जम्मू: मिलिये घाटी की पहली महिला ई-रिक्शा चालक से

महिला को घर पर रहना चाहिए। पर्दे में रहना चाहिए, मर्दों के काम शोभा नहीं देते जैसी रूढ़ीवादी सोच को तोड़कर और तमाम बाधाओं को पार कर दो बच्चों की मां घाटी की पहली ई-रिक्शा चालक बन गई। 39 साल की मीनाक्षी कहती हैं कि इस काम को छोड़ने के लिए कई आटो चालकों ने उन्हें हतोत्साहित किया। जब वह पहली बार रिक्शा स्टैंड पर गईं तो उन्होंने कहा कि घर लौट जाओ, तुम्हारे बस का काम नहीं है। बकौल मीनाक्षी, लोगों के तानों ने उसमें और आत्मविश्वास भरा और उसने घर को चलाने के लिए यही काम करने की जिद पाल ली। ई-रिक्शा के बूते आज वह अपने परिवार को पाल रही है।
मीनाक्षी देवी के जीवन में यह बड़ा परिवर्तन एक साल पहले तब आया जब डॉक्टरों ने उसके पति के दोनों गुर्दे फेल बता दिए। अचानक उसके कंधों पर परिवार का भार आ गया और उसने ई-रिक्शा चलाने की ठानी। मीनाक्षी की जिंदगी आसान नहीं दी। पति का व्यवसाय बंद हो गया। कर्ज चुकाने के लिए कार बेचनी पड़ी लेकिन इस सब से घबराने के बजाय, उसने चालक बनने जैसा कठिन रास्ता चुना। आज वह अपने परिवार के लिए आजीविका कमाने की इच्छा रखने वाली क्षेत्र की ग्रामीण महिलाओं के लिए प्रेरणा बन गई हैं।
प्रतिदिन 1500 से 2000 रुपये कमा रहीं, महिलाएं सबसे ज्यादा ग्राहक
मीनाक्षी ने कहा, मुझे चार महीने पहले का वह दिन याद है जब मैं पहली बार अपने ई-रिक्शा के साथ भद्रवाह के सेरी बाजार में ऑटो स्टैंड में दाखिल हुई थीं। न केवल राहगीर, बल्कि मेरे पुरुष समकक्षों ने भी मुझे ऐसे देखा जैसे मैं उनके बीच एक एलियन हूं। कुछ रिक्शा चालकों ने उन्हें घर लौटने का सुझाव दिया। नकारात्मकता से विचलित हुए बिना, मैं अपने संकल्प पर दृढ़ रही और धीरे-धीरे आत्मविश्वास हासिल किया। अब मैं प्रतिदिन 1500 से 2000 रुपये कमाती हूं।
मैं महिलाओं को लाने-ले जाने में व्यस्त रहती हूं, क्योंकि पुरुष ड्राइवरों के बजाय महिलाएं उनके साथ सफर करना पसंद करती हैं। मीनाक्षी ने बताया कि पति के बढ़ते मेडिकल बिलों के कारण हम कर्ज के बोझ में फंस गए। जब उन्हें पता चला कि ई-रिक्शा रियायती दरों पर मिलता है, तो उन्होंने इसे जीविकोपार्जन का साधन बनाया। कुछ समय पहले ईएमआई पर तिपहिया वाहन खरीदा और पति पम्मी शर्मा ने उन्हें वाहन चलाना सिखाया। इससे पति के मेडिकल बिलों का भुगतान करने और नाबालिग बेटों की जरूरतों को पूरा करने में मदद मिली है। एक बेटे को हाल ही में निजी स्कूल में दाखिला करवाया है।
यकीन नहीं था पर पत्नी की कामयाबी से अब है सुकून
पति ने कहा कि उन्हें यकीन नहीं था कि मीनाक्षी भद्रवाह शहर के व्यस्त बाजार में ई-रिक्शा चला पाएगी लेकिन हमारे पास कोई चारा भी नहीं था। आज मैं न केवल संतुष्ट हूं बल्कि उस पर गर्व भी है। बीमारी के चलते मैं अवसाद में चला गया था। पत्नी की कामयाबी से अब मैं शांति महसूस कर रहा हूं।
मीनाक्षी सब महिलाओं के लिए प्रेरणा, आज वह शहर की सबसे व्यस्त चालक हैं
ऑटो-रिक्शा एसोसिएशन के अध्यक्ष मोहिसिन गनई ने कहा कि मीनाक्षी अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं। हम उनके साहस को सलाम करते हैं और उनका पूरा समर्थन करते हैं। सबसे पहले, हमें शहर में ऑटो-रिक्शा चलाने वाले 236 पुरुषों की श्रेणी में एक महिला के शामिल होने का विचार मंजूर नहीं था। हम उसके ड्राइविंग कौशल के बारे में आशंकित थे। कुछ ही समय में, उसने अपनी क्षमता साबित कर दी और आज वह शहर की सबसे व्यस्त ऑटो चालक हैं।