पुण्यतिथि: बापू ने मरते वक्त ‘हे राम’ कहा था या नहीं? आज भी होती है इस पर बहस

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आज पुण्यतिथि है. 30 जनवरी 1948 के दिन ही नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी. 30 जनवरी की शाम गांधी हर दिन की तरह नई दिल्ली स्थित बिड़ला भवन में शाम की प्रार्थना करने के लिए जा रहे थे.

ऐसा माना जाता है कि बिड़ला भवन में गोली लगने के बाद बापू ‘हे राम!’ कहते हुए गिरे थे और यह शब्द उनके पास चल रही उनकी पोती आभा ने सुने थे. महात्मा गांधी की समाधि पर भी ‘हे राम’ अंकित है. हालांकि, गांधी के आखिरी शब्दों को लेकर बहस भी होती रही है.

महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी गांधी के आखिरी शब्द हे राम को लेकर विवाद को दक्षिणपंथियों की साजिश करार देते हैं. उनका कहना है कि गांधी की हिंदू विरोधी छवि को मजबूत करने के लिए जानबूझकर ये बहस खड़ी कर दी गई.

बापू के आखिरी शब्दों को लेकर तब बहस छिड़ गई थी जब बापू की हत्या के प्रत्यक्षदर्शी होने का दावा करने वाले उनके निजी सचिव वेंकिता कल्याणम ने दावा किया कि मरते वक्त गांधी ने ‘हे राम’ नहीं कहा था. कल्याणम ने बताया था कि वास्तव में जब नाथूराम गोडसे ने उनके सीने में गोली दागी तो उन्होंने कोई भी शब्द नहीं कहा था.’ हालांकि, बाद में कल्याणम ने बयान पलटते हुए कहा, “मैंने कभी नहीं कहा कि गांधीजी ने ‘हे राम’ नहीं बोला था. मैंने यह कहा था कि मैंने उन्हें ‘हे राम’ कहते नहीं सुना. हो सकता है कि महात्मा गांधी ने वैसा कहा हो…मुझे नहीं पता.”

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पुस्तक ‘महात्मा गांधी: ब्रह्मचर्य के प्रयोग’ में भी बापू के अंतिम शब्द ‘हे राम’ पर बहस की गई है. पत्रकार दयाशंकर शुक्ल सागर ने इस किताब में दावा किया कि 30 जनवरी, 1948 को गोली लगने के बाद महात्मा गांधी के मुख से निकलने वाले अंतिम शब्द ‘हे राम’ नहीं थे. इस किताब में कहा गया है कि 30 जनवरी, 1948 को जब नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को गोली मारी थी तो बापू के सबसे करीब मनु गांधी थीं. उन्होंने बापू का अंतिम शब्द ‘हे रा…’ सुनाई दिया था. इसी आधार पर यह मान लिया गया कि उनके आखिरी शब्द ‘हे राम’ ही थे.

इस किताब के मुताबिक, मनु के अवचेतन मन में ये शब्द आना स्वाभाविक था क्योंकि नोआखली में महात्मा गांधी ने कहा था कि ” यदि मैं रोग से मरूँ तो मान लेना कि मैं इस पृथ्वी पर दंभी और रावण जैसा राक्षस था. मैं राम नाम रटते हुए जाऊं तो ही मुझे सच्चा ब्रह्मचारी, सच्चा महात्मा मानना.” शायद मनु के मन में यही बात गूंज रही होगी.

उस दिन ऑल इंडिया रेडियो के रिपोर्टर केडी मदान भी घटना स्थल पर मौजूद थे. गांधी जी की प्रार्थना सभा को ‘कवर’ करने मदान बिड़ला भवन रोज जाते थे. मदान ने कुछ साल पहले बताया था कि मैंने तो ‘हे राम’ कहते नहीं सुना था. साथ ही मदान ने यह भी कहा कि ‘पर यह एक लेजेंड (किंवदंती) है, इसे लेजेंड ही रहने दिया जाए.’

दूसरी तरफ गांधीवादी निर्मला देशपांडे इस बात का विरोध करती हैं. निर्मला गांधी का कहना था कि उस शाम बापू जब बिड़ला मंदिर में प्रार्थना के लिए जा रहे थे तब उनके दोनों ओर आभा और मनु थीं. आभा बापू की पौत्री और मनु उनकी पौत्रवधु थीं. निर्मला गांधी का कहना है कि जब बापू को गोली लगी थी तब उनके हाथ आभा और मनु के कंधों पर थे. गोली लगने के बाद वे आभा की ओर गिरे थे. आभा ने स्पष्ट सुना था कि बापू के मुंह से आखिरी बार ‘हे राम’ ही निकला था.

गांधी जी के प्रपौत्र तुषार गांधी के अनुसार, कल्याणम का दावा पूरी तरह से गलत था. गांधी हत्याकांड मुकदमे के एक गवाह सरदार गुरू वचन सिंह ने 30 अगस्त 1948 को अदालत को बताया था कि गोली लगने के बाद बापू ने ‘हे राम’ कहा था. तुषार गांधी के अनुसार, दरअसल जो लोग बापू को हिंदू विरोधी साबित करना चाहते थे, उन्हीं का यह प्रचार है कि गांधी ने ‘हे राम’ नहीं कहा. गांधी जी के हत्यारे ने तो इसी आधार पर उनकी हत्या की कि गांधी हिंदू विरोधी थे. यदि ‘हे राम’ वाली बात साबित हो जाती है तो हत्यारे का वह तर्क ध्वस्त हो जाएगा.

तुषार गांधी कहते हैं, हत्या के समय आभा और मनु बापू के साथ थीं. आभा की गोद में बापू ने अंतिम सांस ली थी. आभा के अनुसार बापू ने ‘हे राम’ कहा था. न सिर्फ एक बार बल्कि बापू ‘हे राम’ कुछ समय तक दोहराते रहे. तुषार गांधी के अनुसार, कल्याणम को तो गांधी हत्याकांड का गवाह तक नहीं बनाया गया था. घटनास्थल पर मौजूद अंग्रेजी अखबार ‘द हिंदू’ के रिपोर्टर के अनुसार, गोलियां लगने के 15 मिनट बाद तक बापू जीवित रहे थे.

पंजाब के युवा हिन्दी उपन्यासकार डॉक्‍टर अजय शर्मा ने अपने उपन्यास ‘भगवा’ में दावा किया था कि राष्ट्रपिता की हत्या करने के लिए जब नाथूराम गोडसे ने उन्हें गोली मारी थी तो उन्होंने ‘हे राम’ नहीं, ‘हाय राम’ कहा था.

भगवा में यह कहा गया, ‘गांधी जी ने मरने से पहले हे राम कहा था लेकिन ऐसा नहीं है क्योंकि जब किसी को चोट लगती है वह तो हे नहीं हाय कहता है. जब किसी के शरीर में गोली लगती है तो व्यक्ति दर्द से चीखता है और ऐसे में उसके मुंह से हे नहीं हाय निकलता है. हे राम निकलना तो बहुत ही मुश्किल है.’ उपन्यास में लेखक और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता के बीच की चर्चा दौरान का यह प्रसंग है. संघ के कार्यकर्ता के हवाले से इसमें यह भी लिखा गया है कि कुछ सियासी लोगों ने इसे महिमा मंडित करते हुए कह दिया कि गांधीजी के मुंह से हे राम निकला था.

गांधी ने मरते वक्त ‘हे राम’ कहा था या नहीं, इसे लेकर आज भी बहस जारी है. हालांकि, गांधी ही वो शख्स थे जिसने भारत में ‘रामराज्य’ स्थापित होने का सपना देखा था.

 

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