबे से सुसज्जित किया गया था। श्रावण मास के दौरान यहां विशेष पूजा-अर्चना होती है और सोमवार को श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। बताया जाता है कि देशभर में सहस्त्रलिंगेश्वर जैसा मंदिर केवल तीन ही स्थानों पर है।

आष्टा: मां पार्वती का मायका, जहां भगवान शंकर जाते हैं ससुराल
सीहोर जिले से लगभग 45 किमी दूर आष्टा नगर भी शिवभक्तों के लिए खास महत्व रखता है। यहां स्थित प्राचीन शंकर मंदिर को मां पार्वती का पीहर कहा जाता है। मंदिर में भगवान शिव और मां पार्वती की एक साथ प्रतिमाएं हैं, जहां भक्तों को दोनों के दर्शन एक साथ होते हैं।

मंदिर के पुजारी हेमंत गिरी के अनुसार, यह मंदिर वर्षों पुराना है और ऐसा विरला स्थल है जहां से मां पार्वती की उत्पत्ति बताई जाती है। श्रावण मास और महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां विशेष भीड़ रहती है। हाल के वर्षों में जनसहयोग से मंदिर का कायाकल्प भी किया गया है, जिससे इसकी भव्यता और आस्था दोनों में वृद्धि हुई है।

मनकामेश्वर मंदिर : जहां हर मुराद होती है पूरी
सीहोर शहर के तहसील चौराहे पर स्थित मनकामेश्वर मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां आने वाला भक्त खाली हाथ नहीं लौटता। श्रावण मास के दौरान यहां विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। पेशवाकालीन काल में निर्मित यह मंदिर करीब 200 वर्ष पुराना है और इसकी शिव प्रतिमा नर्मदा स्टोन से बनी है। मंदिर परिसर में स्थित बावड़ी भी आकर्षण का केंद्र है, जिसमें सालभर एक जैसा जल स्तर बना रहता है। पुरातत्व विशेषज्ञों ने भी इसके ऐतिहासिक महत्व को प्रमाणित किया है।

पातालेश्वर महादेव मंदिर, सातदेव : जहां आज भी रहस्य जीवित हैं
नर्मदा नदी के उत्तर तट पर बसे सातदेव गांव में स्थित पातालेश्वर महादेव मंदिर अपने रहस्यमय स्वरूप के लिए जाना जाता है। मान्यता है कि यहां से एक सुरंग सीधे नर्मदा नदी तक जाती है। यह मंदिर उस स्थान पर स्थित है जहां नर्मदा, सीप और नइडी नदियों का संगम होता है। स्थानीय बुजुर्गों और संतों के अनुसार, यहीं सप्त ऋषियों ने वर्षों तक तपस्या की थी, जिसके चलते गांव का नाम ‘सातदेव’ पड़ा।

मंदिर का शिवलिंग स्वयंभू है और कहा जाता है कि इसकी लंबाई हर वर्ष बढ़ती जाती है। शिवलिंग के पास सिक्का डालने पर देर तक गूंज सुनाई देती है, जो इसकी गहराई और प्राचीनता को प्रमाणित करती है। मंदिर के नीचे नर्मदा तट पर स्थित कुंड में स्नान करने का भी विशेष महत्व बताया जाता है।

श्रावण मास में सीहोर जिले के इन प्राचीन शिव मंदिरों में श्रद्धालु दूर-दूर से आकर पूजा-अर्चना कर रहे हैं। किसी को सहस्त्र शिवलिंगों के दर्शन का सुख चाहिए, तो कोई मां पार्वती के पीहर में भोलेनाथ से आशीर्वाद मांग रहा है। हर मंदिर की अपनी अनूठी कथा, रहस्य और विशेषता है, जो श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक अनुभव से भर देती है।

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