जानिए बिहार के पांच दोस्तों की अनोखी दोस्ती, जुबां खामोश रहती है और…

फुलवारीशरीफ के चांद कॉलोनी में चर्चा में है पांच दोस्त और इनकी दोस्ती। इन पांच दोस्तों की जुबां तो नहीं है, मगर इनका हुनर बोलता है। पांचों यहां चिराग टेलर्स नाम से दुकान चलाते हैं। इनकी दिव्यांगता कभी इनकी काबिलियत के आड़े नहीं आई। इस दुकान से ही इनका परिवार चल रहा है।

ये पांच दोस्त- मुनव्वर, शमशेर, अरमान, गोल्डेन और आमिर हैं। इनमें सबसे पहले सिलाई का काम मुनव्वर ने सीखा। वह फुलवारीशरीफ के ही किसी टेलर के यहां काम करते थे। कुछ दिन में यहां शमशेर भी उनका हाथ बंटाने लगे। दोनों ने जब काम सीख लिया तो चांद कॉलोनी में एक दुकान खोल ली।

ये बोलने में असमर्थ थे, इसलिए कपड़े का नाप लेने और बातचीत में दिक्कत आती थी। ऐसे में इन्होंने आसपास के टेलर से संपर्क किया। यह सभी नामचीन टेलर की दुकान से कटा हुआ पैंट-शर्ट ले कर आते और आराम से उसकी सिलाई कर फिर पहुंचा देते। इन दोनों बेजुबां दोस्तों के कपड़े सिलने की बात सुनकर फुलवारीशरीफ के ही अरमान, गोल्डेन और आमिर भी इनके साथ आ गए। धीरे-धीरे इनका काम बढ़ने लगा और चर्चा दूर-दूर तक होने लगी।

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मास्टर इकबाल नाप लेकर काटते हैं कपड़े

इन पांच दोस्तों की दुकान पिछले एक दशक से चल रही है। ये सभी सिलाई-कढ़ाई में तो मास्टर हैं, मगर एक समस्या ग्राहकों से संवाद करने की आ रही थी। इसका समाधान बनकर आए- नया टोला के मास्टर इकबाल अहमद। इकबाल बोल-सुन सकते हैं और इन पांचों दोस्तों की दुकान पर ही रहते हैं।

इनका काम ग्राहकों से बातचीत करना, उनके कपड़े की नाप लेना और फिर उस हिसाब से कपड़े काटना है। तय नाप के हिसाब से कटे हुए कपड़े मिलने के बाद ये पांचों दोस्त उसे सिलने का काम करते हैं। इकबाल कहते हैं, इन सभी के पास स्मार्टफोन भी है। कभी किसी ग्राहक को खास डिजाइन बताना होता है तो वे वाट्सएप पर तस्वीर भेज देते हैं।

घर के काम में भी बंटाते हैं हाथ

शमशेर की पत्नी बेबी कहती हैं, वह बोल नहीं सकते मगर कामकाज में कभी इसकी कमी महसूस नहीं हुई। सिलाई के अलावा घर के काम में भी हाथ बंटाते हैं। बच्चों को स्कूल लाने से लेकर बाजार जाने तक सारा काम करते हैं। मुनव्वर की पत्नी रानी कहती हैं, खुदा ने आवाज नहीं दी मगर सोचने समझने की क्षमता तो आम लोगों से ज्यादा है।

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