तीन तलाक शादी खत्म करने का सबसे खराब तरीका है: SC
सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि मुस्लिम समाज में शादी खत्म करने के लिए तीन तलाक देने की प्रथा ‘सबसे खराब’ है और यह ‘वांछनीय नहीं’ है, हालांकि ऐसी सोच वाले संगठन भी हैं जो इसे ‘वैध’ बताते हैं. चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने आज लगातार दूसरे दिन इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि ऐसे भी संगठन हैं जो कहते हैं कि तीन तलाक वैध है, परंतु मुस्लिम समुदाय में विवाह विच्छेद के लिए यह सबसे खराब तरीका है और यह वांछनीय नहीं है.
संविधान पीठ ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने कहा कि यह ऐसा मसला नहीं है जिसकी न्यायिक जांच की जरूरत हो और वैसे भी महिलाओं को निकाहनामा में ही इस बारे में शर्त लिखवाकर तीन तलाक को ‘नहीं’ कहने का अधिकार है. सलमान खुर्शीद व्यक्तिगत हैसियत से इस मामले में एमिकस क्यूरी के तौर पर कोर्ट की मदद कर रहे हैं.
कोर्ट ने खुर्शीद से कहा कि वह उन इस्लामिक और गैर इस्लामिक देशों की सूची तैयार करें जिनमें तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाया गया है. पीठ को तब सूचित किया गया कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, मोरक्को और सउदी अरब जैसे देश विवाह विच्छेह के लिए तीन तलाक की अनुमति नहीं देते हैं.
जेठमलानी की दलील
एक पीड़ित की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी ने अपनी बहस में अधिक बेबाकी दिखाई और समता के अधिकार सहित संविधान के विभिन्न आधारों पर तीन तलाक की परंपरा की आलोचना की.
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जेठमलानी ने कहा कि तीन तलाक का अधिकार सिर्फ शौहर को ही उपलब्ध है और बीवी को नहीं और यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समता का अधिकार) का हनन है. उन्होंने कहा कि तलाक देने के इस तरीके में किसी तरह का बचाव नहीं है. एक तरफा विवाह विच्छेद घिनौना है और इसलिए इससे बचा जा सकता है.
जेठमलानी ने कहा कि तीन तलाक लैंगिक आधार पर भेदभाव करता है और यह तरीका पवित्र कुरान के सिद्धांतों के भी खिलाफ है और इसके पक्ष में कितनी भी वकालत इस पापी और असंगत परपंरा को, जो संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है, बचा नहीं सकती है. उन्होंने कहा कि कोई भी कानून एक पत्नी को पति की मर्जी पर पूर्व पत्नी बनने की इजाजत नहीं दे सकता और यह घोर असंवैधानिक आचरण है.