तुर्किए क्यों बना पाकिस्तान का हिमायती, इस्लामिक वर्ल्ड में दबदबे की होड़ या कुछ और?

 भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के दौरान तुर्किए के रुख को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा हुई। इस दौरान तुर्किए ने भारत की ओर से की गई कार्रवाई के बाद पाकिस्तान को खुले तौर पर समर्थन भी किया। भारत की ओर से भी तुर्किए को लेकर कई सख्त कदम उठाए गए।

तुर्किए लंबे समय तक भारत के साथ रिश्तों पर जमीं बर्फ को लेकर चुप्पी साधे हुए था और मतभेदों पर अस्पष्ट रुख अख्तियार किए हुए था, लेकिन साल 2019 में जब भारत सरकार ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 निरस्त किया, तब तुर्किए भारत के खिलाफ सामने आया।

मौजूदा वक्त की बात करें तो भारत पाकिस्तान तनाव के बीच तुर्किए के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोगन ने यहां तक कह दिया, ”हम पाकिस्तान के लोगों के साथ खड़े हैं। भाई शहबाज शरीफ को मैंने फोन कर कहा था कि हम साथ हैं। हम पाकिस्तान के साथ आगे भी खड़े रहेंगे।”

साउथ और सेंट्रल एशिया में मौके की तलाश में तुर्किए

तुर्किए और भारत का संबंध पाकिस्तान से कहीं ज्यादा स्थाई है, लेकिन इसके बावजूद तुर्किए ने पूरा मन बना लिया है कि वह दक्षिण एशिया के इन दो देशों की बीच पनपे तनाव में पाकिस्तान का साथ देगा। तुर्किए और पाकिस्तान दोनों ही पश्चिमी देशों की सिक्योरिटी स्ट्रक्चर में अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं। बदलते दौर में दोनों ही देश अपनी साख बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।

विदेश मामलों के जानकार और थिंक टैंक IMAG India के प्रेसिडेंट रोबिंदर सचदेव जागरण डॉट कॉम से बातचीत में तुर्किए के इस रवैये को लेकर कहते हैं, “इसकी दो वजहें हैं। अव्वल तो तुर्किए इस्लामिक वर्ल्ड में अपनी आइडेंटिटी बनाने की कवायद में जुटा है। वहीं दूसरी ओर वह नाटो की भी सदस्य है तो तुर्किए चाहता है कि वह पूरब और पश्चिम देशों के बीच एक ब्रिज बना रहे।”

रोबिंदर सचदेव कहते हैं, “तुर्किए लंबे समय से खुद को इस्लामिक देशों के ग्लोबल साउथ के बीच में अपनी लीडरशिप कायम करना चाहता है। इसे मैं अपने एक निजी अनुभव से समझाता हूं। 90 के दशक में मैं मॉस्को, कजाकिस्तान और बाकू में रहा हूं, मैंने तब से देखा है कि तुर्किए इकलौता ऐसा देश था जिनके बिजनेसमैन या सरकार के लोग सेंट्रल एशिया में आते थे और यहां के लोगों के साथ संबंध साधने की कोशिश में लगे रहते थे।”

तुर्किए पिछले 30 साल से ग्लोबल साउथ और सेंट्रल एशिया में खुद को लीडर बनाने के लिए काफी जतन किए हैं। पाकिस्तान का साथ देने के पीछे तुर्किए की सिर्फ एक ही मंशा है कि वह इस्लामिक देशों में अपनी लीडरशिप को मजबूत करना चाहता है और दिखाना चाहता है कि साउथ एशिया और सेंट्रल एशिया में वह इस्लामिक देशों का हिमायती है।

रोबिंदर सचदेव, विदेश मामलों के जानकार

नाटो में तुर्किए पड़ा अलग-थलग?

बीते कुछ सालों में तुर्किए के फैसलों पर नाटो के उसके सहयोगी देश ऐतराज जताते रहे हैं। चाहे वह रूस से एस-400 एंटी मिसाइल सिस्टम खरीदना हो या फिर चीन से लगातार बढ़ती करीबी।

तो क्या तुर्किए खुद अलग-थलग महसूस कर रहा है और पाकिस्तान ही उसकी डिफेंस पार्टनरशिप के लिए इकलौता विकल्प नजर आता है?

रोबिंदर सचदेव इस तर्क से इत्तेफाक नहीं रखते हैं। उनका कहना है, “ये कहना गलत होगा कि तुर्किए अलग-थलग हो गया और नाटो में वह साइडलाइन हो गया है। वह अब भी नाटो का अहम सदस्य है। इसे ऐसे समझें कि अमेरिका ने भी तुर्किए को हथियार दिए और टेक्नॉलॉजी शेयर किए हैं। यहां तक की तुर्किए में अमेरिका के न्यूक्लियर मिशन चल रहे हैं। हां, ये बात सही है कि नाटो में कुछ मतभेद चल रहे हैं।”

भारत, आर्मेनिया और अजरबैजान में भी तुर्किए ने लगाई चिंगारी?

तुर्किए और पाकिस्तान ने नागोर्नो-कारबाख जंग में अजरबैजान का साथ दिया था। वहीं मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत 2022 संधि के तहत आर्मेनिया को आकाश-1एस सरफेस टू एयर मिसाइल प्रणाली की दूसरी खेप देने की योजना बना रहा है। इसके साथ ही हॉवित्जर तोपों और पिनाका मल्टीपल लॉन्च रॉकेट सिस्टम सहित हथियारों की एक विस्तृत श्रृंखला भी भेजने की योजना बना रहा है। मिसाइलों की पहली खेप पिछले साल नवंबर में भेजी गई थी।

रूस कई सालों तक आर्मेनिया का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता रहा है, लेकिन यूक्रेन के खिलाफ जंग में रूस का खुलकर समर्थन न करने के कारण दोनों देशों के बीच रिश्तों में उत्साह खत्म होता गया। तब से भारत आर्मेनिया के लिए हथियारों का बड़ा आपूर्तिकर्ता बनकर उभरा है।

रोबिंदर सचदेव कहते हैं, “हमारे रिश्ते आर्मेनिया और अजरबैजान दोनों से नॉर्मल चल रहे थे। बीते कुछ सालों में हमने आर्मेनिया को डिफेंस एक्सपोर्ट किया है, जिसमें पिनाका भी शामिल है। इससे अजरबैजान को ये मैसेज गया कि जंग में भारत आर्मेनिया के साथ है। इसी तरह धीरे-धीरे अजरबैजान हमारे खिलाफ हो गया। इसी मौके को तुर्किए ने भूना लिया और अजरबैजान को अपने और पाकिस्तान के पक्ष में ले आया। इसके बाद से ही अजरबैजान की ओर से भी भारत के खिलाफ बयान आने शुरू हो गए।”

भारत, तुर्किए और अजरबैजान के बीच व्यापारिक संबंध

मौजूदा समय में भारत, अजरबैजान का सातवां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। हर साल लाखों की तादाद में भारतीय, अजरबैजान घूमने जाते हैं। अजरबैजान में करीब डेढ़ हजार से ज्यादा भारतीय समुदाय के लोग रहते हैं।

भारत अजरबैजान को चावल, मोबाइल फोन, एल्युमिनियम ऑक्साइड, दवाओं, स्मार्टफोन, सिरेमिक टाइल्स, ग्रेनाइट, मशीनरी, मांस और जानवरों का निर्यात करता है।

देशभारत से निर्यात (अप्रैल–फरवरी 2024–25, USD मिलियन)भारत में आयात (अप्रैल–फरवरी 2024–25, USD मिलियन)प्रमुख भारतीय निर्यातप्रमुख भारतीय आयातव्यापार अधिशेष (USD मिलियन)
तुर्किये5,200 (2024–25)2,840 (2024–25)खनिज ईंधन और तेल, विद्युत उपकरण, ऑटो पार्ट्स, रसायन, औषधियां, वस्त्र, इस्पातसंगमरमर, सेब, सोना, सब्जियां, सीमेंट, खनिज तेल, रसायन, धातु2,360
तुर्किये6,650 (2023–24)3,780 (2023–24)खनिज ईंधन और तेल, विद्युत उपकरण, ऑटो पार्ट्स, रसायन, औषधियां, वस्त्र, इस्पातसंगमरमर, सेब, सोना, सब्जियां, सीमेंट, खनिज तेल, रसायन, धातु2,870
अज़रबैजान86.07 (2024–25)1.93 (2024–25)तंबाकू और उत्पाद, चाय, कॉफी, अनाज, रसायन, रबर, कागज़, चीनी मिट्टीपशु चारा, जैविक रसायन, इत्र, कच्ची खालें, चमड़ा84.14
अज़रबैजान89.67 (2023–24)0.74 (2023–24)तंबाकू और उत्पाद, चाय, कॉफी, अनाज, रसायन, रबर, कागज़, चीनी मिट्टीपशु चारा, जैविक रसायन, इत्र, कच्ची खालें, चमड़ा88.93

वहीं अप्रैल 2024 से फरवरी 2025 के दौरान तुर्किए के साथ भारत का निर्यात व्यापार कुल 5.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर और आयात व्यापार कुल 2.84 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।

भारत द्वारा तुर्की को निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में ऑटो कंपोनेंट, कपड़ा, रसायन और खनिज ईंधन शामिल हैं जबकि आयात में सेब, संगमरमर, सोना और खनिज तेल शामिल हैं।

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