बिहार में जीत ने फिर साबित की वैश्विक राजनीतिक पकड़

बिहार विधानसभा चुनावों म प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की दमदार जीत ने केवल घरेलू राजनीति को ही प्रभावित नहीं किया, बल्कि पश्चिमी मीडिया को भी सीधे केंद्रित कर लिया है। ठीक उसी तरह जैसे न्यूयॉर्क के मेयर चुनाव में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सक्रिय भागीदारी ने अमेरिकी प्रेस का ध्यान खींचा था, बिहार में मोदी द्वारा चुनाव प्रचार का नेतृत्व किए जाने ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों को इस परिणाम की गहन व्याख्या करने के लिए प्रेरित किया।
द न्यूयॉर्क टाइम्स के दक्षिण एशिया संबंधी विश्लेषक जेफरी गेटलमैन ने लिखा कि बिहार का परिणाम स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि नरेंद्र मोदी की चुनावी अपील किसी भी राज्य की राजनीतिक जटिलताओं से ऊपर जाकर मतदाताओं तक पहुंचती है।
द न्यूयॉर्क टाइम्स की दक्षिण एशिया रिपोर्टिंग प्रमुख हन्नाह बीच ने अपनी टिप्पणी में लिखा कि बिहार परिणाम दर्शाता है कि नरेंद्र मोदी की चुनावी पहचान राज्य-विशिष्ट राजनीतिक समीकरणों के ऊपर उठकर प्रभाव डालती है। उनके अनुसार इस चुनाव में स्थानीय मुद्दों के साथ राष्ट्रीय नेतृत्व और राजनीतिक ब्रांडिंग भी प्रभावी रही।
द वॉशिंगटन पोस्ट की नीहल कृष्णन, जो भारत को निकटता से कवर करती हैं, ने अपने विश्लेषण में लिखा कि चुनाव प्रचार में मोदी के सीधे उतरने से मुकाबला पारंपरिक क्षेत्रीय राजनीति के बजाय राष्ट्रीय नेतृत्व के जनमत परीक्षण में बदल गया। उन्होंने लिखा कि मोदी की जनसभाओं ने चुनाव के आखिरी दौर में मतदाताओं के रुझान को निर्णायक रूप से प्रभावित किया।
बीबीसी वर्ल्ड की राजनीतिक विश्लेषक सोनिया जॉर्ज ने रिपोर्ट किया कि मोदी भारतीय मतदाताओं में असाधारण पकड़ बनाए हुए है और बिहार में यह पकड़ बिना किसी कमजोरी के दिखाई दी। अधिकतर राज्यों के मतदाता मोदी के वादों को गारंटी के रूप में देखते हैं।
फ्रांस 24 की रिपोर्ट में अंतरराष्ट्रीय राजनीति विशेषज्ञ फ्रेडरिक ग्रोसेट ने कहा कि मोदी के नेतृत्व में चुनाव केवल चुनाव नहीं रहते, बल्कि राष्ट्रीय पहचान और विचारधारा के इर्द-गिर्द जनमत-सर्वेक्षण का रूप ले लेते हैं। बिहार इसका ताजा उदाहरण है।
द टाइम्स और द इंडिपेंडेंट के अनुसार भारत में प्रधानमंत्री मोदी की विश्वसनीयता बढ़ती जा रही है। चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि जनता विकास की धारा के साथ बहना चाहती है, जिसकी पतवार मोदी के हाथ में है। प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस को गहन आत्ममंथन की जरूरत है।
द गार्जियन के वरिष्ठ अंतरराष्ट्रीय मामलों के विश्लेषक जूलियन बॉर्जर ने टिप्पणी की कि बिहार के नतीजे विपक्ष के लिए चेतावनी हैं। गठबंधन राजनीति पर्याप्त नहीं है, भारतीय मतदाता अब एक मजबूत और स्पष्ट नेतृत्व मॉडल को प्राथमिकता दे रहे हैं।
राजनीतिक धुरी…
अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक विशेषज्ञ यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफर्ड के डॉ. माइक हेनरी ने कहा, भारत में चुनावी राजनीति धीरे-धीरे लीडरशिप सेंट्रिक मॉडल की ओर बढ़ रही है और इस मॉडल में मोदी के सामने वर्तमान में कोई ठोस विकल्प नहीं दिखता।
द इकोनॉमिस्ट के राजनीतिक स्तंभकार निकोलस शैंपियन ने लिखा कि बिहार का परिणाम आने वाले वर्षों के लिए भारत की चुनावी रणनीतियों को प्रभावित करेगा। भारतीय राजनीति में मोदी का नैरेटिव अधिक प्रभावी है।
बड़े राजनीतिक संकेत
अंतरराष्ट्रीय मीडिया के आकलन के अनुसार बिहार चुनाव ने दो बड़े राजनीतिक संकेत दिए हैं…
मोदी की व्यक्तिगत राजनीतिक पकड़ और ब्रांड वैल्यू भारतीय मतदाताओं पर अब भी गहरा प्रभाव रखती है।
विपक्ष को मजबूत नेतृत्व, स्पष्ट दृष्टिकोण और राष्ट्रीय स्तर की वैकल्पिक छवि के बिना जीत हासिल करना कठिन होगा।
बिहार की जीत के बाद पश्चिमी मीडिया का स्पष्ट आकलन है कि निकट भविष्य में भारतीय राजनीति की केंद्रीय धुरी नरेंद्र मोदी ही बने रहेंगे और आने वाले प्रमुख चुनावी मुकाबलों में उनका प्रभाव सबसे निर्णायक तत्व होगा।





