जांच में हुआ बड़ा खुलासा सुकमा हमले में नक्सलियों को मिली थी 3 गांवों से मदद
छत्तीसगढ़ के सुकमा में सीआरपीएफ जवानों पर नक्सलियों के हमले में स्थानीय ग्रामीणों के शामिल होने की बात सामने आई है. अंग्रेजी अखबार ‘द हिंदू’ ने सीआरपीएफ की अंदरूनी जांच के हवाले से लिखा है कि इस हमले में कम से कम तीन गांव के लोगों ने मदद की थी. 24 अप्रैल को हुए इस हमले में सीआरपीएफ के 25 जवान शहीद हुए थे.
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गांववालों का आरोपों से इनकार
हालांकि स्थानीय ग्रामीणों ने इन आरोपों से इनकार किया है. बुर्कापाल गांव के सरपंच विजय दुला ने ‘द हिंदू’ को बताया, ‘हमले के वक्त गांव में कोई मौजूद नहीं था. सभी लोग फसल कटाई के त्योहार बीजू पोंडम को मनाने के लिए पास के जंगलों में गए थे. हमारे गांव से कोई गोलीबारी नहीं की गई. हम जब लौटे तो हमें गोलियों की आवाज सुनाई दी. लिहाजा हमने खुद को घरों में बंद कर लिया. हमले के बाद छत्तीसगढ़ पुलिस ने चिंतागुफा गांव के पूर्व सरपंच को हमले में शामिल होने के आरोप में हिरासत में लिया था.
सड़क बनी सुरक्षाबलों की कब्र
नक्सलियों ने दोरनापाल और जगरगुंडा के बीच निर्माणाधीन सड़क में गश्त लगा रही सीआरपीएफ की टीम को निशाना बनाया था. ये 56-किलोमीटर लंबी सड़क पिछले 2 सालों से बन रही है. इसके निर्माण के लिए 18 बार टेडर निकल चुका है. लेकिन कोई ठेकेदार इस काम का जिम्मा उठाने के लिए तैयार नहीं है. लिहाजा अपब तक सिर्फ 10 किलोमीटर सड़क ही बन पाई है. नक्सली पहले भी इस सड़क पर सीआरपीएफ जवानों को निशाना बना चुके हैं. इस इलाके में संचार सुविधाओं की कमी सुरक्षा अभियानों में बड़ा रोड़ा हैं.
संख्याबल में मात खा गए सीआरपीएफ जवान
सीआरपीएफ की जांच में सामने आया है कि हमले के वक्त नक्सली सीआरपीएफ जवानों से तादाद में कहीं ज्यादा थे. कुछ जवानों को 20 मीटर तक की दूरी से निशाना बनाया गया. पेट्रोलिंग के वक्त सीआरपीएफ की ये टीम दो टीमों में बंटी थी. हर टीम में 36 जवान शामिल थे. इन दोनों टीमों को 4-4 समूहों में बांटा गया था. हर समूह 400-500 मीटर की दूरी पर गश्त लगा रहा था. नक्सलियों ने हमले के दौरान बड़ी तादाद में बच्चों, महिलाओं को बुजुर्गों को ढाल की तरह इस्तेमाल किया. उन्होंने पहले सड़क के एक ओर तैनात जवानों पर गोलियां दागीं. बाद में दूसरी टीम पर धावा बोला. छत्तीसगढ़ के सुकमा इलाके को बस्तर जिले में नक्सलियों का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता है.