पंजाब में नया खतरा: दरियाओं ने स्वरूप बदला, बढ़ गया बाढ़ क्षेत्र

पंजाब में बाढ़ की भीषण त्रासदी ने यहां बसने वाले बाशिंदों के लिए जहां एक ओर बड़ी आफत खड़ी कर दी है वहीं दूसरी ओर सूबे में बहने वाले दरियाओं का बाढ़ क्षेत्र भी काफी बढ़ गया है, जो भावी खतरों के मद्देनजर चिंता का विषय है। ये वही दरिया हैं, जिनके उफान ने पंजाब में खूब तबाही मचाई है।

भले ही पानी पहाड़ों का था मगर बाढ़ की वजह से पंजाब में इन दरियाओं ने अपना स्वरूप ही बदल लिया है। इस आपदा के बाद पंजाब का जल स्रोत विभाग अब इस चिंतन मंथन में जुट गया है कि आखिरकार सूबे को इस तरह के भावी खतरों से कैसे महफूज रखा जाए। पंजाब सरकार भी इसे बड़ी चुनौती मान रही है।

जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर बनेंगी परियोजनाएं
भविष्य में पंजाब को बाढ़ जैसी आपदा से बचाने के लिए जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर परियोजनाएं तैयार करनी पड़ेंगी, क्योंकि सरकार का दावा है कि इस बार आई बाढ़ पंजाब के इतिहास में सबसे बड़ी त्रासदी है। पंजाब में सतलुज, ब्यास, रावी, घग्गर व इनकी सहायक नदियों के इर्द-गिर्द करीब 900 किलोमीटर लंबे धुस्सी बांध हैं। इनमें 226 किलोमीटर सतलुज, 164 किलोमीटर रावी, 104 किलोमीटर ब्यास और लगभग 100 किलोमीटर घग्गर के किनारों पर बने हुए हैं।

इनके अलावा सहायक नदियों और नालों के आसपास भी 300 किलोमीटर से अधिक लंबे कच्चे बांध बने हुए हैं। इनमें से अधिकतर बांध 1950-60 के दशक में बनाए गए थे। मुख्यमंत्री भगवंत मान के अनुसार पंजाब को इस तरह के भावी खतरों से बचाने के लिए उन्होंने जल स्रोत विभाग के आला अफसरों को एक परियोजना तैयार के निर्देश दे दिए हैं। सरकार इसे लेकर खासी गंभीर और चिंतित है।

धुस्सी बांधों पर बनानी होंगी पक्की सड़कें : संत सीचेवाल
राज्यसभा सदस्य और पर्यावरणविद संत बलबीर सिंह सीचेवाल ने कहा कि बाढ़ों से निजात पाने के लिए हमें दरियाओं के लिए बाढ़ क्षेत्र को छोड़ना होगा। जलवायु परिवर्तन से आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा। उन्होंने कहा कि धुस्सी बांधों को मजबूत करने के लिए इनके ऊपर पक्की सड़कों का निर्माण होना चाहिए और बांधों पर पेड़ लगाने पड़ेंगे। दरियाओं के किनारे सुनियोजित ढंग से वन क्षेत्र को बढ़ाना पड़ेगा। उनके अनुसार कुदरती आपदा से बचने के लिए हमें कुदरती उपाय ही करने होंगे।

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