पिता के पैरों की धूल से, गाव का हो रहा कायाकल्प

पिता की मौत के कई साल बाद भी अमेरिकी उद्यमी डॉ. दीपेन सिन्हा उनसे किया वादा निभाने में जुटे हैं। इसके लिए वह हर दूसरे-तीसरे महीने भारत आते हैं। यहा आकर पैतृक गाव नौबस्ता की माटी को पिता के पैरों की धूल मानकर माथे से लगाते हैं। आठ साल से जारी उनके इस सफर से गाव का कायाकल्प हो रहा है। पिता-पुत्र के प्यार की बुनियाद पर गाव में नौबस्ता इंडस्ट्रीज खड़ी हो चुकी है। गाव के ही 60 लोग इसे संभालते हैं।

सॉफ्टवेयर और रेडियो स्टेशन निर्माण से जुड़े साजोसामान बनाने वाली अमेरिकी कंपनी के मालिक डॉ. दीपेन सिन्हा के पिता रामेश्वरनाथ सिन्हा आठ वर्ष पहले काफी बीमार थे। तब उन्होंने डॉ. दीपेन से कहा कि मेरे न रहने के बाद तुम मेरा गाव कभी मत भूलना। इसके बाद नौ नवंबर 2011 को उनका निधन हो गया। उनसे किया वादा निभाते हुए डॉ. दीपेन ने आरएन सिन्हा फाउंडेशन बनाया और दूसरे-तीसरे माह गाव आने लगे। पिता को दिया वचन पूरा करने के लिए गाव में नौबस्ता इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड नाम से फैक्ट्री लगाई। तय किया कि यहा काम करने वाले उनके गाव के ही होंगे। विद्युत पोल बनाने वाली इस फैक्ट्री में हर व्यक्ति योग्यता के मुताबिक वेतन पा रहा है।

पढऩे गए अमेरिका, बना ली कंपनी

इंटरमीडिएट की पढ़ाई के बाद दीपेन ने 1987 में आइआइटी खड़कपुर से बीटेक किया। इसके बाद एमटेक करने वेल लैप्स यूनिवर्सिटी अमेरिका चले गए। वहीं पीएचडी के बाद 1991 में नौकरी मिल गई। अमेरिका में करीब 20 पेटेंट अपने नाम करने के बाद 2008 में एटीसी नामक कंपनी खोल ली।

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