पाकिस्तान का वजूद खुद मिटा रहा है, हमले की जरूरत क्या है…

क्या पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए हमले की जरूरत है? बिजनेस स्टैंडर्ड में छपे टी एन नाइनन के लेख पर गौर करें तो पता चलेगा कि पाकिस्तान अपने आप कमजोर हो रहा है.
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था विदेशी कर्ज के भरोसे चल रही है. वहीं अब कर्ज में भी मुश्किल हो सकती है, क्योंकि पाकिस्तान का जियो पॅलिटिकल महत्व तेजी से घट रहा है.
हमले की जरूरत क्या है
दरअसल पाकिस्तान अपने 70 साल के इतिहास में लगातार त्रासदी से गुजरा है. तीन संविधान, पहला चुनाव 1970 में, 35 साल मिलिट्री शासन और 2013 में पहली बार एक चुनी हुई सरकार आई. उसने दूसरी ऐसी सरकार को सत्ता सौंपी – इन सबसे पता चलता है कि पाकिस्तान में कभी भी हालात सामान्य हो ही नहीं पाए.
पश्चिमी देशों का क्लाइंट स्टेट था पाकिस्तान
शुरुआती सालों में किस्मत ने इसका साथ दिया था. सोवियत संघ के अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद अमेरिका की पाकिस्तान से दोस्ती बढ़ी. तालिबान से लड़ने के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान को अपना सहयोगी बनाया. इसके बदले पाकिस्तान को करोड़ों डॉलर मिले.
लेकिन, अमेरिका से अब दूरी बढ़ने लगी है. यूरोपियन यूनियन हाथ खींचने लगा है. इस्लामिक देश अपनी ही उलझनों में फंसे हुए है.
अब पाकिस्तान का एक मात्र सहारा चीन बचा है.
लेकिन चीन की मजबूरी ये है कि उसके लिए भारत एक बड़ा बाजार है. ऐसे में वो पाकिस्तान को उकसा तो सकता है, लेकिन भारत के खिलाफ खुलेआम पाकिस्तान का साथ नहीं दे सकता है. मतलब ये कि चीन पीछे से डायरेक्शन तो दे सकता है, लेकिन कभी भी पाकिस्तान के पक्ष में मैदान में नहीं उतरेगा.
पाकिस्तान अकेला हो रहा है और अपने बनाए चक्रव्यूह में फंसता जा रहा है. हमले की जरुरत कहाँ .
-द क्विंट से साभार .