जानिए कैसे बनी भारत की माँ पाकिस्तान की नानी

भारत के मंदिर प्राचीनता और मान्यताओ के कारण विश्व भर में प्रसिद्ध है. आज भी हमारी संस्कृति विश्वप्रसिद्ध है. भारत देश में वैसे तो हजारो मंदिर है और हर मंदिर के पीछे कुछ न कुछ मान्यताये प्रसिद्ध है. हम बड़ी श्रद्धा और विश्वाश के साथ देवी देवताओ की पूजा अर्चना करते है. दुनिया में तो वैसे कई मंदिर प्रसिद्ध है लेकिन जीवन्त मंदिरो में देवी हिंगलाज का मंदिर सर्वोपरि माना जाता है. भारतीय उपमहादीप में आदि शक्ति के नाम से मशहूर आस्था का प्रतीक माँ हिंगलाज का मंदिर अमेठी के दादरा गाँव में स्थित है.
मंदिर की स्थापना
माँ हिंगलाज के मंदिर में श्रद्धालु दूर-दूर से दर्शन के लिए जाते है. जानकारी के अनुसार माँ हिँगलाज मंदिर की स्थापना सँत कवि बाबा पुरषोत्तम दास ने तक़रीबन हजार वर्ष पहले की थी.
तुलसीदास मिलने जाते थे
बाबा पुरषोत्तम दास सन्त तुलसीदास जी के समकालीन ही थे. तुलसीदास जी भी पुरषोत्तम दास से मिलने के लिए अक्सर दादरा गाँव जाया करते थे.
कहा स्थित है मंदिर
माँ हिँगलाज का मंदिर पाकिस्तान में बलूचिस्तान के ल्यारी जनपद के हिंगुल पर्वत पर स्थित है. जिसे माता हिँगलाज का धाम भी कहा जाता है. माँ हिँगलाज मंदिर कराची शहर से करीब 250 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.
हिन्दू मुसलमान की एकता
बलोच के निवासियों के लिये माता का मंदिर बहुत ही महत्वपूर्ण है. वहा के भक्तो के लिए माता का यह मंदिर आस्था का प्रतीक है. जब माँ हिँगलाज का मेला होता है तो न केवल हिन्दू भक्त आते है बल्कि मुसलमान भक्त भी बढ़चढ़ कर इस मेले में सम्मिलित होते है.
बनी भारत की माँ है पाकिस्तान की नानी
भारत में श्रद्धालु हिँगलाज देवी को माँ कहते है तो पाकिस्तान में मुसलमान हिँगलाज देवी को नानी का मंदिर कह कर सम्बोधित करते है.
गुरु नानक देव ने भी मत्था टेका
कहानियो के अनुसार कहा जाता है की एक समय गुरु नानक देव जी ने भी इस मंदिर में अपना मत्था टेका था.
श्रद्धा का प्रतीक
52 सिद्ध पीठो में में हिँगलाज देवी आज के समय में भारत और पाकिस्तान के आपसी प्रेम और श्रद्धा का प्रतीक है.
पूरी होती हुई मन्नत
मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है की जो भी भक्त सच्चे मन से माँ के सामने शीश नवाकर कुछ मांगता है तो माँ अपने भक्तो पर प्रसन्न हो कर हर मुराद पूरी करती है. शायद इसी लिए कहा जाता है हिंगलाज में बसी माँ भवानी की महिमा न जात बखानी.
कैसे हुआ मंदिर का निर्माण
कहा जाता है की बाबा पुरुषोत्तम दास जी ने हींगल नदी के तट पर (जो अब पाकिस्तान में स्थित है) 12 वर्षों तक लगातार कठोर तपस्या की थी.
माता से त्रिशूल प्राप्त
बाबा पुरुषोत्तम दास की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर माँ ने प्रतीक के स्वरूप में पुरुषोत्तम दास को त्रिशूल भेंट में दिया था. माता से त्रिशूल प्राप्त कर बाबा पुरुषोत्तम दास ने इस धार्मिक स्थल का निर्माण प्रारम्भ करवाया था.
गर्भ गृह में स्थित है त्रिशूल
माता के द्वारा दिया गया त्रिशूल आज भी मंदिर के गर्भ गृह में स्थित है. जो इन सब कहानियो का प्रमाण है.
राजीव गांधी भी गए थे इस मंदिर में
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी माता के इस मंदिर में अपना शीष नवा चुके हैं.