जानिए 1971 से लेकर अब तक भारत-पाक युद्ध का रियल एस्टेट पर क्या हुआ असर

युद्ध किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को कई तरीके से प्रभावित करता है। रियल एस्टेट इससे अछूता नहीं है। आम तौर पर युद्ध के हालात बनने पर घर के खरीदार या रियल एस्टेट निवेशक अपना फैसला टाल देते हैं और डेवलपर अपने प्रोजेक्ट को धीमा कर देते हैं। हालांकि युद्ध के बाद रियल एस्टेट मार्केट (real estate trends during wartime) में बाउंस बैक भी होता है। यहां हम देखेंगे कि 1971 के भारत-पाक युद्ध और 1999 के कारगिल युद्ध के बाद रियल स्टेट के विभिन्न सेगमेंट पर क्या असर पड़ा।

1971 का भारत-पाक युद्ध (India-Pakistan war real estate impact)

प्रॉपर्टी कंसल्टेंसी फर्म एनारॉक ग्रुप के रिसर्च हेड और रीजनल डायरेक्टर डॉ. प्रशांत ठाकुर के अनुसार दिसंबर 1971 में जब 13 दिनों तक लड़ाई चली थी, तो इकोनॉमी लगभग स्थिर हो गई थी। जीडीपी ग्रोथ 1969-70 के 5.4% की तुलना में 1971-72 में सिर्फ 1% रह गई। महंगाई 11% पर पहुंच गई और कंस्ट्रक्शन सैनिक ठिकानों तक सीमित हो गया।

हाउसिंग मार्केट पर प्रभाव

मुंबई में राज्य सरकार ने सीमेंट और स्टील पर अंकुश लगा दिया था, जिससे हाउसिंग प्रोजेक्ट के अप्रूवल 12% कम हो गए थे। महानगर में प्रॉपर्टी का रजिस्ट्रेशन भी 10% घट गया। महंगाई बेतहाशा बढ़ने के बावजूद रेंट कंट्रोल नियम के कारण किराया ज्यादा नहीं बढ़ा।

कॉमर्शियल रियल एस्टेट पर प्रभाव

इस सेक्टर में कोई खास FDI नहीं आया। प्राइवेट ऑफिस स्पेस का डेवलपमेंट लगभग ठहर गया। मुंबई के फोर्ट एरिया और दिल्ली के कनॉट प्लेस जैसी जगहों पर काफी ऑफिस स्पेस खाली हो गए। हालांकि नए ऑफिस की सप्लाई कम होने के चलते किराये में कमी नहीं आई।

हॉस्पिटैलिटी सेगमेंट पर प्रभाव

युद्ध का कुछ हद तक असर पर्यटन पर भी पड़ा। 1970 में यहां 20.02 लाख विदेशी टूरिस्ट आए थे। इनकी संख्या 1971 में 19.6 लाख रह गई। दिल्ली में होटल ऑक्युपेंसी 45% से भी नीचे आ गई थी।

1999 का कारगिल युद्ध
कारगिल युद्ध के समय भारत की अर्थव्यवस्था का उदारीकरण हो चुका था और युद्ध के बाद बाजारों में रिकवरी भी तेजी से हुई।

हाउसिंग मार्केट पर प्रभाव
1999 में एशियन फाइनेंशियल क्राइसिस के कारण भारत का रियल एस्टेट सेक्टर पहले ही संकट से जूझ रहा था। दिल्ली और मुंबई के प्राइम लोकेशन में घरों का किराया 3% से 8% गिर गया। हालांकि मुंबई के कफ परेड जैसी जगहों पर लग्जरी अपार्टमेंट में उस समय भी किराया 20000 से 23000 रुपए प्रति वर्ग फुट चल रहा था।

कमर्शियल रियल एस्टेट पर प्रभाव
1999 में प्रमुख शहरों में लगभग 48 लाख वर्ग फुट नए ऑफिस स्पेस की सप्लाई हुई थी। युद्ध के कारण दिल्ली के कनॉट प्लेस जैसी जगहों पर वैकेंसी 11% से 15% हो गई। किराये में भी कमी आई। बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने अपनी लीज रद्द तो नहीं की, लेकिन नई जगह लीज पर लेना भी टाल दिया। तब तक बेंगलुरु पूरी तरह भारत का सिलिकॉन वैली नहीं बना था, लेकिन वहां कोरमंगला जैसे इलाकों में आईटी पार्क स्थापित हो गए थे। वहां किराये में कोई खास बदलाव नहीं हुआ।

हॉस्पिटैलिटी सेगमेंट पर प्रभाव
1971 के विपरीत कारगिल युद्ध के समय टूरिज्म इंडस्ट्री पर कोई फर्क नहीं पड़ा। बल्कि उस साल विदेशी पर्यटकों की संख्या 5.3% बढ़ गई। हालांकि दिल्ली और कश्मीर में युद्ध के 3 महीने के दौरान होटल कैंसिलेशन 20% से 30% रहा। एक और रोचक बात यह रही कि युद्ध के बाद कारगिल एक लोकप्रिय टूरिस्ट डेस्टिनेशन बन गया। वर्ष 2003 तक वहां हर साल 44000 से अधिक पर्यटक टूरिस्ट जाने लगे। युद्ध से पहले यह संख्या आधी हुआ करती थी।

मौजूदा हालात में क्या होगा
हाउसिंग सेक्टरः दिल्ली-एनसीआर और उत्तर भारत के दूसरे बड़े शहरों में कुछ समय के लिए डिमांड 5% से 10% कम हो सकती है। लग्जरी हाउसिंग के खरीदार घर खरीदने का फैसला फिलहाल टाल सकते हैं। हालात सामान्य होने पर मध्य आय वर्ग की हाउसिंग में सबसे पहले रिकवरी आएगी। सरकार ने हस्तक्षेप नहीं किया तो कुछ समय तक सीमेंट और स्टील के दाम बढ़े हुए रह सकते हैं।

कमर्शियल रियल एस्टेटः अगर युद्ध का दायरा बढ़ता है या लंबा खिंचता है तो बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में आने या विस्तार की योजना कुछ समय के लिए टाल सकती हैं। लेकिन युद्ध के बाद रिकवरी भी तेजी से होगी। खासकर जीसीसी (GCC), बैंकिंग फाइनेंस और बीमा (BFSI) तथा आईटी सेक्टर से डिमांड के कारण। एक साल या उससे भी कम समय में तेजी देखने को मिल सकती है।

हॉस्पिटैलिटी सेक्टरः दिल्ली और कश्मीर के इलाकों में होटल कैंसिलेशन देखने को मिल सकता है। लेकिन युद्ध में जीत के असर के कारण ‘विक्ट्री टूरिज्म’ देखने को मिल सकता है, जैसा कारगिल विजय के बाद हुआ था।

अगर मौजूदा हालात लंबे समय तक नहीं बने रहे तो घरों के दाम में कोई खास गिरावट नहीं आएगी। आज बाजार में बड़े, लिस्टेड और आर्थिक रूप से मजबूत डेवलपर हैं। उनके पास होल्डिंग पावर है और बड़े बैंकों के पास भी पर्याप्त पूंजी है। इस समय दाम बढ़ना भले रुक सकता है, लेकिन अगले साल कंस्ट्रक्शन की लागत बढ़ने पर कीमतों में तेजी से वृद्धि हो सकती है।

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