तीन दिवसीय बैंकॉक दौरे पर पीएम मोदी, इस वजह से पूरी दुनिया की होगी इस दौरे पर निगाहें

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थाईलैंड के तीन दिवसीय दौरे पर शनिवार को रवाना हो गए। उनका यह दौरा व्यापार, समुद्री सुरक्षा एवं संपर्क जैसे प्रमुख क्षेत्रों में क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करने पर फोकस होगा। इस दौरान वह आसियान-भारत, पूर्वी एशिया और आरसीईपी शिखर सम्मेलनों में हिस्सा लेंगे।

बैंकॉक में होने वाली 16 एशियाई देशों की व्यापारिक बैठक के दौरान रीजनल क्रॉम्प्रहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) का एलान होना है, जिस पर दुनिया की निगाहें हैं।

दरअसल, नानथाब्यूरी में होने वाले आसियान सम्मेलन से पहले सबकी नजरें आरसीईपी व्यापार समझौते पर है। बताया जा रहा है कि अगर इस समझौते को अंतिम रूप देने में कामयाबी मिलती है तो दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाया जा सकेगा।

हालांकि, आखिरी वक्त में भारत द्वारा अतिरिक्त शर्तों को रखने से एशियाई देशों के बीच होने वाले क्षेत्रीय समझौते की घोषणा मुश्किल में पड़ गई है। हालांकि, यह भी कहा जा रहा है कि बैठक में सदस्य देश आरसीईपी पर शुल्क को कम करने पर मोटे तौर पर किसी समझौते पर पहुंच जाएंगे।

क्या है आरसीईपी

आरसीईपी 16 देशों के बीच होने वाला मुक्त व्यापार समझौता है जिससे इन देशों के बीच होने वाले व्यापार को आसान बनाया जा सकेगा। इन देशों के बीच पारस्परिक व्यापार में टैक्स में कटौती के अलावा कई तरीके की आर्थिक छूट दी जाएगी। इन 16 देशों में 10 आसियान समूह के और छह देश वे हैं जिनके साथ आसियान देशों का मुक्त व्यापार समझौता है। मुक्त व्यापार समझौते का मतलब दो या दो से ज्यादा देशों के बीच ऐसा समझौता है जिसमें आयात और निर्यात की सुगमता को बढ़ाया गया हो। ऐसे समझौते के सदस्य देश टैक्सों को घटाते हैं और व्यापार के लिए अनुकूल माहौल तैयार करते हैं।

समझौते से भारत का क्या होगा फायदा?

इन 16 देशों में दुनिया की लगभग 45 प्रतिशत जनसंख्या रहती है। दुनिया के निर्यात का एक चौथाई इन देशों से होता है। दुनिया की जीडीपी का 30 प्रतिशत हिस्सा इन देशों से ही आता है। इन आंकड़ों के चलते यह दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारिक समझौता होगा। इस समझौते में 25 हिस्से होंगे। इनमें से 21 हिस्सों पर सहमति बन गई है। अब निवेश, ई कॉमर्स जैसे मुद्दों पर सहमति कायम होनी बाकी है। आरसीईपी में शामिल क्षेत्रों में काम कर रही भारत की कंपनियों को एक बड़ा बाजार मिल सकेगा। इससे भारत में इन देशों से आने वाले उत्पादों पर टैक्स कम होगा और ग्राहकों को कम कीमत पर ये सामान उपलब्ध हो सकेंगे।

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