पीसीएस प्रोन्नति पर ग्रहण, नियुक्ति विभाग की मनमानी
- नियुक्ति विभाग के एक पत्र ने 1996-97 बैच के पीसीएस अफसरों के प्रमोशन में डाला रोड़ा.
- नियुक्ति विभाग के पत्र से 30 अफसरों की डीपीसी पर लगा ग्रहण.
- उत्तराखंड तैनाती न मिले इसलिए पेंच भिडाने में जुटे कुछ अफसर.
- योगीराज में खुद अफसरों को नहीं मिल रहा न्याय, क्यूँ हो रही जरूरत कोर्ट जाने की.
- आखिर क्यूँ नियुक्ति विभाग गुपचुप तरीके से मामले को उलझाने में जुटा रहा.
- नियुक्ति विभाग कार्यप्रणाली से पीसीएस अफसरों में नाराजगी, नियुक्ति विभाग पर लगा रहे पक्षपात का आरोप.
लखनऊ : वाह रे योगी का नियुक्ति विभाग, नित नए कारनामे कर रहा यूपी का नियुक्ति विभाग, पहले लखनऊ नगर निगम में एक ही बैच के दो अफसरों की तैनाती करने वाले नियुक्ति विभाग ने अब एक और कारनामा कर दिखाया है जिससे शासन की रीढ़ समझे जाने वाले पीसीएस संवर्ग के अफसरों में काफी नाराजगी है. नियुक्ति विभाग के इस कदम से एक बार फिर से PCS और IAS संवर्ग के बीच खाई बन गयी है. इसके पहले भी PCS संघ अपने संवर्ग के हितों की अनदेखी IAS अफसरों द्वारा किये जाने का आरोप लगाता रहा है. फिलहाल पीसीएस अफसरों में नियुक्ति विभाग द्वारा DOPT को 9 अगस्त 2018 को लिखे गए पत्र को लेकर एक बार फिर से नाराजगी बढ़ी है. DOPT को लिखे गए नियुक्ति विभाग के इस पत्र से उसकी मनमानी प्रदर्शित होती है जिससे 32 पीसीएस अफसरों का प्रमोशन फिलहाल कानूनी दांव पेंच में उलझ गया है. इस तरह जहां पिछली सरकार में अफसरों के हितों का पूरा ख्याल रखते हुए उनके प्रमोशन तेजी से किये गए वहीँ वर्तमान की योगी सरकार के नियुक्ति विभाग की कार्य प्रणाली से इस पर ग्रहण लगता जा रहा है.
नियुक्ति विभाग की लापरवाही और उदासीनता के चलते पहले से ही इन PCS ऑफसरों के प्रमोशन में देरी हो चुकी है. ऐसे में नियुक्ति विभाग द्वारा DOPT को लिखे गए इस पत्र से एकबार फिर इनके हितों को नजरअंदाज किया गया है और नियुक्ति विभाग की कार्य प्रणाली पर सवाल है. नियुक्ति विभाग के इस पत्र ने योगी और मोदी के दलित एजेंडे को भी रोकने का काम किया है, क्योंकि प्रमोशन पाने वाले इन 32 अफसरों में करीब एक तिहाई दलित व पिछड़े वर्ग से हैं. ऐसे में PCS संवर्ग में नियुक्ति विभाग को लेकर फैल रही नाराजगी कुछ अच्छे संकेत नहीं दे रही है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अधीन नियुक्ति विभाग के अफसरों का अपने ही अधीनस्थों पर खेले गये इस खेल से अफसरशाही का एक बड़ा संवर्ग जिसके ऊपर सरकार के विकास कार्यों और स्वच्छ प्रशासन को जन जन तक पहुंचाने की सबसे अधिक जिम्मेदारी होती है काफी आहत है, और आपसी घृणा का माहौल पैदा करती है.
महत्वपूर्ण बात यह है कि PCS संवर्ग के इन अफसरों के प्रमोशन के लिए 20 अगस्त को होने वाली डीपीसी के लिए नियुक्ति विभाग ने DOPT को जो प्रस्ताव भेजा था उनमें उन पांचों अफसरों का नाम नहीं था जिसको नियुक्ति विभाग अपने 9 अगस्त के डीओपीटी को लिखे गए पत्र में जोड़ा है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार नियुक्ति विभाग द्वारा डीओपीटी को भेजे गए प्रस्ताव का अनुमोदन विभागीय मंत्री यानी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लिया गया था, जबकि 9 अगस्त को नियुक्ति विभाग द्वारा डीओपीटी को भेजे गए पत्र और उसमें जोड़े गए 5 नामों का अनुमोदन विभागीय मंत्री यानी कि मुख्यमंत्री से नहीं लिया गया है. जानकारी में तो यह भी आया है कि उक्त पत्र का अनुमोदन मुख्य सचिव द्वारा भी नहीं किया गया है.
बताते चलें कि उत्तर प्रदेश कैडर के 1996-97 बैच के कुल 32 पीसीएस अफसरों की डीपीसी 20 अगस्त को होनी थी. लेकिन नियुक्ति विभाग के एक पत्र ने इन अफसरों के प्रमोशन को उलझा दिया. नियुक्ति विभाग का यह कदम जश्न-ए-आजादी के इस अवसर पर उस अंग्रेजी हुकूमत की याद दिलाया जिसमें उनकी नीति फूट डालो और शासन करो वाली रही थी. आज नियुक्ति विभाग के इस एक पत्र ने पीसीएस अफसरों को दो भागों में बाँट दिया. नियुक्ति विभाग के इस पत्र से वह वर्ग तो खुश है जिनको उत्तराखंड कैडर आवंटित हुआ है लेकिन अपने जुगाड़ और कानूनी पेचीदिगियों में मसले को उलझा अभी भी यूपी में डटे हुए हैं, वहीं पीसीएस संवर्ग के उन अफसरों को निराशा है हुई है जिनके हित बाधित हुए हैं और जिनका प्रमोशन रुक गया है. फिलहाल इस विषय को लेकर जहां चर्चा गर्म वहीँ नाराजगी भी है.
वर्ष 2000 में यूपी से उत्तराखंड के अलग होने के बाद प्रदेश के कुछ अफसरों को उत्तराखंड कैडर आवंटित हुआ था. उनमें कई अफसर उत्तराखंड चले गये और कई आज भी उत्तर प्रदेश में विभिन्न तरह की कानूनी अड़चने लगाकर मलाईदार पदों पर बैठे हुए हैं. उत्तराखंड न जाना पड़े इसके लिए PCS संवर्ग के 1996 बैच के विवादित पूर्व नगर आयुक्त लखनऊ के पद पर सपा सरकार से विराजमान रहे उदयराज सिंह भी एक हैं जिन्होंने करीब 2-3 वर्ष पहले सुप्रीम कोर्ट चले गए ताकि इनको उत्तराखंड न जाना पड़े जबकि DOPT ने इनकी डीपीसी कराने से मना कर दिया था. उसका कहना था कि जब इनको उत्तराखंड कैडर आवंटित है तो ये वहीँ जाकर प्रमोशन लें.
लेकिन इसी बीच 23 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश आया जिसमें कोर्ट ने याची उदयराज के सन्दर्भ में लिफाफा बंद करने को कहा और 1996-97 बैच के अफसरों की प्रस्तावित डीपीसी का कोई जिक्र ही नहीं किया. मजे की बात और कि इन बीच के वर्षों में अन्य बैच के अफसरों की डीपीसी हुई और वह प्रमोशन पाकर आईएएस बन गए. इस तरह कायदे से 32 में से 30 अफसरों का आईएएस में प्रमोशन होना था जबकि याची उदयराज के संदर्भ में कोर्ट का आदेश लिफाफा बंद करने के लिए था. इसके बावजूद मुख्यमंत्री योगी के अधीन नियुक्ति विभाग ने मामले को सुलझाने के बजाय उलझाते हुए और अपनी मनमानी दिखाते हुए 9 अगस्त 18 को एक पत्र डीओपीटी को भेजा.
विभाग ने अपने इस पत्र में उन पांच अफसरों का नाम और जोड़ दिया जिनको उत्तराखंड कैडर आवंटित हुआ है और वह उत्तर प्रदेश में तैनात हैं. उदयराज के अलावा बाकी अफसरों की डीपीसी भी अभी निकट भविष्य में नहीं होनी है. ऐसे में आरोप यह भी लगाए जा रहे हैं कि इन सबके बावजूद प्रस्तावित 20 अप्रैल की डीपीसी न कराए जाने की मंशा के चलते नियुक्ति विभाग द्वारा लिखे गये इस पत्र से डीपीसी के लिए प्रस्तावित PCS संवर्ग के अफसरों के हितों की अनदेखी की गयी है. फिलहाल नियुक्ति विभाग की इस कार्यवाही इस वर्ग में चर्चा का विषय बनी हुयी है, और नाराजगी भी फैल रही है. इन अफसरों का कहना है की नियुक्ति विभाग के मनमाने रवैए से हमारे हितों की अनदेखी की गई है और मामले को सुलझाने की जगह उलझा दिया गया है.
शासन में बैठे अफसरों के इस तरह के मनमाने फैसले सरकार की नीतियों और उसकी मंशा को पलीता लगाते हैं. योगिराज में अफसरों की मनमानी को लेकर दो दिन पहले कानपुर में गंगा प्रोजेक्ट में हो रही देरी को लेकर मुख्यमंत्री के समक्ष केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि उत्तर प्रदेश में “डीपीआर और टेंडर-टेंडर ही खेलते रहते हैं अफसर” जबकि उत्तराखंड में 42 प्रोजेक्ट एक साथ चल रहे हैं और यूपी में 2 प्रोजेक्ट शुरू होने में इससे ज्यादा का समय लग रहा है. ऐसे में अब जब खुद मुख्यमंत्री के अधीन नियुक्ति विभाग का यह रवैया है तो बाकी विभागों का हाल को जाना और समझा जा सकता है.