जानिए रामलला के पुजारी की सैलरी और पूजा-अर्चना का खर्च

अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के 9 नवंबर के फैसले के 88 दिन बाद केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने राम मंदिर बनाने के लिए ट्रस्ट की घोषणा कर दी है. इसमें 15 सदस्य होंगे. बुधवार को दिल्ली चुनाव से ठीक 3 दिन पहले और कैबिनेट के फैसले के फौरन बाद प्रधानामंत्री नरेंद्र मोदी संसद पहुंचे. वहां लोकसभा में उन्होंने प्रश्नकाल से पहले ट्रस्ट बनाए जाने का ऐलान किया.

ट्रस्ट का नाम ‘श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र’ होगा. इसे राम मंदिर निर्माण के प्रक्रिया की शुरुआत मानी जा रही है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि वर्तमान में रामलला का पुजारी कौन है, उन्हें कितना वेतन मिलता है और रामलला पर कितना खर्च किया जाता है… अगर नहीं तो आइए जानते हैं इस सभी सवालों के जवाब.

कितनी है रामलला के पुजारी की सैलरी?

वर्तमान में अस्थायी राम मंदिर यानी रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास को 13 हजार मासिक मानदेय मिलता है. अगस्त, 2019 से पहले मुख्य पुजारी का वेतन 12 हजार रुपये था जिसमें पिछले वर्ष 1 हजार रुपये की वृद्धि की गई.

83 वर्षीय आचार्य सत्येंद्र दास के साथ रामलला की सेवा में 4 सहायक पुजारी और 4 कर्मचारी भी लगे हुए हैं. इन पुजारियों और कर्मचारियों की तनख्वाह में भी 2019 में 500 रुपए की वृद्धि की गई. इसके बाद पुजारी और कर्मचारियों को 7,500 रुपए से 10 हजार रुपए तक वेतन दिया जा रहा है.

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कितना है रामलला की पूजा-अर्चना का खर्च?

2019 में रामलला को मिलने वाले मासिक भत्ते को 26,200 से बढ़ाकर 30 हजार रुपए कर दिया गया. इसके अलावा रामलला के भोग के लिए भी 800 रुपए बढ़ाए गए. 1992 के बाद पहली बार रामलला के पुजारी और स्टाफ के वेतन में इतनी वृद्धि की गई.

6 दिसंबर 1992 के बाद से लगातार 28 साल से आचार्य सत्येंद्र दास रामलला की पूजा-अर्चना में लगे हुए हैं. उस समय यानी 1992 में उनकी सैलरी 100 रुपये हुआ करती  थी, जो अब बढ़कर 13 हजार हो गई है.

साथ ही रामलला की रोजाना होने वाली पूजा-अर्चना और उसकी सामग्री पर खर्च होने वाली राशि में भी वृद्धि की गई. इस वृद्धि के बाद वर्तमान में यह राशि 1.2 लाख रुपये हो गई है जिसका भुगतान प्रतिमाह किया जाता है. पहले यह राशि 93,200 रुपये थी.

कहां से आता है सैलरी का पैसा?

रामजन्मभूमि मंदिर में श्रद्धालु द्वारा चढ़ाए जाने वाले चढ़ावे से ही मुख्य व अन्य पुजारियों को वेतन दिया जाता है. हालांकि, दिलचस्प बात यह है कि मुख्य पुजारी की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के आधार पर की गई थी. 1992 में वो संस्कृत स्कूल में पढ़ाने का काम करते थे.

एक इंटरव्यू में आचार्य ने बताया था कि वो संस्कृत स्कूल में शिक्षण का कार्य करते थे, साथ में रामलला की सेवा के लिए चुना गया तो यह कार्य भी करने लगा. इस दौरान घर का खर्च शिक्षक की नौकरी के वेतन से चलता था.

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