जानें क्यों विदेशी दौरों पर पिंक बॉल से नहीं खेलेगी टीम इंडिया

सौरव गांगुली ने भारतीय कप्तान विराट कोहली को महज तीन सेकेंड में कोलकाता में बांग्लादेश के खिलाफ गुलाबी गेंद से टेस्ट खेलने के लिए जरूर मना लिया होगा, लेकिन नए बोर्ड अध्यक्ष के लिए भविष्य में भारतीय टीम प्रबंधन को फिर से ‘पिंक टेस्ट’ खेलने के लिए समझाना आसान नहीं होगा.

दूधिया रोशनी में गुलाबी गेंद को देखने में परेशानी

भारतीय टीम के सूत्रों ने बताया कि दूधिया रोशनी में गुलाबी गेंद को देख पाना उन मुख्य चुनौतियों में से एक था, जिनका सामना उसने कोलकाता टेस्ट में किया. ऐसी संभावना है कि भारतीय टीम भविष्य में विदेशी दौरे के दौरान गुलाबी गेंद से टेस्ट खेलने के कदमों का विरोध करेगी . बीसीसीआई यदि टीम की प्रतिक्रिया लेता है, तो खिलाड़ी गुलाबी से नहीं, बल्कि नियमित लाल गेंद से ही खेलने की बात करेंगे.

भारतीय टीम कोलकाता डे-नाइट टेस्ट से पहले ही गुलाबी गेंद को लेकर चिंतित थी. वह पिंक बॉल टेस्ट से खेलने के लिए खुले दिमाग से मैदान पर उतरी भी. अब माना जा कहा है कि डे-नाइट टेस्ट का अनुभव हासिल करने के बाद भारतीय खिलाड़ी भविष्य में दिन-रात का टेस्ट खेलने के मूड में नहीं हैं.

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‘दृश्यता का मुद्दा, इसके अलावा गेंद भी सख्त थी…’

भारतीय टीम प्रबंधन के एक सदस्य ने इंडियन एक्सप्रेस से बताया, ‘हमें लगा कि गेंद एक मुद्दा है. दृश्यता के अलावा गेंद भी बहुत सख्त थी. देखिए बांग्लादेश के बल्लेबाज को कैसे चोट लगी. फील्डिंग के दौरान भी गेंद को देखना एक चुनौती थी. ऐसे गेंदबाज जो 140 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गेंद डाल सकते हैं, उनके लिए इस गेंद को संभालना आसान नहीं था. यह गेंद नियमित लाल गेंद से ज्यादा तेजी से निकलती है. ईमानदारी से कहें, तो दूधिया रोशनी में गुलाबी गेंद को भांपना कठिन था.’

गुलाबी गेंद का भारी होना बांग्लादेश के शिविर में भी एक मुद्दा रहा. इंदौर में गुलाबी गेंद से प्रशिक्षण ले रहे कुछ खिलाड़ियों ने इस बारे में बात की थी. अब कोलकाता टेस्ट के बाद एक भारतीय खिलाड़ी भी इस आकलन से सहमत दिखा. उसने भी कहा, ‘हां यह बहुत भारी है, हॉकी बॉल की तरह. यह मूर्खतापूर्ण होगा यदि हम भविष्य में गुलाबी गेंद के साथ आगे खेलते हैं.’ उल्लेखनीय है कि खुद कप्तान कोहली ने कहा था कि पिंक बॉल काफी तेजी से फील्डर के हाथ में लगती है. यह बिल्कुल हॉकी की भारी बॉल की तरह है.
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