बिहार का चुनाव मुंबई-दिल्ली-खाड़ी देशों तक लड़ा जा रहा

बिहार की राजनीति इस बार सिर्फ गांव-टोले, चौराहे और जातीय समीकरणों पर नहीं चल रही। लड़ाई अब मुंबई की लोकल ट्रेन, दिल्ली की मेट्रो और खाड़ी देशों के व्हाट्सएप ग्रुप तक पहुंच चुकी है। बिहार से बाहर रहने वाले करीब 30 लाख प्रवासी वोटर इस चुनाव का बड़ा फैक्टर बन सकते हैं। महागठबंधन जहां बिहार से पलायन का मुद्दा उठाकर उनका समर्थन जुटाने में लगा है, वहीं एनडीए के प्रमुख घटक दल भाजपा ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के जरिये आपरेशन बाहरी-बिहारी चला दिया है।
जहां तक बात है बाहरी-बिहारी मिशन की तो यह सिर्फ भावनात्मक अपील नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर माइक्रो-मैनेजमेंट प्लान है। सूत्रों के मुताबिक, भाजपा ने अपने संगठन के जरिये उन प्रवासी परिवारों की लिस्ट अपडेट कराई है, जो मुंबई-ठाणे, दिल्ली-एनसीआर, सूरत, पुणे और घाटी देशों में हैं। हर जिले का प्रवासी कोऑर्डिनेशन सेल बनाया गया है। फोन कॉल, कॉल-सेंटर मॉड्यूल, व्हाट्सएप ग्रुप सभी तकनीकी विधाओं का उपयोग हो रहा है। बाकी जो प्रभावशाली और ताकतवर लोग हैं, जो बिहार की छवि और बदलते बिहार के भाव से ओत-प्रोत हैं, उन्हें जिम्मेदारी दी गई है। हर वोटर से पूछा जा रहा है कि घर कब आ रहे हैं? टिकट बुक हो गया?
देवेंद्र फडणवीस को जिम्मेदारी
मुंबई-ठाणे बेल्ट में सबसे बड़ा बिहारी वोट है। इसलिए महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस को यह मिशन दिया गया है। वह पिछले विधानसभा चुनाव में बिहार के प्रभारी भी रह चुके हैं। इसलिए, बाहरी-बिहारियों का प्रभाव ठीक से समझते हैं।
पटना में मीडिया से वार्ता में फडणवीस खुद मानते हैं कि महाराष्ट्र का कोई बड़ा शहर नहीं है, जहां पर बिहारियों की संख्या प्रभावशाली न हो। वैसे भी महाराष्ट्र में बिहार से बसे वोटरों की पसंद पिछले चुनाव में भाजपा थी। अब जो बिहार से लोग वहां काम करने गए हैं, फडणवीस की टीम उन पर फोकस कर रही है।
मुंबई-महाराष्ट्र वाले बिहारी हर हाल में घर लौटें, इसके लिए उनकी टीम समाजिक संगठनों, ऑटो-टैक्सी यूनियनों, दिहाड़ी मजदूर नेटवर्क और हाउसिंग क्लस्टर्स के साथ लगातार मीटिंग में लगी हुई थी।
भावनाएं भुुनाने में जुटा एनडीए
प्रवासी वोटरों के लिए अपने-अपने ताकत वाले क्षेत्रों के लिहाज से एनडीए और महागठबंधन ने अलग-अलग बूथ-मैपिंग भी की है। हालांकि बाहरी बिहारियों के बीच में एनडीए के संदेश है कि बिहार बदला है, अब आपका वोट इस बदलाव को स्थायी करेगा। बिहार की छवि को लेकर जो राज्य से बाहर गए लोग हैं, उनकी चिंताएं ज्यादा होती हैं और घर में रोजगार मिल पाए, ये उम्मीद भी बड़ा का काम करती है। इसीलिए एनडीए का पूरा अभियान कानून-व्यवस्था, सड़क, बिजली, मेडिकल सिस्टम, नए उद्योग और शिक्षा-कैंपस मॉडल की तरफ जा रह है। सबसे भावनात्मक बात जो यहां चल रही है, वह है कि जितना बाहर इज्जत कमा रहे हैं, बिहार को भी उतनी इज्जत दिलाएं।
विपक्ष लगातार उठा रहा पलायन का सवाल
राजद-कांग्रेस लगातार सवाल उठा रहे हैं कि बिहार छोड़कर जाना पड़ा, यही तो असफलता है। उनका वादा है सरकारी नौकरियां, सम्मान और पलायन समाप्त। हालांकि, मैदान पर पहले कदम भाजपा ने रख लिया है। जो वापस आता है, उससे पहले किसी न किसी तरीके से संपर्क हो चुका होता है। बाहरी बिहारियों के लिए यह लड़ाई सिर्फ वोट की नहीं, बल्कि पहचान की हो गई है। बाहर से वोट करने के लिए आए युवाओं से जब हमने बात की तो लब्बो-लुवाब यही था कि हम बाहर रहते हैं, पर बिहार हमारा घर है, घर की लड़ाई में कैसे दूर रह जाएं? भाजपा यही भावना पकड़ने की कोशिश कर रही है। 2025 के चुनाव में मोदी-नीतीश गठबंधन का सबसे बड़ा दांव यही है कि जो बाहरी है, वही अंदर से बिहार का सबसे बड़ा सिपाही है।





