जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में एक साल से चल रहा था ,शोध अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन ने भी रिसर्च को दिया स्थान
मधुमेह (डायबिटीज) की नई दवा फैटी लिवर व नॉन अल्कोहलिक स्टैटो हेपेटाइटिस (नैश) में भी कारगर है। यह बात जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग में पिछले एक साल से चल रहे शोध में सामने आई है। अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन ने भी अपने जनरल में इस रिसर्च को स्थान दिया है।
एलएलआर अस्पताल (हैलट) की मेडिसिन ओपीडी में डायबिटीज के मरीज इलाज के लिए आते हैं। इन्हें मोटापे की शिकायत भी होती है। इस कारण लिवर से जुड़ी समस्याएं भी होने लगती हैं। इसकी वजह जानने के लिए मेडिकल कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. विशाल गुप्ता ने 104 मरीजों पर 48 सप्ताह तक अध्ययन किया। दवा शुरू करने से पहले शुगर एवं लिवर की फाइब्रोस्कैन जांच कराई। इसमें फैटी लिवर की समस्या पाई गई। उनका कैप स्कोर 250-300 के बीच था।
अगर कैप स्कोर 400 से ऊपर पहुंच जाए तो लिवर सिरोसिस हो जाता है। इन मरीजों को नॉन अल्कोहलिक स्टैटो हेपेटाइटिस (नैश) की समस्या भी थी। इन्हें दो ग्रुप में बांटकर अलग-अलग दवाएं शुरू की गईं और नियमित जांच भी कराते रहे। इसके लिए 52-52 मरीजों के दो ग्रुप बनाकर डायबिटीज की अलग-अलग दवाएं शुरू की गईं। एक ग्रुप के मरीजों को डायबिटीज की दवा मेटफार्मिन तथा दूसरे ग्रुप के मरीजों को नई दवा टेनेलिग्लिप्टीन दी। छह माह बाद से उनके लिवर में बदलाव दिखने लगा।
कम हो गया एलएफसी
डायबिटीज के जिन मरीजों को नई दवा दी गई। उनकी डायबिटीज नियंत्रित रही। साथ ही फैटी लिवर का कैप स्कोर 200 से कम हो गया। लिवर फैट कंटेंट (एलएफसी) में भी कमी आई, जबकि दूसरे ग्रुप के मरीजों की शुगर नियंत्रित हुई, लेकिन लिवर की समस्या यथावत रही।
इनका ये है कहना
डायबिटीज की नई दवा फैटी लिवर तथा नैश के मरीजों पर कारगर है। मरीजों का फैटी लिवर कम हो गया। हेपेटाइटिस पर भी लगाम लगी। देश-विदेश में अब तक ऐसा कोई शोध नहीं हुआ है। इसे अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन ने अपने अंतरराष्ट्रीय जनरल diabetes.org में प्रकाशित किया है।