बड़े होते बच्चे जरूर करेंगे सवाल, ऐसे दे सकतें हैं परफेक्ट जवाब

छोटे बच्चों के लिए उनके आसपास की दुनिया कौतुहल भरी होती है, जिसमें हर रोज उनके नए अनुभव और उनसे जुड़े नए प्रश्न होते हैं। इन्हीं पहेलियों को वे आपकी मदद से सुलझाने की कोशिश करते हैं। नन्ही नाजुक उम्र में आपके लाडले के मन में कई सवाल उठते हैं। कई बार इन्हें सुन कर आपकी हंसी नहीं रुकती, तो कई बार उसकी कल्पना के ताने-बाने पर आप हैरान रह जाती हैं। बच्चे के सवालों के साथ ही उसकी उम्र के अनुरूप कुछ ऐसे नाजुक विषय भी होते हैं जो उसकी सुरक्षा से जुड़े होते हैं, जिनके बारे में उसे समझाना और बताना भी बेहद जरूरी होता है। कैसे दें, इस मुश्किल काम को आसानी से अंजाम, आइए जानें…

बड़े होते बच्चे जरूर करेंगे सवाल, ऐसे दे सकतें हैं परफेक्ट जवाब

सवालों के हल के साथ जरूरी सीख भी 

मनोविशेषज्ञ डॉ. समीर पारिख के अनुसार, दो से चार साल की उम्र के बच्चे जिनके शब्दों का भंडार अभी बढ़ रहा होता है, वे नई चीजें देख और सीख रहे होते हैं। अब तक केवल आपके आंचल में पलने और सुरक्षित महसूस करने वाला आपका लाडला इसी उम्र के बीच अपने पहले स्कूल में पहला कदम रखता है, जहां उसका सामना बाहर की दुनिया से भी होता है।

नए परिवेश से जुड़ते बच्चों के मन में कई जिज्ञासाएं होती हैं, ढेरों अनसुलझे सवाल होते हैं और कई पहेलियां होती हैं, जिन्हें समझने, सुलझाने की उन्हें जल्दी भी होती है और बेचैनी भी। उनकी इस नाजुक उम्र में उनके मन में उठते सवालों और शंकाओं का समाधान करना जरूरी होता है, तो साथ ही उनकी सुरक्षा का सवाल भी होता है। इसलिए उनके प्रश्नों के सही उत्तर देने के साथ ही उनकी उम्र से जुड़ी अहम बातों की जानकारी देना भी जरूरी है।
 

सिखाएं प्राइवेसी 

‘मम्मा आया आंटी मुझे और आर्यन को अलग-अलग टॉयलेट में क्यों ले जाती हैं?’ या ‘मुझे अंकल की गोद में बैठना चाहिए या नहीं?’ आपका बेटा या बेटी आपसे ऐसे ही ढेरों सवाल पूछते हैं, जो उसके लिए पहेली की तरह होते हैं। 2-3 साल की उम्र के बच्चे लड़के और लड़की में फर्क नहीं कर पाते। उन्हें शरीर और प्राइवेसी से जुड़ी बातों की समझ नहीं होती, जिनकी वजह से वे परेशानी में पड़ सकते हैं।

इसलिए जरूरी है कि आप उनकी उम्र और समझ के अनुसार इनसे जुड़ी बातों की समझ विकसित करें और उन्हें लड़के और लड़की में शारीरिक फर्क की बुनियादी बातों को समझाएं। उसके प्राइवेट पार्ट्स के बारे में बुनियादी जानकारी दें।

उसे बताएं कि उसके शरीर के कुछ अंगों को केवल आप या डॉक्टर ही छू सकते हैं, वह भी केवल तभी जब उसे इसकी जरूरत महसूस हो। या अगर कोई उसके शरीर के इन अंगों को छूने की कोशिश करे या वह किसी स्थिति में असहज महसूस करे तो उसे आपको तुरंत बताना चाहिए। अगर आपका बच्चा स्कूल बस या वैन से आता-जाता है तो उससे संबंधित सावधानियों के बारे में भी बताना जरूरी है। 

विश्वास कायम करें 

स्कूल जाने की उम्र में कुछ घंटों के लिए ही सही, बच्चा बाहर की दुनिया के बीच आपसे अलग रहता है। यह जितना आपके लिए चिंताजनक होता है, उतना ही आपके बच्चे के लिए भी नया और उलझन भरा अनुभव होता है। इस समय बेहद जरूरी है कि आप बच्चे और अपने बीच प्यार और पूरा विश्वास कायम करते हुए उसे सही और गलत चीजों के बारे में समझाएं।

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यह भी कहें कि वह किसी भी असुविधाजनक स्थिति में खुलकर आपको सब कुछ बताए। उसे प्रोत्साहित करें कि वह कोई भी बात आपसे बेझिझक कह सके। इससे वह आपसे बात करने में अधिक सहज होगा और आप भी उसकी सुरक्षा के बारे में खुद को सुनिश्चित कर पाएंगी।

नजरंदाज न करें 

डॉ. समीर पारिख बताते हैं, एक जिम्मेदार मां-बाप के तौर पर बच्चे के किसी भी प्रकार के सवालों को नजरंदाज करने या टालने की कोशिश हरगिज न करें। छोटा बच्चा अपने हर सवाल के लिए सबसे पहले आप पर ही भरोसा करता है, लेकिन अगर आप उसकी बातों को अनसुना कर देंगी या उसकी दुविधा को दूर नहीं करेंगी, तो इनके जवाब वह अपने हमउम्र बच्चों से तलाशने की कोशिश करेगा जो खुद भी इनके लिए तैयार नहीं हैं। या हो सकता है कि वह इसके लिए किसी अनजान पर भरोसा करे जो उसकी सुरक्षा की दृष्टि से सही नहीं है। उसके प्रश्नों के साथ ही उसके मन में चल रहे विचारों को जानना भी बेहद जरूरी है, ताकि आप उसे गलत नजरिए को अपनाने और गलत सोच के साथ बड़ा होने से बचा सकें।

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