पंजाब के 2 किसान भाइयों ने कायम की मिसाल

उद्योगपति हों या आम नागरिक, हर वर्ग को वायु प्रदूषण कम करने में अपना योगदान देना चाहिए। इसके अलावा, किसानों का एक वर्ग ऐसा भी है जो पर्यावरण, मिट्टी और पानी की शुद्धता बनाए रखने में अहम भूमिका निभा सकता है और कई किसान यह भूमिका निभा भी रहे हैं। ऐसे ही किसानों में गुरदासपुर जिले के भागोकावां गांव के 2 किसान भाई सरबजीत सिंह और रणजीत सिंह (पुत्र हरभजन सिंह) भी शामिल हैं, जो पिछले 12 सालों से कृषि यंत्र सुपर सीडर किराए पर लेकर बिना पराली जलाए गेहूं की बुवाई कर रहे हैं। वे खेत में धान की पराली को जोतकर गेहूं की बुवाई करके दूसरे किसानों के लिए मिसाल का काम कर रहे हैं। जानकारी के मुताबिक, दोनों भाई मिलकर खेती करते हैं।
दोनों भाई कृषि एवं किसान कल्याण विभाग और कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि विशेषज्ञों के लगातार संपर्क में रहते हैं। वे कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना द्वारा आयोजित शिविरों में भाग लेते हैं और कृषि संबंधी साहित्य भी पढ़ते हैं। सरबजीत सिंह ने बताया कि उनके पिता हरभजन सिंह हमेशा यही सिखाते थे कि किसी भी फसल के अवशेष को जलाना नहीं चाहिए, बल्कि जमीन में ही जमा कर देना चाहिए ताकि मिट्टी का स्वास्थ्य बना रहे, क्योंकि अगर मिट्टी का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा तो उत्पादन के साथ-साथ गुणवत्तापूर्ण उत्पादन भी मिलेगा।
उन्होंने बताया कि धान की पराली और गेहूँ के डंठलों को खेतों में जमा करने से उर्वरकों की खपत कम हो रही है और कीटों का प्रकोप कम होने से कृषि लागत भी कम हो रही है और मुनाफा बढ़ रहा है। उन्होंने बताया कि धान और गेहूं के लिए कभी भी 90 किलो प्रति एकड़ से ज्यादा खाद का इस्तेमाल नहीं किया गया। उन्होंने बताया कि सिर्फ़ गेहूं की फसल को ही डीएपी खाद दी जाती है और धान की फसल को डीएपी खाद नहीं दी जाती।
रणजीत सिंह ने बताया कि सुपर सीडर महंगा होने के कारण उन्होंने किराए पर गेहूं की बुवाई की है, जिससे मशीनरी के रखरखाव का खर्च भी बच जाता है। उन्होंने बताया कि पिछले 12 सालों से उन्होंने धान की पराली में आग नहीं लगाई है और न ही किसी को आग लगाने की सलाह दी है। उन्होंने बताया कि कतारों में पड़ी पराली को रीपर या खुद बनाए जुगाड़ से साफ किया जाता है, जिसके बाद सुपर सीडर की मदद से गेहूं की बुवाई की जाती है और उन्हें कभी कोई परेशानी नहीं हुई। सरबजीत सिंह ने बताया कि पराली को खेतों में ही रखकर गेहूं की बुवाई करने से जमीन की सेहत में सुधार हुआ है।
दोनों भाइयों ने किसानों से पराली को आग लगाने की गलती से बचने और उसे खेत में ही जलाने की अपील भी की ताकि खेती की लागत भी कम हो सके। साथ ही, उन्होंने कहा कि जमीन की उर्वरता में भी काफी वृद्धि हुई है और उन्हें गर्व है कि वे प्राकृतिक संसाधनों को बचाने और पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए काम कर रहे हैं।
डिप्टी कमिश्नर दलविंदरजीत सिंह ने दोनों किसान भाइयों की प्रशंसा करते हुए कहा कि ऐसे किसान दूसरे किसानों के लिए मार्गदर्शक का काम करते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे किसानों को एक विशेष समारोह आयोजित करके सम्मानित किया जाएगा। उन्होंने किसानों से अपील की कि वे भी किसान सरबजीत सिंह और रणजीत सिंह की तरह अपने खेतों में धान की फसल के अवशेष न जलाएं ताकि जमीन की उर्वरता बनी रहे।