इस नाम से खिलता है चीन में ‘ब्रह्म कमल’

ब्रह्म कमल सुंदर, सुगंधित और दिव्य फूल है। देवताओं का प्रिय यह फूल, आधी रात को खिलता है। वनस्पति शास्त्र में ब्रह्म कमल की 31 प्रजातियां बताई गईं हैं। यह फूल हिमालय पर खिलता है।
ब्रह्म कमल को चीन में ‘तानहुआयिझियान’ कहते हैं
चीन में भी ब्रह्म कमल खिलता है जिसे यहां ‘तानहुआयिझियान’ कहते हैं जिसका अर्थ है प्रभावशाली लेकिन कम समय तक ख्याति रखने वाला। इसका वानस्पतिक नाम ‘साउसुरिया ओबुवालाटा’ है।
वर्ष में केवल जुलाई-सितंबर के बीच खिलने वाला यह फूल मध्य रात्रि में बंद हो जाता है। ब्रह्म कमल औषधीय गुणों से भरपूर है। इसे सुखाकर कैंसर रोग की दवा में उपयोग किया जाता है।
तो वहीं, इससे निकलने वाले पानी को पीने से थकान मिट जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्म कमल देवी नंदा का प्रिय पुष्प है, इसलिए इसे नंदाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोडने के भी सख्त नियम होते है।
ब्रह्मकमल को अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे उत्तरखंड में ब्रह्मकमल, हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस।
उत्तराखंड और हिमालय पर पाया जाने वाले ब्रह्म कमल को हिमाचल प्रदेश में ‘दूधाफूल’, कश्मीर में ‘गलगल’, श्रीलंका में ‘कदुफूल’ और जापान में ‘गेक्का विजन’ कहते हैं। ब्रह्म कमल का पौधा पानी में नहीं, बल्कि जमीन पर ही होता है।
ब्रह्म कमल से जुड़ी मान्यताएं…
कहते हैं ब्रह्मा का सृजन ही ब्रह्मकमल है। इसके पीछे एक पौराणिक कहानी का उल्लेख मिलता है। किंवदंती है कि माता पार्वती ने जब गणेश जी का सृजन किया तो भोलेनाथ बाहर गए हुए थे। माता पार्वती स्नान कर रही थीं और उन्होंने गणेश को घर के बाहर पहरा देने के लिए कहा। तभी शिव वहां आए।
गणेश ने उन्हें अंदर नहीं आने दिया। हुआ यूं कि क्रोध में शिव ने गणेश का सिर त्रिशूल से काट दिया। जब माता पार्वती को पता चला तो वह बहुत गुस्सा हुईं।
लेकिन जब उन्हें वास्तविक स्थिति का पता चला तो तो ब्रह्मा जी से आग्रह किया इसके बाद ब्रह्मा ने ब्रह्म कमल का सृजन किया। जिसकी मदद से गणेश जी का सिर हाथी के सिर के रूप में जोड़ा गया।