तो इसलिए पलट सकता है पीएफ पर ब्याज दर बढ़ाने का फैसला, जानें क्यों..

कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) पर मिलने वाली ब्याज दर को फरवरी में बढ़ाकर 8.65 फीसदी करने का प्रस्ताव किया गया था. अब खबर आ रही है कि IL&FS में निवेश से नुकसान और अन्य वजहों से पीएफ के प्रस्तावित ब्याज दर में आधा से एक फीसदी तक कटौती की जा सकती है. वित्त मंत्रालय ने रेट की समीक्षा करने के लिए श्रम मंत्रालय से कहा है.

हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, वित्त वर्ष 2018-19 के लिए पीएफ पर मिलने वाले ब्याज दर में कटौती पर विचार किया जा रहा है. वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान पीएफ पर मिलने वाली ब्याज दर 8.55 फीसदी के पांच साल के निचले स्तर पर आ गई थी, लेकिन इस साल फरवरी में मोदी सरकार ने ब्याज दर बढ़ाकर 8.65 फीसदी करने का प्रस्ताव रखा था. इससे करीब 45 लाख लोगों को फायदा होता. लेकिन इसके बारे में अभी तक कोई अधिसूचना नहीं आई थी.  

खबर के अनुसार, अब वित्त मंत्रालय ने इस प्रस्ताव पर आपत्त‍ि की है. इसके लिए एक वजह परेशानी में चल रही कंपनी IL&FS में पीएफ फंड के निवेश को भी बताया जा रहा है. अखबार के अनुसार श्रम सचिव को 7 जून को भेजे लेटर में वित्त मंत्री ने कहा है, ‘ईपीएफओ के सब्सक्राइबर के लिए जो ब्याज दर देना तय किया गया है, उसकी गणना ईपीएफओ स्कीम नियमों के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है. इसके अलावा IL&FS समूह में निवेश से भी कुछ नुकसान हो सकता है. इसलिए श्रम एवं रोजगार मंत्रालय को हमारी यह सलाह है कि वित्त वर्ष 2018-19 के लिए ऐसे उपयुक्त ब्याज दर पर विचार करें जिससे ईपीएफओ के पास सरप्लस बना रहे.’

खुशखबरी: ई-रिक्शा जैसे इलेक्ट्र‍िक वाहनों का रजिस्ट्रेशन फीस होगा माफ

 देश के निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के पीएफ का प्रबंधन कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के द्वारा किया जाता है और ब्याज दर पर अंतिम निर्णय इसके केंद्रीय ट्रस्टी बोर्ड (CBT) के द्वारा किया जाता है. यह श्रम मंत्रालय के तहत ही आता है. सीबीटी का चेयरपर्सन श्रम मंत्री होता है और इसमें केंद्र व राज्य सरकारों, मजदूर यूनियनों, उद्योग चैंबर्स के प्रतिनिधि शामिल होते हैं.

सीबीटी से जुड़े कई सदस्य वित्त मंत्रालय के इस लेटर का विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि ईपीएफओ के मामले में वित्त मंत्रालय कोई दखल नहीं दे सकता क्योंकि वह सरकार से कोई अनुदान नहीं लेता. इसके अलावा अगर IL&FS में निवेश से कोई नुकसान हुआ है, तो इसके लिए सरकार जिम्मेदार है, क्योंकि फंड के निजी कंपनियों में निवेश की इजाजत उसी ने दी थी.

हालांकि एक सूत्र ने अखबार को यह भी बताया है कि पीएफ पर ब्याज दर घटाने की मुख्य वजह IL&FS में होने वाले निवेश से नुकसान नहीं है. उनका कहना है कि IL&FS में ईपीएफओ का निवेश बहुत कम है. असल में पीएफ की ब्याज दर छोटी बचत योजनाओं और बैंक जमा से भी ज्यादा है. इन्हें प्रतिस्पर्धी बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि पीएफ ब्याज दर को एक सीमा तक रखा जाए.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button