भाजपा के लिए वरदान भी बन सकता है बसपा का ये कदम

लखनऊ. बसपा सुपीमो मायावती ने मिशन यूपी के लिए 401 उम्मीदवारों की सूची घोषित करने के साथ ही अपनी अनंति को अमली जामा पहना दिया है. इस बार दलित मुस्लिम गठजोड़ करने की रणनीति पर चल रही मायावती ने 97 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं. मायावती का अनुमान है कि उसके कोर दलित वोटो के साथ अगर मुस्लिम वोटर मिल जाए तो फतह से कोई रोक नहीं सकता. सूबे में वोटो के प्रतिशत देखते हुए मायावती की यह रणनीति पुख्ता भी लगती है. मायावती ने इस बार पिछडो को भी पर्याप्त संख्या में टिकट दिए हैं. उनका हमेशा से यह मानना रहा है कि अलग जाति के प्रत्याशी अपनी बिरादरी का भी वोट ले कर आयेंगे और बसपा का वोट बैंक बढ़ जायेगा.

मायावती के इस कदम से भाजपा के रणनीतिकारो के चेहरे पर छुपी हुयी सी मुस्कान भी आ रही है. भाजपा खेमे का मानना है कि अब इस बात की संभावनाएं भी कहीं न कही बढ़ गई हैं कि अगर कहीं मायावती की यह रणनीति असफल हुयी तो इसका पूरा पूरा लाभ भाजपा को ही होगा. इस सोच के आधार भी बहुत पुख्ता हैं.

मायावती ने पश्चिमी यूपी के मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है. मुजफ्फर नगर दंगो के बाद पश्चिमी यूपी में एक बड़ा सामप्रदायिक विभाजन हुआ था जिसका लाभ लोकसभा चुनावो में भाजपा ने खूब उठाया. इसके बाद अख़लाक़ काण्ड और कैराना से पलायन के जरिये भी भाजपा ने ऐसे मुद्दे उठाये जिससे यह विभाजन राजनितिक रूप से बना रहे. इन मामलों में अखिलेश सरकार लगातार घिरती भी रही. मायावती भी सरकार के खिलाफ खूब मुखर हुयी और इन्ही घटनाओ के बाद मायावती ने मुस्लिम दलित गठजोड़ की रणनीति बनाई.

मगर मायावती का यह कदम भी एक तरह से भाजपा के एजेंडे को मजबूत ही कर रहा है. इतनी बड़ी संख्या में उतारे गए मुस्लिम प्रत्याशियों के बाद अगर अंदरखाने भी फिर से राजनितिक रूप से सांप्रदायिक विभाजन हुआ तो निश्चित रूप से हिन्दू वोट भाजपा के पक्ष में जायेंगे और इसका सीधा लाभ जीत के रूप में भाजपा को मिलेगा.

भाजपा ने बसपा में बड़ी फूट डाल कर भले ही बसपा को कमजोर किया हो मगर केंद्र में नरेन्द्र मोदी सरकार के आने के बाद से दलित अत्याचार की जितनी भी घटनाये हुयी उसने लोकसभा चुनावो में बिखर चुके मायावती के कोर दलित वोटो को फिर से एकजुट किया है. हलाकि दलित वोटो में भी भाजपा अच्छी खासी सेंध लगा चुकी है और गैर जातव वोटरों का एक बड़ा हिस्सा भाजपा के पाले में खड़ा हुआ है.

भाजपा और बसपा के रिश्तो की खबरे भी अक्सर आती रहती हैं. उत्तर प्रदेश में भाजपा के समर्थन से सरकार चलाना हो या फिर 2014 के लोकसभा चुनावो के दौरान मायावती का वह बयान जिसमे उन्होंने कहा था कि अगर आपका प्रत्याशी नही जीत रहा हों तो आप लोगों को कहाँ वोट डालना है ये आप सबको बताया जा चुका है.

साफ़ जाहिर है कि मायावती पर भरोसा मुस्लिम वोटर स्वाभाविक रूप से तो नहीं करते मगर मायावती को लगता है कि समाजवादी पार्टी के भीतर उठे झगड़े और अखिलेश सरकार के कार्यकाल में हुए दंगो ने मुस्लिम समाज को सपा से दूर कर दिया है. बहरहाल मायावती के इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिमो को टिकट देने से मुस्लिम वोटो में कुछ न कुछ विभाजन तो जरूर ही होगा जिसका फायदा भाजपा को ही होगा और यदि समाजवादी पार्टी हारी और किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि सूबे में एक बार फिर बसपा और भाजपा मिल कर सरकार बनाये.

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