डेटिंग ऐप पर ढेर सारे ‘ऑप्शन्स’ ने बढ़ा दिए हैं हमारे नखरे

आपके हाथ में फोन है, आप सोफे पर लेटे हैं और आपका अंगूठा स्क्रीन पर लगातार ‘लेफ्ट’ और ‘राइट’ घूम रहा है। ऐसा लगता है जैसे आप किसी रेस्टोरेंट में खाने का मेन्यू देख रहे हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हजारों ‘ऑप्शन’ पास होने के बावजूद, आज की पीढ़ी पहले से कहीं ज्यादा अकेलापन क्यों महसूस कर रही है? आइए, इस आर्टिकल में जानते हैं।
सोचिए… फ्राइडे नाइट है, आपके हाथ में फोन है और आप सोफे पर लेटे हैं। स्क्रीन पर चेहरे बदल रहे हैं- स्वाइप लेफ्ट, स्वाइप राइट, स्वाइप लेफ्ट। यह किसी गेम जैसा लगता है, है ना? आपके ऐप में 500 ‘Matches’ हो सकते हैं, लेकिन सवाल यह है कि जब आपको हकीकत में किसी से बात करने का मन होता है, तो क्या उनमें से कोई एक भी ऐसा है जिसे आप कॉल कर सकें?
आज हमारे पास इतिहास में सबसे ज्यादा ‘ऑप्शन्स’ मौजूद हैं। ऐसा लगता है मानो हम किसी ‘इंसानों के सुपरमार्केट’ में खड़े हैं। “इसकी नाक थोड़ी लंबी है… रिजेक्ट!” “इसकी हाइट कम है… रिजेक्ट!” “अरे, यह तो बहुत दूर रहता है… रिजेक्ट!”
विडंबना यह है कि प्यार पाने के लिए हमारे पास जितनी ज्यादा टेक्नोलॉजी है, हम उतने ही ज्यादा अकेले होते जा रहे हैं। आखिर ऐसा क्यों है कि हजारों विकल्प होने के बावजूद, हम में से ज्यादातर लोग आज भी ‘उस एक खास इंसान’ को नहीं ढूंढ पा रहे हैं?
विकल्पों का जाल
साइकोलॉजी में इसे ‘Paradox of Choice’ कहा जाता है। यानी जब हमारे पास चुनने के लिए बहुत सारे लोग होते हैं, तो हम संतुष्ट होने के बजाय कन्फ्यूज हो जाते हैं। डेटिंग ऐप्स पर हमें लगता है कि “अगर इसमें एक भी कमी है, तो छोड़ो, अगली प्रोफाइल इससे बेहतर होगी।” यह सोच हमें किसी एक इंसान पर टिकने नहीं देती। हम हमेशा इसी भ्रम में रहते हैं कि ‘शायद अगला वाला ज्यादा अच्छा हो।’
इंसान नहीं, हम ‘चेकलिस्ट’ ढूंढ रहे हैं
डेटिंग ऐप्स ने हमारे नखरे बहुत बढ़ा दिए हैं। हम एक इंसान से नहीं मिलना चाहते, हम अपनी ‘काल्पनिक लिस्ट’ को पूरा करना चाहते हैं। हमें ऐसा पार्टनर चाहिए जो दिखने में मॉडल हो, लाखों कमाता हो, जिसका सेंस ऑफ ह्यूमर गजब का हो और जिसे गिटार बजाना भी आता हो।
सच्चाई तो यह है कि ‘परफेक्ट’ इंसान सिर्फ फिल्मों में होते हैं, असल जिंदगी में नहीं। हर इंसान में कुछ कमियां होती हैं, मुझमें भी और आपमें भी। जब हम उन छोटी-छोटी कमियों की वजह से लोगों को रिजेक्ट करते रहते हैं, तो हम दरअसल एक अच्छे रिश्ते की संभावना को ही खत्म कर रहे होते हैं।
‘शॉपिंग’ नहीं हैं रिश्ते
इन ऐप्स ने अनजाने में रिश्तों को ‘ऑनलाइन शॉपिंग’ जैसा बना दिया है। अगर किसी चीज या इंसान में थोड़ी भी गड़बड़ लगी, तो उसे तुरंत ‘रिटर्न’ या ‘रिजेक्ट’ कर दो। हम रिश्तों को बनाने, समझने और सुधारने की मेहनत करना भूल गए हैं।
‘परफेक्ट’ की चाह ठीक नहीं
अगली बार जब आप डेटिंग ऐप खोलें, तो ‘परफेक्ट’ की तलाश बंद करें और ‘असली’ इंसान को ढूंढें। किसी को सिर्फ उसकी एक फोटो या बायो से जज करने के बजाय, उसे जानने का मौका दें। याद रखें, एक बेहतरीन रिश्ता बना-बनाया नहीं मिलता, उसे दो लोग मिलकर अपनी कमियों और खूबियों के साथ बनाते हैं। कहीं ऐसा न हो कि ‘सबसे बेस्ट’ ढूंढने के चक्कर में, ‘जो आपके लिए सही था’ वो पीछे छूट जाए।





