पीढ़ी-दर-पीढ़ी सहेजी गई जूलरी है ‘चेट्टीनाड’, सदियों तक बरकरार रहती है इस गहने की चमक

चेट्टीनाड जूलरी केवल आभूषण नहीं, बल्कि एक विरासत है, जो देखने वाले को मंत्रमुग्ध कर देती है। बता दें, तमिलनाडु का चेट्टीनाड क्षेत्र अपने खास तरह के गहनों के लिए प्रसिद्ध है। यहां के आभूषणों की सबसे बड़ी पहचान उनका ‘बोल्ड’ और ‘एंटीक’ लुक है। आइए ‘कहानी गहनों की’ सीरीज में जानते हैं इस शाही और ट्रेडिशनल जूलरी की खासियत के बारे में।
चेट्टीनाड सिर्फ एक जगह का नाम नहीं, बल्कि कला, संस्कृति और नायाब शिल्पकला की जीवित पहचान है। यहां के कारीगर किसी भी साधारण धातु या पत्थर को छू भर दें, तो वह एक अलौकिक कलाकृति बन जाती है। यही अनूठापन चेट्टीनाड की इमारतों, डिजाइनों और खासकर उनकी जूलरी (Chettinad Jewellery) में दिखाई देता है। जी हां, हर आभूषण अपने भीतर चेट्टीनाड समुदाय के अनुभव और परंपराओं की कहानी समेटे होता है।
75 गांवों का सांस्कृतिक खजाना
तमिलनाडु के चेट्टीनाड इलाके में बसे 75 गांव चेट्टीयार समुदाय का प्राचीन घर हैं। माना जाता है कि यह लोग मूल रूप से पूम्पुहार से यहां आए थे। आज भी यहीं के स्थानीय कारीगर पारंपरिक चेट्टीनाड गहनें बनाते हैं और अपनी कला को उसी प्रामाणिकता के साथ आगे बढ़ा रहे हैं। यही कारण है कि असली चेट्टीनाड जूलरी इनके अलावा कोई और नहीं बना सकता और यह बारीकी केवल इन्हीं हाथों से निकलती है।
चेट्टीनाड जूलरी की कहानी
पीढ़ियों से सहेजा गया हर आभूषण एक भावनात्मक मूल्य रखता है। चेट्टीनाड जूलरी मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती है-
धार्मिक, अनुष्ठानिक और सौंदर्यपरक।
जब चेट्टीयार समुदाय बर्मा में व्यापारी थे, तब वहां से बड़ी मात्रा में माणिक भारत लाए जाते थे और इन्हीं से चेट्टीनाड की प्रसिद्ध जूलरी तैयार होती थी। समय के साथ जब उनका व्यापार समाप्त हुआ, तो माणिकों के स्थान पर हीरों का उपयोग शुरू हो गया। आज यह डिजाइन आधुनिक दुनिया में भी उतने ही पसंदीदा हैं।
डिजाइनों की खूबसूरती और निर्माण की विशेषताएं
चेट्टीनाड जूलरी का सबसे आकर्षक पहलू इसके डिजाइन हैं। फूलों की लतरें, मोर, हंस, आम की आकृतियां- ये सभी मोटिफ न सिर्फ पारंपरिक हैं बल्कि सौंदर्य और कौशल का अद्भुत मेल भी हैं। इन डिजाइन्स को सबसे पहले अलग-अलग हाथ से तराशा जाता है और फिर शुद्ध सोने, रूबी व हीरों के साथ जोड़कर पूरा आभूषण तैयार किया जाता है।
सबसे खास बात यह है कि इन आभूषणों के लिए किसी कैटलॉग का सहारा नहीं लिया जाता। पूरा काम हाथ से होता है- एक-एक डिजाइन अलग बनाया जाता है, इसलिए हर पीस अनोखा होता है।
चेट्टीनाड जूलरी का ‘डायमंड एरा’
जब चेट्टीयार बर्मा वापस नहीं जा सके, तो जूलरी मेकिंग का एक नया अध्याय शुरू हुआ। जी हां, माणिकों की जगह हीरों का इस्तेमाल। हीरे जमाने के लिए ट्रडिशनल क्लोज-सेटिंग तकनीक अपनाई जाती है। यह विधि आभूषण की चमक दशकों तक बनाए रखती है और इसकी रीसेल वैल्यू भी काफी ज्यादा रहती है।
इस तकनीक से निर्माण की प्रक्रिया इस प्रकार है-
चरण 1: सोने को पहले पतली चपटियों में पीटा जाता है।
चरण 2: इन पर बारीक नक्काशी की जाती है।
चरण 3: नक्काशी में हीरे बेहद पास-पास सेट किए जाते हैं।
चरण 4: पूरे आभूषण को चमकाकर अंतिम रूप दिया जाता है।
यह विधि पूरी तरह अनुभव पर आधारित है और इसे सीखने में वर्षों लग जाते हैं।
पुरुषों का प्राचीन आभूषण
पुराने समय में पुरुष भी अंगूठियों और चेन का विशेष रूप से उपयोग करते थे, जिनमें अक्सर अकेला हीरा या पन्ना जड़ा होता था। ऐसे में, एक महत्वपूर्ण धार्मिक आभूषण है- ‘गौरी संगम’। यह उन पुरुषों द्वारा पहना जाता था, जो एक विशेष समारोह के दौरान गुरु से मंत्रज्ञान प्राप्त करते थे। यह आभूषण ज्ञान और आध्यात्मिक अनुशासन का प्रतीक माना जाता था।
चेट्टीनाड की अनमोल विरासत
हर चेट्टीनाड घर में दो आभूषण बेहद खास होते हैं- गौरी संगम और कझुथीरु। कझुथीरु मूल रूप से विवाह की पवित्र थाली है, जिसे विवाहित महिलाएं पहनती हैं। इसे विवाह से पहले पीले धागे में नहीं पिरोया जाता, बल्कि छोटे-छोटे हिस्सों में सजाकर सुरक्षित रखा जाता है। इसका केंद्रीय भाग ही थाली होता है।
पुराने समय में यह 1.5 से 2 किलो सोने का बनता था, जबकि आज यह लगभग 15–20 सोवेरिन्स में तैयार किया जाता है। यह सिर्फ आभूषण नहीं, बल्कि स्त्री की सुरक्षा के रूप में भी माना जाता था और कठिन समय में इसे सहारा समझा जाता था।
चेट्टीनाड जूलरी सिर्फ सोने-जवाहरात का मेल नहीं, बल्कि सदियों पुरानी परंपराओं, कौशल और सांस्कृतिक पहचान की असली मिसाल है। हर पीस अपने भीतर इतिहास, भावना और अनोखी कला की कहानी समेटे हुए है। यह जूलरी आज भी पारंपरिक और आधुनिक दोनों रूपों में लोकप्रिय है और अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए है।





