डियर सेकुलर, डियर राष्ट्रवादी! गुरमेहर कौर को छोड़ो, असली मुद्दे पर तो लौटो!

मुद्दा क्या था? और क्या हो गया है? और ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। गुरमेहर कौर के मामले में भी वही हो रहा है जो देश में डिजिटल क्रांति के आने के बाद ज्यादातर जमीनी और जरूरी मुद्दों के साथ हो रहा है।देश की दशा और दिशा से जुड़े किसी मुद्दे पर बहस शुरू होती है लेकिन वो शुरू होते ही दम तोड़ देती है और उसके दाएं या बाएं से निकल कोई आदमी या कोई औरत या लड़के-लड़की या ट्वीट-फेसबुक पोस्ट या वीडियो या….पूरे मुद्दे को ऐसे रास्ते पर मोड़ देते हैं जिसका अंत सोशल मीडिया बवंडर में होता है। उसके बाद हर बवंडर की तरह बस धूल, धुआं, गुब्बार, हवा में उड़ती, टूटती बिखरती चीजें और आँखों के सामने अंधेरा बचता है।
विवाद दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र उमर खालिद को एक सेमिनार में वक्ता के तौर पर बुलाने से शुरू हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के छात्रों ने कॉलेज प्रशासन से मांग की कि उमर को सेमिनार में न बुलाया जाए क्योंकि उस पर “राजद्रोह” का मुकदमा चल रहा है। उमर सेमिनार में नहीं पहुंचा इसके बावजूद स्वघोषित “राष्ट्रवादी” छात्रों ने सेमिनार नहीं होने दिया।
भाकपा (माले) के छात्र संगठन आइसा के नेतृत्व में इसके खिलाफ विरोध मार्च निकाला गया। विरोध मार्च के दौरान जमकर मारपीट हुई। विरोध कर रहे छात्रों के साथ ही रामजस कॉलेज के प्रोफेसर तक को पीटा गया। मार खाने वाले छात्रों का आरोप है कि पुलिस ने मूकदर्शक बनकर मारपीट करने वालो की मदद की। घटना के बाद एबीवीपी के छात्र नेता का डीयू की प्रोफेसर को धमकी देने का वीडियो, एबीवीपी की महिला छात्र नेता का घूंसा मारने का वीडियो, एक छात्र का आम छात्रों, टीचरों और मीडिया के लड़के-लड़की की पिटायी की शर्मनाक स्वीकृति का ऑडियो सामने आ चुका है।
रामजस कॉलेज में हुई घटना से ये सवाल खड़ा हुआ कि क्या अब छात्र संगठन तय करेंगे कि किसी कॉलेज-विश्वविद्यालय में किस विषय पर सेमिनार होगा और किसे वक्ता के तौर पर बुलाया जाएगा? सवाल खड़ा हुआ कि क्या बौद्धिक इदारों में असहज कर देने वाले विचारों और विषयों पर बातचीत नहीं की जा सकेगी?
सवाल है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी वाली सरकार बनने के बाद क्यों विभिन्न विश्वविद्यालयों में जिस तरह हिंसक घटनाओं और विवादों में बढ़ोतरी हो रही है? सवाल है कि क्यों देश के प्रतिष्ठित जेएनयू, डीयू, हैदराबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, काशी हिन्दू विश्वविद्लाय, जादवपुर विश्वविद्यालयों में हुए विवादों के एक केंद्र में सत्ताधारी पार्टी के करीबी छात्र संगठन की भूमिका रही है?
लेकिन ये मुद्दे बहस से बाहर हो गए। क्यों? क्योंकि इस बार बहस में बाएं से एक गुरमेहर कौर आ गयीं? गुरमेहर कौर की उम्र (20) बहुत कम है। वो छात्र हैं। आदर्शवादी हैं। एक स्टार्ट-अप “वॉयस ऑफ राम” के देश (विदेश भी) “बदलने” का हिस्सा रही हैं। “वॉयस ऑफ राम” राम सुब्रामण्यम का स्टार्ट-अप है। राम सुब्रामण्यम आम आदमी पार्टी और अरविन्द केजरीवाल के लिए दिल्ली “बदलने” का सोशल मीडिया कैम्पेन चला चुके हैं।
एक लम्बा लेख लिखकर बता चुके हैं कि केजरीवाल के लिए उन्होंने कैसे काम किया। वो भी दूसरी राजनीतिक पार्टियों, संगठनों, स्टार्ट-अप की तरह आदर्शवादी, ईमानदार और बदलाव की चाहत रखने वाले युवाओं को अपने कैम्पेन से जोड़ लेते हैं। कम ही संभावना है कि वो उन्हें सैलरी नहीं देते होंगे। ये अलग बात है कि उनकी कम्पनी (हैंडलूम पिक्चर) कॉरपोरेट एड बनाती है, तो कमाती भी है।
डीयू में जो हुआ उसमें भी गुरमेहर ने हजारों-लाखों लोगों की तरह अपनी राय रखी। उन्होंने कहा वो एबीवीपी से नहीं डरतीं। जाहिर है डीयू की छात्र राजनीति और एबीवीपी को जानने वाला हर आदमी समझ सकता है कि गुरमेहर ने बड़ा खतरा लिया। उनके साथ डिजिटल इंडिया के नए नागरिक ट्रॉल ने वही किया जो वो प्रतिरोध की हर आवाज के साथ करते हैं। राइट ट्रॉल ने गुरमेहर के संग ऑनलाइन गालीगलौज-धमकी-गुंडागर्दी की।
राइट ट्रॉल ने गुरमेहर के अतीत को खोद कर उनका “पाकिस्तान” वाला वीडियो खोज निकाला। उसके बाद बोलने की “आजादी” के समर्थक (लेफ्ट-ट्रॉल) “अकेली लड़की” के बचाव में इस आग को हवा देने लगे। सोशल मीडिया के इन शोले में स्टार वैल्यू लाने के लिए वीरेंद्र सहवाग, रणदीप हुड्डा आ गए।
हमलावरों और बचाने वालों के ज्वाइंट एक्शन का नतीजा ये हुआ कि लड़की गुरमेहर कौर को सार्वजनिक रूप से कहना पड़ा, “मुझे अकेला छोड़ दो, बहुत सह लिया….यह अभियान छात्रों के बारे में ना कि मेरे बारे में।” लेकिन सवाल वही है, मुद्दा क्या था? और क्या हो गया है? अगर आप गुरमेहर कौर को “धिक-धिक” या “धन्य-धन्य” कर चुके हों तो…मूल मुद्दे की तरफ लौटें?