जैसलमेर: फैक्ट्रियों से छोड़े जा रहे रसायनिक पानी ने मचाया कहर, मची अफरा-तफरी

जोधपुर की फैक्ट्रियों से छोड़ा जा रहा रसायनिक पानी बालोतरा के डोली और अराबा जैसे सीमावर्ती गांवों में तबाही मचा रहा है। सोमवार शाम को हालात इतने बिगड़े कि प्रशासन ने लोगों को तुरंत घर खाली करने का आदेश दिया।
जोधपुर की औद्योगिक इकाइयों से लगातार छोड़ा जा रहा रसायनिक और प्रदूषित पानी अब बालोतरा क्षेत्र के सीमावर्ती गांवों के लिए गंभीर संकट बन गया है। सोमवार शाम को स्थिति इतनी भयावह हो गई कि अराबा पुरोहितान गांव के लोगों को प्रशासन के मौखिक निर्देशों के बाद अपने घर खाली करने पड़े। ग्राम पंचायत द्वारा चेतावनी दी गई कि यदि ग्रामीण समय पर घर नहीं छोड़ते हैं, तो संभावित जान-माल की हानि की जिम्मेदारी उनकी स्वयं की होगी। गौरतलब है कि यह चेतावनी उस वक्त दी गई जब ठीक 24 घंटे पहले ही जिले के प्रभारी मंत्री जोराराम कुमावत ने डोली और अराबा गांवों में पहुंच रहे पानी को “सामान्य बरसाती पानी” बताया था। उन्होंने कहा था कि बरसात में पानी आना स्वाभाविक है और उसका स्वागत करना चाहिए।
तेजी से गांव में घुसा रसायनिक पानी, मची भगदड़
सोमवार शाम से ही अराबा गांव में रसायनिक पानी तेज़ी से घुसने लगा, जिससे गांव में अफरा-तफरी मच गई। ग्रामीणों को ग्राम पंचायत और प्रशासन ने सलाह दी कि वे जरूरी सामान, दस्तावेज और उपयोगी वस्तुएं लेकर सुरक्षित स्थानों पर चले जाएं। करीब 50 घरों में रहने वाले लगभग 300 ग्रामीणों को अस्थायी रूप से पंचायत भवन, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र और सार्वजनिक स्थलों में आश्रय दिया गया है। कई लोग खेतों में टेंट लगाकर रहने को मजबूर हैं, जबकि बहुत से परिवार बिना किसी तैयारी के घर छोड़ने को विवश हो गए, जिससे उन्हें राशन, सिलेंडर और बच्चों की किताबें तक नहीं ले जाने का अवसर मिला।
2008 से जारी है यह संकट, आज तक नहीं मिला स्थायी समाधान
डोली, अराबा और आसपास के गांवों में यह संकट नया नहीं है। ग्रामीणों के अनुसार, वर्ष 2008 से जोधपुर की फैक्ट्रियों से छोड़ा जा रहा रसायनिक पानी जोजरी नदी के प्राकृतिक मार्ग से होकर बालोतरा क्षेत्र में फैल रहा है। यहां यह बहाव निजी कृषि भूमि से होकर गुजरता है, जिससे सैकड़ों बीघा जमीन बंजर हो चुकी है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि वे कई बार प्रशासन को ज्ञापन सौंप चुके हैं, प्रदर्शन कर चुके हैं, यहां तक कि अदालत का दरवाजा भी खटखटा चुके हैं, लेकिन अब तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकला। 2011 में स्थिति इतनी खराब हुई थी कि राष्ट्रीय राजमार्ग तीन महीने तक बंद रहा, लेकिन ग्रामीणों की समस्याएं आज भी जस की तस हैं।
नारकीय हो चुका है जीवन, स्वास्थ्य पर गंभीर असर
रसायनिक पानी से उठती दुर्गंध, गर्म हवाओं और मच्छरों के कारण अब गांवों का जीवन नारकीय हो चुका है। मलेरिया, डेंगू और त्वचा रोग के मामलों में वृद्धि हो रही है। ग्रामीणों के अनुसार, इस जहरीले पानी से मवेशियों और पक्षियों की लगातार मौतें हो रही हैं। ग्रामीणों का कहना है कि पिछले 16 वर्षों से वे इस समस्या को लेकर आवाज़ उठा रहे हैं, लेकिन न तो फैक्ट्रियों पर कोई नियंत्रण लगाया गया, न ही रसायनिक पानी की निकासी के लिए कोई ठोस व्यवस्था की गई। अब यह समस्या केवल स्वास्थ्य या पर्यावरण का नहीं, बल्कि अगली पीढ़ी के भविष्य और क्षेत्रीय विकास का संकट बन गई है।