बच्चों की जासूसी के लिए हाईटेक जूते खरीद रहे पेरेंट्स, ऐसे मुसीबत बन सकता है पेरेंटिंग का यह तरीका!

आजकल के माता-पिता अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर बहुत चिंतित रहते हैं। इसी फिक्र के कारण बाजार में तरह-तरह के गैजेट्स आ गए हैं जो बच्चों पर नजर रखने में मदद करते हैं। इन्हीं में से एक हैं हाई-टेक जूते जिनमें GPS लगा होता है। ये जूते माता-पिता को बताते हैं कि उनका बच्चा कहां है। आइए जानें इस तरह की परवरिश के नुकसान।

आज के डिजिटल दौर में बच्चों की सुरक्षा को लेकर माता-पिता की चिंता स्वाभाविक है। पहले जहां लंच बॉक्स या स्कूल बैग में ट्रैकिंग डिवाइस रखना बड़ी बात मानी जाती थी, अब तकनीक इससे भी आगे निकल गई है। अब ऐसे स्मार्ट प्रोडक्ट (Child Tracking Devices) बाजार में आ गए हैं, जिनमें ट्रैकिंग डिवाइस इतने छिपे होते हैं कि बच्चों को पता तक नहीं चलता।

माता-पिता का मकसद साफ है- बच्चे सुरक्षित रहें, चाहे वो स्कूल में हों, पार्क में या भीड़भाड़ वाली जगह पर। यह तरीका स्मार्टफोन या स्मार्टवॉच से सस्ता भी है और बच्चों के लिए संभालना आसान, लेकिन सवाल यह है कि क्या हर पल की निगरानी (Overprotective Parenting) बच्चों पर मनोवैज्ञानिक असर डाल सकती है?

कितनी सही है हर वक्त निगरानी?
बेशक, इस तरह की डिवाइस कई स्थितियों में बेहद मददगार हैं। कोई बच्चा भीड़ में खो जाए, गलत दिशा में चला जाए या किसी अनजान व्यक्ति के साथ दिखे, तो माता-पिता तुरंत उसकी लोकेशन ट्रैक कर सकते हैं, लेकिन, यही सुविधा बच्चों के निजी स्पेस में दखल भी बन सकती है। लगातार ‘निगरानी’ का एहसास बच्चों को बेचैन कर सकता है, खासकर तब जब वे बड़े हो रहे हों और अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हों।

भरोसे की नींव हिल सकती है
बच्चे और माता-पिता के बीच विश्वास का रिश्ता बेहद नाज़ुक होता है। अगर बच्चा यह जान ले कि उसकी हर हरकत ट्रैक हो रही है, तो उसके भीतर विद्रोह का भाव पनप सकता है। बड़े बच्चों में यह गुस्सा, झुंझलाहट और माता-पिता से दूरी का कारण भी बन सकता है।

आत्मनिर्भरता पर असर
बचपन में छोटी-छोटी जिम्मेदारियां सीखना और खुद फैसले लेना बच्चे की आत्मनिर्भरता के लिए जरूरी है। अगर हर समय ट्रैकिंग डिवाइस का सहारा लिया जाए, तो बच्चे में जोखिम लेने, गलती करने और उनसे सीखने की क्षमता कम हो सकती है। वह हर कदम पर सोच सकता है कि “मुझ पर नजर रखी जा रही है”, जिससे उसका आत्मविश्वास घट सकता है।

कब और कैसे करें इस्तेमाल?
विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसी तकनीक का इस्तेमाल सोच-समझकर करना चाहिए। छोटे बच्चों या विशेष जरूरतों वाले बच्चों के लिए यह बेहद उपयोगी है, लेकिन बड़े बच्चों के साथ पारदर्शिता जरूरी है। बेहतर है कि माता-पिता बच्चों को समझाएं कि यह डिवाइस सुरक्षा के लिए है, न कि उनकी आज़ादी छीनने के लिए।

संतुलन ही समाधान है
तकनीक माता-पिता के हाथ में एक मजबूत साधन है, लेकिन इसका इस्तेमाल समझदारी से होना चाहिए। बच्चों की सुरक्षा जितनी जरूरी है, उतना ही जरूरी है उनका मानसिक विकास और आत्मनिर्भरता। अगर निगरानी और भरोसे के बीच संतुलन बना रहे, तो यह तकनीक वरदान साबित हो सकती है।

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