जानिए कैसे बॉलीवुड में सौ साल पहले बनती थीं फ़िल्में…
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 19 जनवरी को दक्षिणी मुंबई स्थित ‘नेशनल म्यूज़ियम ऑफ इंडियन सिनेमा’ (एनएमआईसी) का उद्घाटन करेंगे। श्याम बेनेगल की अध्यक्षता में संग्रहालय सलाहकार समिति के मार्गदर्शन में तैयार हुए ‘नेशनल म्यूज़ियम ऑफ इंडियन सिनेमा’ को बनाने में क़रीब 142 करोड़ रुपये की लागत आई है। म्यूज़ियम के निर्माण का काम पिछले चार साल से चल रहा था।प्रसून जोशी की अध्यक्षता में गठित समिति ने भी एनएमआईसी को उन्नत बनाने में सहयोग किया है। यह संग्रहालय दो इमारतों ‘नवीन संग्रहालय भवन’ और 19वीं शताब्दी के ऐतिहासिक महल ‘गुलशन महल’ में स्थित है। दोनों इमारतें मुंबई में फिल्म प्रभाग परिसर में हैं। नवीन संग्रहालय भवन में चार प्रदर्शनी हॉल हैं। सबसे पहला गांधी और सिनेमा हॉल, दूसरा बाल फिल्म स्टूडियो, तीसरा प्रौद्योगिकी-रचनात्मकता और चौथा भारतीय सिनेमा।
उद्घाटन से पहले गुलशन महल में अंदर जाने की अनुमति किसी को नहीं है। स्टाफ़ और पुलिस सुरक्षा के बीच उद्घाटन की तैयारियां ज़ोरों पर हैं। यहां मौजूद डीडी न्यूज़ के कैमरापर्सन राजकुमार ने बीबीसी को बताया, “गुलशन महल जितना बाहर से सुंदर है उतना ही ख़ूबसूरत अंदर से भी है।” उनका कहना है “इस चार मंज़िला इमारत में कई अनूठी चीज़ें देखने को मिलेंगी। शुरुआत भारत की पहली फ़िल्म राजा हरिश्चंद्र से की गई है। इस फ़िल्म के रील के माध्यम ये बताने की कोशिश की गई है कि देश की पहली फ़िल्म कैसे बनी। उस वक़्त क्या मुश्किलें थीं, किस तरह के कैमरा का इस्तेमाल होता था।”
संग्रहालय में विज़ुअल, ग्राफ़िक्स, शिल्प और मल्टीमीडिया प्रस्तुतिकरण के ज़रिए एक सदी से अधिक पुराने इतिहास की जानकारी देने की कोशिश की गई है। राजकुमार कहते हैं, “इस म्यूज़ियम में पहले के समय में फ़िल्म को शूट करने वाले कैमरा से लेकर बदलते दौर की टेक्नोलॉजी भी देखने को मिलेगी। म्यूज़ियम में अभिनेता राजकपूर का स्टेच्यू कैमरा चलाते हुए दिखेगा। राजकपूर के अलावा कई और अनुभवी कलाकारों, निर्माताओं-निर्देशकों की तस्वीरें, उनका पूरा इतिहास, कई बेहतरीन फ़िल्में और उन फ़िल्मों के पीछे की कहानी और दूसरे अहम पहलू देखने को मिलेंगे।”
गुलशन महल में भारतीय सिनेमा के 100 वर्ष से अधिक की यात्रा को दिखाने की कोशिश की गई है। इसे 9 वर्गों में बांटा गया है। सिनेमा की उत्पत्ति, भारत में सिनेमा का आगमन, भारतीय मूक फ़िल्म, ध्वनि की शुरूआत, स्टूडियो युग, द्वितीय विश्व युद्ध का प्रभाव, रचनात्मक जीवंतता, न्यू वेब और उसके बाद क्षेत्रीय सिनेमा सब कुछ यहां एक क्रम में देखने को मिलेगा। राजकुमार का मानना है कि गुलशन महल बड़ों के साथ-साथ बच्चों को भी पसंद आएगा। बच्चों की पसंद का ध्यान रखते हुए यहां एनिमेशन फ़िल्में और उनसे जुड़ी कई रोचक चीज़ें भी मौजूद हैं। यहां महात्मा गांधी के जीवन पर बनी फिल्में भी दिखाई जाएंगी। इसके साथ सिनेमा पर उनके जीवन के गहरे प्रभाव को भी दिखाया जाएगा।