जानें क्यों राजा राम को कहा जाता है मर्यादा पुरुषोत्तम

भारतीय समाज में भगवान राम और कृष्ण का बहुत महत्व है। उन्हें भारतीय धर्म के आकाश में चमकने वाले सूर्य और चंद्र कहा जा सकता है। भगवान राम और कृष्ण के कई रूप का वर्णन किया गया है। भगवान राम को महापुरुष कहने के पीछे के कई सारे महत्व को बताया गया है उन्होंने कई सारे ऐसे काम किए हैं जिसके कारण उन्हें महापुरुष भी कहा जाता है।

जब राजा राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ था तब सभी चिंतित थे कि कैसे वह सभी लोगों को प्रसन्न रख पाएंगे कैसे इतने लंबे समय तक जंगल में निवास कर पाएंगे। लेकिन श्री रामचन्द्र जी अपनी वन यात्रा में जन-जन की सद्भावना जीतते हुए, उन्हें स्नेहसूत्र में आबद्ध करते हुए चलते हैं। उनमें सहयोगवृत्ति जाग्रत् करते चलते हैं। वन में इसी उद्देश्य से निकल पड़ते हैं और नगर में वह प्रवृत्ति जाग्रत् रखने के लिये आग्रह करके जाते हैं। भरत के लिये उन्होंने यही संदेश छोड़ा कि सामूहिक हित को ध्यान में रखकर चलें। गुरु वसिष्ठ जी से भी यही आग्रह करते हैं।
वन में वे वनवासियों में भी वही भाव भर देते हैं। जब कोल-भील मिलते हैं तो वे उन सबको सम्मान देते और सामाजिक गौरव का बोध कराते हैं। भगवान राम सभी को बराबर से सहयोग देने में निपुर्ण थे। साथ ही उन्हें सभी का उतना ही सहयोग भी मिलता था। वे प्रेम भावना, उच्चस्तरीय संवेदना के आधार पर जन-भावना को सूत्रबद्ध करते हैं और अपने प्रयास में हर जगह सफल भी होते हैं। ऋषि वनचर आदि के अतिरिक्त साथ-साथ गीधराज को भी अपना सहयोगी बना लेते हैं।
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इसी सहयोगभाव तथा संवेदना जनित सामाजिक दृष्टिकोण ने ही गीधराज जटायु को शहीदों में अग्रणी बना दिया। श्री राम को सीता के सम्बन्ध में पहली जानकारी उसी से मिली। आगे भी उनकी सहयोग और संगठनवृत्ति ही सफलता के द्वार पर द्वार खोलती चली गयी। रीछ-वानरों को संगठित करके ही वे सीता की खोज करने और असुरत्व के विरुद्ध वातावरण तैयार करने में समर्थ हुए। उनके संगठन में भाति-भाति के वानर सम्मिलित थे।
रीछ-वानरों की संघशक्ति और सहयोग वृत्ति देवताओं के लिए भी अजेय राक्षसों पर हावी हो गयी। रीछ वानरों की उपलब्धि को मानसकार अद्भुत कहते हैं। सामूहिक सहयोग के बल पर राक्षसों का विनाश हुआ तथा रामराज्य की स्थापना हुई।  किन्तु सामूहिकता के दृष्टिकोण का विकास और शिक्षण बराबर चलता रहा, ताकि आदर्श समाज-व्यवस्था बराबर बनी रहे। अयोध्यावासी स्वयं भगवान के गुणों को जीवन में स्थान देते हैं तथा समाज को भी उनकी प्रेरणा देकर अपना सामाजिक उत्तरदायित्व निभाते हैं।
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रामचरितमानस से सामाजिक दृष्टिकोण, सहयोग और संगठन की महत्ता समझकर प्रेरणा लेकर यदि हम इस दिशा में  सक्रिय हो सकें, तो कठिन से कठिन बाधाओं को पार करते हुए सुख शांति एवं समृद्धियुक्त आदर्श समाज की स्थापना करने में सफल हो सकते हैं।
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