भारत ने विकसित की विश्व की पहली जीनोम संपादित धान की किस्में

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने जीनोम एडिटिंग (संपादित) कर धान की दो नई किस्में विकसित की हैं, जिनकी विशेषता कम लागत, कम पानी और कम समय में अधिक उत्पादन है। इससे 30 प्रतिशत तक धान का उत्पादन बढ़ जाएगा और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को भी कम करने में मदद मिलेगी। पहली किस्म का नाम कमला (डीआरआर-100) है और दूसरी का नाम डीएसटी राइस-1 है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रविवार को इसे जारी किया।

भारत जीनोम संपादित धान से चावल की किस्में विकसित करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। चौहान ने इसे कृषि शोध के क्षेत्र में भारत की ऐतिहासिक उपलब्धि बताया और कहा कि ये किस्में राष्ट्र में दूसरी हरित क्रांति का बिगुल बजाने में अग्रणी भूमिका निभाएंगी। जल्द ही किसानों को उपलब्ध करा दिया जाएगा।

जीनोम तकनीक से तैयार, जलवायु बदलाव से लड़ने में मददगार

देश में विकसित विश्व की पहली दो जीनोम संपादित धान की किस्मों का विकास वैज्ञानिक शोध में नवाचार की शुरुआत है। इस तकनीक के जरिये मूल डीएनए में सूक्ष्म बदलाव कर फसलों की नई किस्म तैयार की जाती है। सामान्य फसलों में ऐसे परिवर्तन को केंद्र सरकार के जैव सुरक्षा नियमों के तहत मंजूरी प्राप्त है।

आईसीएआर 2018 से दोनों किस्मों को विकसित करने के लिए काम कर रहा था। इन किस्मों को छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र की कृषि परिस्थितियों के अनुरूप विकसित किया गया है।

45 लाख टन तक बढ़ेगा उत्पादन, सिंचाई में कमी

इन राज्यों में इन किस्मों की खेती से लगभग 45 लाख टन अधिक धान का उत्पादन होगा। ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में 20 प्रतिशत यानी 3,200 टन की कमी आएगी। फसल तैयार होने में 20 दिन कम लगने से लगभग तीन सिंचाई कम लगेगी। जल्दी पकने से अगली फसल की बुआई समय से हो सकेगी।

सांबा महसूरी से विकसित ‘कमला’, एमटीयू से बना ‘पूसा डीएसटी राइस’

कमला को जीनोम तकनीक के जरिये आईसीएआर के भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान (हैदराबाद) ने बारीक दाने वाली किस्म सांबा महसूरी (बीपीटी 5204) से विकसित किया है। परिष्कृत बीज में मूल किस्म सांबा महसूरी की तुलना में दानों की संख्या ज्यादा होगी। इसे कम सिंचाई की जरूरत होगी और यह 20 दिन पहले तैयार हो जाएगी।परीक्षण में कमला की औसत उपज प्रति हेक्टेयर 5.3 टन पाई गई है, जो सांबा महसूरी से लगभग 20 प्रतिशत अधिक है। अनुकूल परिस्थितियों में यह 30 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।

पूसा डीएसटी राइस-1: दक्षिण भारत के लिए वरदान

दूसरी किस्म पूसा डीएसटी राइस-1 है, जिसे आईसीएआर (पूसा, नई दिल्ली) ने विकसित किया। इसका दाना लंबा और बारीक होगा। दक्षिण भारत में रबी मौसम के लिए यह अत्यधिक उपयुक्त है। यह अपनी मूल किस्म एमटीयू 1010 की तुलना में 20 प्रतिशत अधिक उपज देगी।

कमला किस्म के विकास के लिए डॉ. सत्येंद्र कुमार मंग्राउथिया, डॉ. आरएम सुंदरम, डॉ. आर. अब्दुल फियाज, डॉ. सीएन नीरजा और डॉ. एसवी. साई प्रसाद तथा पूसा डीएसटी राइस के लिए डॉ. विश्वनाथन सी, डॉ. गोपाल कृष्णनन एस, डॉ. संतोष कुमार, डॉ. शिवानी नागर, डॉ. अर्चना वत्स, डॉ. रोहम रे, डॉ. अशोक कुमार सिंह, डॉ. प्रांजल यादव, राकेश सेठ, ज्ञानेंद्र सिंह आदि का बड़ा योगदान है।

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