परंपरा और संस्कृति का अनोखा संगम हैं गोवा के सांजाव और सांगोद महोत्सव

गोवा का जीवंत महोत्सव है सांजाव। 24 जून को मनाया जाएगा यह सांस्कृतिक उत्सव जब स्थानीय लोग मानसून की अच्छी बारिश और परिवार-समुदाय की खुशहाली की प्रार्थना के साथ लगाएंगे आस-पास के कुओं तालाबों और जल निकायों में छलांग। मानसून में गोआ की इस मस्ती में शामिल हों ओमप्रकाश तिवारी के इस आलेख के साथ।

वैसे तो गोवा साल भर देसी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना रहता है, लेकिन जून माह के अंतिम सप्ताह में पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण बन जाते हैं, वहां के दो स्थानीय उत्सव। प्रति वर्ष 24 जून को मनाया जाने वाला ‘सांजाव महोत्सव’ एवं 29 जून को मनाया जाने वाला ‘सांगोद महोत्सव’ एक ओर गोवा की उत्सवधर्मी परंपराओं के दर्शन कराते हैं, तो दूसरी ओर मानसून का गर्मजोशी से स्वागत करने का प्रतीक भी होते हैं। गोवा की इस परंपरा को देखने का मन हो तो बना सकते हैं एक यात्रा की योजना।

संत की याद में महोत्सव
सांजाव (साओ जोआओ) महोत्सव वास्तव में ईसाई समुदाय का उत्सव है। यह कैथोलिक संत जान द बैपटिस्ट की जयंती के रूप में मनाया जाता है। जब जान मां एलिजाबेथ के गर्भ में थे, तो एक दिन एलिजाबेथ अपनी रिश्तेदार मरियम से मिलने पहुंचीं। वहां मरियम की आवाज सुन जान अपनी मां के पेट में उछल पड़े। जान के इसी उछलने की याद में गोवा के कैथोलिक युवा कुओं और तालाबों में कूदते हैं। जब यह उत्सव मनाया जाता है, उस समय तक गोवा में मानसून आ चुका होता है। गोवा की सड़कों एवं अलग-अलग बस्तियों में भी सजे-धजे लोग नाचते-गाते हुए जुलूस निकालते हैं और चर्चों की सजावट भी की जाती है।

दामाद का विशेष सत्कार
इस परंपरा का एक भाग पारिवारिक भी है। इस दिन नवविवाहित दामादों को उनकी ससुराल में दोपहर के भोजन के लिए भी आमंत्रित किया जाता है। दामाद के ससुराल पहुंचने पर आतिशबाजी कर स्वागत किया जाता है। उसके बाद पूरा परिवार साथ बैठकर संत जान, वर्जिन मैरी एवं अन्य संतों के सम्मान में भजन गाते हैं। दोपहर के भोजन में चावल एवं नारियल के पानी से बना केक, पोर्क विंडालू, नारियल के दूध में कद्दू को पकाकर बनाया गया वर्दुर एवं ताड़ के गुड़ से बनाई गई मिठाई पाटोलियो तैयार की जाती है। दामाद को विदा करते समय सास उसे भेंट स्वरूप फलों और मिठाइयों से भरी टोकरी देती है। जिसे दामाद अपने घर लेकर जाता है और वहां पूजा-पाठ के बाद उस टोकरी की मिठाइयां और फल अपने पूरे गांव में बांटता है। वैसे भी इस उत्सव में लोग एक-दूसरे के घरों में मिठाइयों का आदान-प्रदान करते हैं।

निकलता है रंग-बिरंगा जुलूस
सांजाव उत्सव के ठीक पांचवें दिन 29 जून को हर साल सांगोद उत्सव भी मनाया जाता है। यह उत्सव विशेष रूप से गोवा के मछुवारा समुदाय में मनाया जाता है। मछुवारे यह उत्सव ईसा मसीह के 12 प्रचारकों में से एक संत पीटर को याद करते हुए मनाते हैं। वह इस दिन पीटर की पूजा करते हुए उनसे समुद्र में अपनी रक्षा एवं व्यावसायिक उन्नति की कामना करते हैं। उत्सव के रूप में छोटी-छोटी कई नौकाओं को एक-दूसरे से जोड़कर उन पर एक मंच बनाकर उसे चर्च का रूप प्रदान करते हैं और वहां संत पीटर एवं संत पाल के सम्मान में भजन-कीर्तन होता है।

बाद में कई नावों को जोड़कर बनाए गए इस बेड़े को नदियों एवं समुद्र में कुछ दूर तक तैराकर ले जाया जाता है। एक साथ अनेक समूहों द्वारा नदियों में निकाले जाने वाले इन रंग-बिरंगे नौका जुलूसों से अति मनोहर दृश्य पैदा होता है। इस उत्सव के दौरान मछुवारा समुदाय द्वारा आपस में कई तरह की प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है।

नौका पर झांकी देवताओं की सांगोद का एक उत्सव तो मानसून काल में 29 जून को मनाया जाता है, लेकिन इसी प्रकार का एक और सांगोद उत्सव गणेश चतुर्थी के सातवें दिन भी मनाया जाता है। यह उत्सव सामान्यतः हिंदू मछुवारों द्वारा मनाया जाता है और इस उत्सव में छोटी नौकाओं को जोड़कर बनाए गए बेड़ों पर हिंदू देवी-देवताओं एवं पौराणिक चरित्रों की झांकियां निकाली जाती हैं। उस समय का दृश्य भी देखने लायक होता है।

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