पेरेंट्स की दखलअंदाजी बच्चों की शादीशुदा जिंदगी में घोल सकती है कड़वाहट

भारत में शादी एक महत्वपूर्ण बंधन है लेकिन माता-पिता की सलाह कभी-कभी नवविवाहित जोड़ों के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है। अक्सर माता-पिता अपने बच्चों के जीवन में ज्यादा दखल देते हैं जिससे रिश्तों में तनाव पैदा होता है। यह जरूरी है कि माता-पिता समझें कि कब बोलना है और कब चुप रहना है।

हमारे देश में शादी का बंधन बहुत अहमियत रखता है। इसमें सिर्फ लड़का–लड़की ही एक रिश्ते में नहीं बंधते, बल्कि कई और रिश्तों को भी नाम मिल जाता है। हालांकि, जब यही रिश्ते शादीशुदा जोड़े के लिए सहूलियत कम और रुकावट ज्यादा बनने लगे तो क्या किया जाए। शादी सिर्फ दो लोगों के बीच निभाई गई कुछ रस्मों का नाम नहीं। इसमें दो परिवार भी एक-दूसरे जुड़ते हैं और एक-दूसरे के साथ निभाने की कोशिश करते हैं।

इन कोशिशों के बीच कई बार नए शादीशुदा जोड़े को दी गई सलाह उनका भला करने की बजाय बुरा कर जाती है। ऐसी सलाह ज्यादातर उनके अपने पेरेंट्स की ओर से ही मिलती हैं, जिससे मैरिड कपल की लाइफ में तूफान मच जाता है। क्या इस तरह की हर राय को अमल में लाना चाहिए? पेरेंट्स की भूमिका क्या होनी चाहिए? आइए थोड़ा विस्तार से समझते हैं:

पेरेंट्स को पता होना चाहिए
कई बार पेरेंट्स को लगता है कि उन्होंने बच्चों की परवरिश की है, तो उनके जीवन के हर फैसले पर उनका अधिकार है। उसमें शादी और उसके बाद की जिंदगी भी शामिल होती है। नई-नई शादी में अगर माता-पिता का दखल ज्यादा हो जाता है, वो जोड़ी उन्हीं पैमानों पर एक-दूसरे को परखने लगती है। उन्हें बॉन्डिंग का मौका ही नहीं मिल पाता। अगर पेरेंट्स को अपने मैरिड बच्चों को कुछ सलाह देनी ही है, तो उन्हें पता होना चाहिए उन्हें कब बोलना है और कब रुकना है।

अगर पसंद का न हो लाइफ पार्टनर
कई बार ऐसा देखा जाता है कि अगर पेरेंट्स को अपनी बेटी या बेटे की पसंद नहीं जंचती, तो वो तो किसी न किसी बहाने से उनके पार्टनर की कमी सामने लेकर आते हैं। ऐसा करने से आपका बच्चा द्वंद्व में फंस सकता है कि किसकी तरफ जाए।
उनके लिए बच्चे ही हैं

बच्चे बड़े हो जाते हैं और उनकी शादी भी हो जाती है, लेकिन माता-पिता ये मानने को तैयार ही नहीं होते कि उनके बच्चे अब बड़े हो चुके हैं। उन्हें लगता है कि उनके बच्चों को अब भी कदम-कदम पर उनके सहारे या सलाह की जरूरत है। इस स्थिति में उनके बच्चे अपनी जिम्मेदारी को समझ नहीं पाते और उनकी मैरिड लाइफ में परेशानियां आने लगती हैं।

अपनी मैरिड लाइफ से नाखुश पेंरेट
जिन पेरेंट्स की खुद की मैरिड लाइफ में परेशानियां रही हैं, शादी को लेकर उनकी राय अच्छी नहीं होती। खासकर जिन महिलाओं ने एक नाखुश शादीशुदा जिंदगी बिताई है, वे अपने बच्चों को भी पॉजिटिव सलाह नहीं दे पातीं। वे अपने अनुभव उन पर थोपने की भी कोशिश करती हैं। ऐसे में उनके बच्चों की मैरिड लाइफ पर काफी बुरा असर पड़ता है और कई बार तलाक तक की नौबत आ जाती है।

क्या करें बच्चे
ये बहुत स्वाभाविक बात है कि बच्चे जिंदगी से जुड़े अहम फैसलों में अपने बड़ों की राय लें। लेकिन बच्चों को ये पता होना चाहिए वे किन मुद्दों पर उनसे राय लें और किन पर नहीं।
शादी के बाद हर छोटी-बड़ी बात पेरेंट्स से शेयर करने पर भी परेशानी हो सकती है। इसलिए हर बात शेयर करने से बचें, जो जरूरी हो उस पर ही बात करें।

एडल्ट के रूप में आपको पता होता है कि आपको अपनी फिजिकल और इमोशनल हेल्थ का ख्याल कैसे रखना है। हर छोटी बड़ी जरूरतों में अपने पार्टनर का साथ दें और किसी और से ज्यादा मदद लेने से बचें।

अगर हर कोई कह रहा हो एक ही बात
कई बार ऐसा देखा गया है कि बच्चे, पेरेंट्स की अच्छी सलाह को भी दखलअंदाजी मान लेते हैं और उन बातों को भी नजरअंदाज कर देते हैं, जो साफ दिख रही होती है। अगर परिवार के कई सारे सदस्य या आपके करीबी दोस्त भी आपके पाटर्नर को लेकर या आपकी मैरिड लाइफ को लेकर एक ही राय दे रहे हैं, तो एक बार उनकी बातों पर भी गौर करें।

कोर्ट ने भी जताई थी चिंता
कुछ सालों पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि शादीशुदा बेटियों की जिंदगी में पेरेंट्स की दखलअंदाजी उनकी जिंदगी में कलह का कारण बन रही है। कोर्ट का कहना था कि शादी में दरार के बढ़ते मामले का बहुत बड़ा कारण पेंरेट्स का अपनी बेटियों की शादीशुदा जिंदगी में लगातार दखल देना है।

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