जयपुर टाउन हॉल विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस, हाईकोर्ट के फैसले पर रोक से इंकार

जयपुर टाउन हॉल विवाद पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने पद्मिनी देवी और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर नोटिस जारी कर दिए। लेकिन मामले में हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे नहीं दिया। यह प्रकरण गहलोत सरकार द्वारा पुरानी विधानसभा को हेरिटेज म्यूजियम में बदलने के निर्णय से संबंधित है।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जयपुर के पूर्व राजघराने की पद्मिनी देवी और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर राजस्थान सरकार को नोटिस जारी किया, लेकिन राजस्थान उच्च न्यायालय के फैसले पर न तो कोई स्थगन आदेश जारी किया और न ही यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया। यह मामला जयपुर के ऐतिहासिक टाउन हॉल जिसे पहले पुरानी विधानसभा के रूप में जाना जाता था उससे संबंधित है, जो कि राजस्थान सरकार और जयपुर के शाही परिवार के बीच विवाद का केंद्र बना हुआ है।
यह मामला न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्र और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध था। सुनवाई के दौरान पीठ ने टिप्पणी की कि यह एक महत्वपूर्ण विधिक प्रश्न है, जिसे हम तय करेंगे। हालांकि, पीठ ने 17 अप्रैल 2025 के राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने या स्थिति यथावत बनाए रखने की मांग को अस्वीकार कर दिया।
राज्य की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता शिव मंगल शर्मा ने प्रस्तुतियों में कहा कि स्थगन याचिका पर सुनवाई राज्य द्वारा उत्तर प्रस्तुत किए जाने के बाद ही की जानी चाहिए। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में मामले की लंबितता का सम्मान करेगी। न्यायालय ने इस आश्वासन को संज्ञान में लेते हुए अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने पक्ष रखा। उन्होंने तर्क दिया कि यह विवाद एक निजी संपत्ति के स्वामित्व और नागरिक अधिकारों से जुड़ा है, जिसे 1949 में भारत सरकार और जयपुर के शासक के बीच हुए करार (कवेनेंट) के तहत केवल सरकारी कार्यों हेतु राज्य को सौंपा गया था। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि अब विधानसभा किसी अन्य भवन में स्थानांतरित हो चुकी है, ऐसे में यदि सरकार इस संपत्ति का उपयोग किसी अन्य उद्देश्य, विशेषकर व्यावसायिक या पर्यटन के लिए करती है, तो यह करार की शर्तों का उल्लंघन है।
इसके जवाब में अतिरिक्त महाधिवक्ता शर्मा ने कहा कि यह विवाद पूर्व-संविधानकालीन करारों से संबंधित है, जिन पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 363 के अंतर्गत अदालतों का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा शाही परिवार की याचिकाओं को खारिज करना पूर्णतः उचित था।
विवाद की पृष्ठभूमि
यह विवाद वर्ष 1949 में महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय और भारत सरकार के बीच हुए एक करार से जुड़ा है। इस करार के तहत कुछ संपत्तियां शासक परिवार के पास निजी स्वामित्व में बनी रहीं, जबकि अन्य को केवल सरकारी उपयोग के लिए राज्य सरकार को सौंपा गया था। टाउन हॉल भी ऐसी ही एक संपत्ति थी, जिसे लंबे समय तक राजस्थान विधानसभा के रूप में उपयोग में लाया गया।
वर्ष 2022 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इस इमारत को “वर्ल्ड क्लास राजस्थान हेरिटेज म्यूजियम” में बदलने का निर्णय लिया। इसके विरुद्ध शाही परिवार ने आपत्ति दर्ज कराई और 2014 से 2022 के बीच कई बार प्रतिनिधित्व व कानूनी नोटिस जारी किए। समाधान न मिलने पर उन्होंने सिविल न्यायालय में वाद दायर किया, जिसमें उन्होंने संपत्ति पर स्वामित्व की पुष्टि, निषेधाज्ञा, और मुआवजा की मांग की।
राज्य सरकार ने इस वाद को प्रारंभिक चरण में ही खारिज कराने के लिए आदेश VII नियम 11 के तहत एक आवेदन दायर किया और अनुच्छेद 363 का हवाला देते हुए तर्क दिया कि अदालत का इस विषय में कोई अधिकार नहीं है। ट्रायल कोर्ट ने यह याचिका खारिज कर दी, लेकिन बाद में राज्य सरकार द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका पर राजस्थान उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट का आदेश पलट दिया। उच्च न्यायालय ने माना कि यह वाद अनुच्छेद 363 के अंतर्गत बाधित है।
अपने निर्णय के पैरा 43 में उच्च न्यायालय ने स्वीकार किया कि करार के अनुसार राज्य सरकार को संपत्ति का उपयोग केवल सरकारी कार्यों के लिए करना था और यदि कोई अधिकारी इसका उल्लंघन करता है तो उसके विरुद्ध वैधानिक कार्यवाही की जा सकती है। इसके बावजूद, न्यायालय ने यह निष्कर्ष निकाला कि ऐसे करारों से उत्पन्न विवादों पर दीवानी अदालतों का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट में नई दलीलें
अब याचिकाकर्ताओं ने इस दृष्टिकोण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उन्होंने तर्क दिया है कि अनुच्छेद 363 की व्याख्या सीमित रूप में की जानी चाहिए और यह संविधान के अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 300A को बाधित नहीं कर सकता। विशेषकर 26वें संविधान संशोधन (1971) के बाद, जब राजाओं की आधिकारिक मान्यता समाप्त कर उन्हें सामान्य नागरिक घोषित कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मामले में नोटिस जारी कर दिया है और आगामी सुनवाई के दौरान यह तय करेगा कि अनुच्छेद 363 की सीमाएं क्या हैं, तथा पूर्व-संविधानकालीन करारों से उत्पन्न अधिकारों की संवैधानिक वैधता किस हद तक मानी जा सकती है।