जानें क्यों SC ने कहा, राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान को नहीं मिल सकता समान दर्जा

राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। देश की सर्वोच्च अदालत ने साफ कहा है कि राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान बराबरी का दर्जा नहीं मिल सकता है।

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इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रगीत वंदे मातरम का गायन स्कूलों में अनिवार्य किए जाने की बहस में पड़ने से साफ इन्कार कर दिया।

शीर्ष अदालत ने एक याचिका को विचारार्थ स्वीकार करते हुए कहा कि इसकी जगह राष्ट्रगान (जन गण मन..) को अनिवार्य करने पर विचार किया जा सकता है।

जस्टिस दीपक मिश्रा, आर भानुमति और जस्टिस मोहन एम एस की पीठ ने कहा, ‘जहां तक राष्ट्रगीत का संबंध है, हम किसी बहस में शामिल नहीं होना चाहते।’

यह याचिका वकील अश्विनी उपाध्याय ने दाखिल की है। अश्विनी उपाध्याय भाजपा की दिल्ली इकाई के प्रवक्ता भी हैं। अश्विनी ने अपनी याचिका में राष्ट्रगान और राष्ट्रीय ध्वज के साथ राष्ट्रगीत के प्रचार-प्रसार के लिए नीति बनाए जाने का निर्देश देने की मांग की है।

मालूम हो, सिनेमाघरों में राष्ट्रगान को लेकर जुड़ा मामले में भी कोर्ट में है। फिल्म के दौरान राष्ट्रगान बजने पर खड़े होने को लेकर सर्वोच्च अदालत ने बीते दिनों अहम फैसला सुनाया था।

अदालत ने कहा था कि सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान बजने पर लोग खड़े होने के लिए बाध्य नहीं हैं। साथ ही इस मुद्दे पर बहस की जरूरत है।

सर्वोच्च न्यायालय ने फिल्म सोसायटी की याचिका पर सुनवाई करते हुए मुद्दे पर असमंजस को साफ किया और कहा कि अगर फिल्म के पहले राष्ट्रगान बजता है तो लोगों को खड़ा होना जरूरी है लेकिन फिल्म के बीच में किसी सीन के दौरान यह बजता है तो दर्शक इस पर खड़ो होने के लिए बाध्य नहीं हैं। साथ ही यह भी जरूरी नहीं है कि वो राष्ट्रगान को दोहराएं भी।

 

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