जीवन जीने की कला है योग
“योग स्वयं की स्वयं के माध्यम से स्वयं तक पहुँचने की यात्रा है, गीता “
योग के विषय में कोई भी बात करने से पहले जान लेना आवश्यक है कि इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि आदि काल में इसकी रचना, और वर्तमान समय में इसका ज्ञान एवं इसका प्रसार स्वहित से अधिक सर्व अर्थात सभी के हित को ध्यान में रखकर किया जाता रहा है।
अगर हम योग को स्वयं को फिट रखने के लिए करते हैं तो यह बहुत अच्छी बात है लेकिन अगर हम इसे केवल एक प्रकार का व्यायाम मानते हैं तो यह हमारी बहुत बड़ी भूल है।
आज जब 21 जून को सम्पूर्ण विश्व में योग दिवस बहुत ही जोर शोर से मनाया जाता है, तो आवश्यक हो जाता है कि हम योग की सीमाओं को कुछ विशेष प्रकार से शरीर को झुकाने और मोड़ने के अंदाज़, यानी कुछ शारीरिक आसनों तक ही समझने की भूल न करें।
क्योंकि इस विषय में अगर कोई सबसे महत्वपूर्ण बात हमें पता होनी चाहिए तो वह यह है कि योग मात्र शारीर को स्वस्थ रखने का साधन न होकर इस से कहीं अधिक है।
यह जीवन जीने की कला है,
एक पूर्ण चिकित्सा पद्धति है,
हमारे शास्त्रों में इसका अंतिम लक्ष्य मोक्ष है,
और उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए यह एक पूर्ण मार्ग है, राजपथ।
दरअसल योग सम्पूर्ण मानवता को भारतीय संस्कृति की ओर से वो अमूल्य तोहफा है जो शरीर और मन, कार्य और विचार,संयम और संतुष्टि,तथा मनुष्य और प्रकृति के बीच एक सामंजस्य स्थापित करता है, स्वास्थ्य एवं कल्याण करता है।
यह हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है कि 2015 से हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के प्रयासों के परिणामस्वरूप 21 जून को विश्व के हर कोने में योग दिवस जोर शोर से मनाया जाता है।
यहाँ यह जानना भी रोचक होगा कि जब 2014 में यूनाइटेड नेशनस जनरल एसेम्बली में भारत की ओर से इसका प्रारूप प्रस्तुत किया गया था, तो कुल 193 सदस्यों में से इसे 177 सदस्य देशों का समर्थन इसे प्राप्त हुआ था। तब से हर साल 21 जून की तारीख ने इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए एक विशेष स्थान हासिल कर लिया।
लेकिन क्या हम जानते हैं कि भारतीय योग की पताका सम्पूर्ण विश्व में फैलाने के लिए 21 जून की तारीख़ ही क्यों चुनी गई? यह महज़ एक इत्तेफाक़ है या फिर इसके पीछे कोई वैज्ञानिकता है?
तो यह जानना दिलचस्प होगा कि 21 जून की तारीख़ चुनने के पीछे कई ठोस कारण हैं।
यह तो हम सभी जानते हैं कि उत्तरी गोलार्ध पर यह पृथ्वी का सबसे बड़ा दिन होता है, तथा इसी दिन से सूर्य अपनी स्थिति बदल कर दक्षिणायन होता है।
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात, यह ही वो दिन था जब आदि गुरु भगवान शिव ने योग का ज्ञान सप्तऋषियों को दिया था। कहा जा सकता है कि इस दिन योग विद्या का धरती पर अवतरण हुआ था,और इसीलिए विश्व योग दिवस मनाने के लिए इससे बेहतर कोई और दिन हो भी नहीं सकता था।
जब 2015 में भारत में पहला योग दिवस मनाया गया था तो प्रधानमंत्री मोदी और 84 देशों के गणमान्य व्यक्तियों ने इसमें हिस्सा लिया था और 21 योगासन किए गए थे जिसमें 35985 लोगों ने एक साथ भाग लिया था।
लेकिन इन सारी बातों के बीच हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब हम कहते हैं कि योग केवल शरीर ही नहीं मन और आत्मा का शुद्धिकरण करके हमें प्रकृति, ईश्वर और स्वयं अपने नजदीक भी लाता है, तो यह भी जान लें कि ‘योगासन’, “अष्टांग योग” का एक अंग मात्र है।
वो योग जो शरीर के भीतर प्रवेश करके मन और आत्मा का स्पर्श करता है वो आसनों से कहीं अधिक है।
उसमें यम और नियम का पालन, प्राणायाम के द्वारा सांसों यानी जीवन शक्ति पर नियंत्रण,बाहरी वस्तुओं के प्रति त्याग,धारण यानी एकाग्रता,ध्यान अर्थात चिंतन और अन्त में समाधि द्वारा योग से मोक्ष प्राप्ति तक के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो देश सदियों से योग विद्या का साक्षी रहा है उस देश के अधिकांश युवा आज आधुनिक जीवन शैली और खान पान की खराब आदतों के कारण कम उम्र में ही मधुमेह और ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों का शिकार है। लेकिन अच्छी बात यह है कि योग को अपनी दिनचर्या में शामिल करके, अपनी जीवन शैली का हिस्सा बनाके,न सिर्फ इन बीमारियों से जीता जा सकता है।बल्कि स्वयं को शारीरिक और मानसिक दोनों रूपों में स्वस्थ रखा जा सकता है।
और किसी भी देश के लिए इससे बेहतर कोई सौगात नहीं हो सकती कि उसके युवा स्वास्थ्य, स्फूर्ति,जोश और उत्साह से भरे हों।
तो आगे बढ़िए, योग को अपने जीवन में शामिल करिए और देश की तरक्की में अपना योगदान दीजिए।
-डॉ नीलम महेन्द्र