पनामा पहुंची चीन की ओबीओआर परियोजना, अमेरिका के लिए बना चिंता का विषय

चीन की बहुउद्देशीय परियोजना वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर) अब अमेरिका के लिए भी चिंता बनती जा रही है। पहले चीन की ये परियोजना भारत के पड़ोसी देशों तक ही सीमित थी, लेकिन अब ये अमेरिका के पड़ोसी देशों तक भी पहुंच गई है।

इस परियोजना को बेल्ट एंड रोड (बीआरआई) भी कहा जाता है। जिसका उद्देश्य एशिया के देशों को चीन द्वारा प्रायोजित परियोजना के माध्य से जोड़ना है। जिसे चीनी 21वीं सदी का ‘सिल्क रूट’ कहते हैं। लेकिन अब वह अमेरिका के पड़ोसी देशों तक भी पहुंच गया है।

चीन अब इस परियोजना के लिए लैटिन अमेरिकी देशों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। वह पनामा जैसे देश में इस परियोजना के पक्ष में माहौल बनाने के लिए प्रचार-प्रसार के हर हथकंडे अपना रहा है। मध्य अमेरिकी देशों पर चीन का ध्यान एक नई चिंता की बात है।

40 लाख की आबादी वाला यह देश नहर के जरिए अटलांटिक और प्रशांत महासागर को जोड़ता है। जिसके चलते इसे व्यापार के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जाता है। पनामा अंतरराष्ट्रीय व्यापार का मुख्य मार्ग है, जिसके कारण यह चीन और अमेरिका के लिए रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है।

इस इलाके में अमेरिका का दबदबा माना जाता है। लेकिन चीन के इस कदम से अमेरिकी अधिकारियों की चिंता काफी बढ़ गई है। अमेरिका की सरकार ने अधिकारियों को चीन की इस परियोजना के प्रति आगाह रहने को कहा है।

इस मामले में अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो भी पत्रकारों के सामने पनामा को चीन के निवेश से आगाह रहने के लिए कह चुके हैं। बीते साल दिसंबर माह में पॉम्पियो ने जी-20 देशों की बैठक में दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के सामने चीन की इस परियोजना के प्रति चिंता भी जताई थी।

जानकारी के मुताबिक चीन पनामा में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए राजनेताओं, प्रफेशनल्स और पत्रकारों को लुभाने की कोशिश में लगा हुआ है। चीन के स्पेनिश बोलने वाले राजदूत भी ओबीओआर परियोजना के फायदे टीवी और ट्विटर पर बता रहे हैं।

चीन की इन कोशिशों का असर अब दिखना शुरू हो चुका है। पनामा के राष्ट्रपति जुआन कार्लोस वारेला ने हाल ही में हांगकांग में चीनी परियोजना के पक्ष में बयान दिया था। चीन एशिया और अमेरिका को पनामा से जोड़ने के बड़े मौके के रूप में देखता है।

रिपोर्ट के मुताबिक पनामा के राष्ट्रपति इसी महीने पेइचिंग में होने वाले ‘ओबीओआर’ फोरम में भी हिस्सा लेंगे। चीन की इस परियोजना पर भारत और अमेरिका आपत्ति जता चुके हैं।

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