बिना इसके अधूरी है शादी-त्योहारों की रौनक, शृंगार से कहीं बढ़कर है हथेली पर सजी मेहंदी की अहमियत

शादी-ब्याह हो या कोई भी त्योहार मेहंदी के बिना हर खुशी अधूरी-सी लगती है। जी हां हाथों पर सजे इसके खूबसूरत डिजाइन भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा बन चुके हैं लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह खूबसूरत कला भारत में कहां से आई? आइए जानते हैं मेहंदी से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें जिनसे आज भी ज्यादातर लोग अनजान हैं।
शादी-ब्याह हो या त्योहार, महिलाओं के हाथों में लगी गहरी लाल रंग की मेहंदी खुशी और रौनक का पैगाम लेकर आती है। भारतीय संस्कृति में इसे सिर्फ शृंगार नहीं है, बल्कि शुभता, सौंदर्य और परंपरा का प्रतीक माना जाता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह खूबसूरत रिवाज भारत में कहां से आया? आइए, इस आर्टिकल में जानते हैं इसकी दिलचस्प कहानी ।
कहां से हुई मेहंदी की शुरुआत?
मेहंदी को अंग्रेजी में ‘हिना’ कहा जाता है, जबकि इसका असली नाम संस्कृत के शब्द ‘मेंधिका’ से आया है। बता दें, मेहंदी का पौधा मुख्य रूप से अफ्रीका, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया और दक्षिणी एशिया के गर्म इलाकों में पाया जाता है। इसकी पत्तियों में ‘लॉसन’ नामक एक प्राकृतिक रंग होता है। जब इस रंग को हमारी त्वचा, बालों या नाखूनों पर लगाया जाता है, तो यह ‘केराटिन’ नामक प्रोटीन के साथ मिलकर एक लाल-नारंगी रंग छोड़ता है। यही कारण है कि यह सभी वर्गों के लोगों के लिए हमेशा से एक लोकप्रिय कला रही है।
मुगल काल में मिली इसे पहचान
हजारों सालों से मेहंदी का इस्तेमाल शरीर को सजाने के लिए किया जा रहा है। प्राचीन भारतीय ग्रंथों और कलाकृतियों में भी इसका जिक्र मिलता है। हालांकि, भारत में मेहंदी की कला को सबसे ज्यादा पहचान मुगल काल में मिली। उस समय की चित्रकृतियों में महिलाओं को हाथों और पैरों पर सुंदर मेहंदी डिजाइन से सुसज्जित दिखाया गया है। यहीं से बारीक और कलात्मक पैटर्न बनाने की परंपरा और मजबूत हुई।
सिर्फ खूबसूरती के लिए नहीं है मेहंदी
भारतीय विवाह में सोलह शृंगार का विशेष महत्व होता है और मेहंदी उसमें एक अनिवार्य हिस्सा है। यह न केवल दुल्हन के सौंदर्य को निखारती है, बल्कि शुभता और खुशहाली का प्रतीक भी मानी जाती है।
एक मान्यता यह भी है कि दुल्हन के हाथों पर जितनी गहरी मेहंदी चढ़े, पति और परिवार का प्यार उतना ही ज्यादा होगा। शादी से पहले की मेहंदी रस्म का असली मकसद दुल्हन को शांत और प्रसन्न रखना था ताकि वह तनावमुक्त होकर नई जिंदगी की शुरुआत कर सके।
इस्तेमाल के तरीके में आए बदलाव
मेहंदी की पत्तियों को सुखाकर पीसा जाता है और फिर इसमें नींबू का रस, चाय या कॉफी मिलाकर पेस्ट तैयार किया जाता है। रंग को गहरा और टिकाऊ बनाने के लिए इसमें चीनी, लौंग या अन्य सुगंधित तेल भी डाले जाते हैं। बता दें, आजकल कोन से डिजाइन बनाए जाते हैं, लेकिन पुराने समय में महिलाएं अपनी उंगलियों या लकड़ी की पतली डंडियों से पैटर्न तैयार करती थीं।
मेहंदी केवल सजावटी ही नहीं, बल्कि औषधीय दृष्टि से भी बेहद उपयोगी है। इसमें एंटीफंगल और एंटीबैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं जो स्किन इन्फेक्शन और घावों से बचाव करते हैं। गर्मियों में इसका ठंडक देने वाला प्रभाव शरीर को राहत पहुंचाता है।
सिरदर्द, तनाव और त्वचा की खुजली जैसी समस्याओं में भी मेहंदी का लेप आराम पहुंचाने के लिए जाना जाता है। यही वजह है कि इसे केवल सौंदर्य प्रसाधन नहीं, बल्कि प्राकृतिक औषधि भी माना जाता है।