भगवान शिव को क्यों कहा जाता है गंगाधर? जानिए पौराणिक कथा

सावन (Sawan 2025) का महीना भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित है। उन्हें गंगाधर के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि उन्होंने अपनी जटाओं में देवी गंगा को धारण कर रखा है। ऐसा माना जाता है कि उनके इस स्वरूप की पूजा करने से सभी पापों का नाश होता है।
सावन का पवित्र महीना भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित है और इस दौरान (Sawan 2025) उनके विभिन्न स्वरूपों और नामों का ध्यान किया जाता है। भगवान शिव के अनेक नामों में से एक ‘गंगाधर’ है, जिससे जुड़ी एक पौराणिक कथा प्रचलित है। उन्हें गंगाधर क्यों कहा जाता है, इसके पीछे एक पौराणिक कथा है आइए उस आर्टिकल के बारे में जानते हैं, जो इस प्रकार हैं।
मां गंगा के पृथ्वी पर अवतरण की कथा
पद्म पुराण के अनुसार, महाराजा सगर के साठ हजार पुत्रों को कपिल मुनि के क्रोध से भस्म होना पड़ा था। उनकी आत्माओं को मुक्ति तभी मिल सकती थी, जब स्वर्ग से पवित्र गंगा नदी पृथ्वी पर अवतरित होकर उनके भस्म पर प्रवाहित हों। सगर के पौत्र अंशुमान और फिर उनके पुत्र दिलीप ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए बहुत सारे प्रयास किए, लेकिन वे सफल नहीं हो पाएं।
इसके बाद दिलीप के पुत्र और रघुवंश के प्रतापी राजा भागीरथ ने घोर तपस्या की। उन्होंने ब्रह्मा जी को खुश किया और गंगा को पृथ्वी पर लाने का वरदान मांग लिया। ब्रह्मा जी ने भागीरथ को बताया कि गंगा का वेग इतना प्रबल होगा कि पृथ्वी उसे संभाल नहीं पाएगी। इसे धारण करने के लिए भगवान शिव की सहायता लेनी पड़ेगी।
शिव जी ने गंगा जी को क्यों धारण किया?
भागीरथ ने भगवान शिव को खुश करने के लिए कठोर तपस्या शुरू की। उनकी तपस्या से खुश होकर भगवान शिव प्रकट हुए और गंगा को पृथ्वी पर धारण करने के लिए सहमत हो गए। जब गंगा स्वर्ग से देवी गंगा प्रचंड वेग के साथ पृथ्वी की ओर प्रवाहित हुईं, तो भगवान शिव ने अपनी जटाओं को फैला दिया और गंगा की पूरी धारा को अपनी जटाओं में समेट लिया। गंगा उनकी जटाओं में उलझ कर रह गईं और उनका वेग शांत हो गया।
इसके बाद, शिव ने अपनी जटाओं से गंगा की कुछ धाराओं को पृथ्वी पर प्रवाहित होने दिया, जिससे गंगा धीरे-धीरे पृथ्वी पर अवतरित हुईं और सगर पुत्रों का उद्धार हुआ।
‘गंगाधर’ नाम कैसे पड़ा?
इस घटना के बाद से ही भगवान शिव को ‘गंगाधर’ के नाम से जाना जाने लगा, जिसका मतलब है ‘गंगा को धारण करने वाला’। यह नाम न केवल उनकी शक्ति और नियंत्रण का प्रतीक है, बल्कि यह उनकी भक्तों के प्रति करुणा को भी दिखाता है। माना जाता है कि शिव जी के इस स्वरूप की पूजा करने से सभी पापों का नाश होता है। साथ ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।